बिहार के इस गांव में कोरोना की नो इंट्री, यह तरीका अपना यहां के लोग सुरक्षित हैं इस महामारी से

कोरोना महामारी से देेश और दुनिया में तबाही मची है। लेकिन रोहतास के कैमूर पहाड़ी क्षेत्र में बसे भड़कुरिया गांव का एक भी व्‍यक्ति इस महामारी की चपेट में नहीं आया है। गांव में बाहरी लोगों के प्रवेश पर रोक है।

By Vyas ChandraEdited By: Publish:Sat, 22 May 2021 11:45 AM (IST) Updated:Sat, 22 May 2021 11:45 AM (IST)
बिहार के इस गांव में कोरोना की नो इंट्री, यह तरीका अपना यहां के लोग सुरक्षित हैं इस महामारी से
एहतियातों का पालन करते हैं भड़कुरिया गांव के लोग। जागरण

डेहरी ऑन सोन (रोहतास)। Safety from Coronavirus कोरोना महामारी (Corona Pandemic) पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। इस महामारी से कितने लोगों की जान चली गई और कितने लोग संक्रमित हुए। बावजूद डेहरी प्रखंड के भड़कुड़िया गांव के लोगों अपनी सूझबूझ से गांव में कोरोना काे प्रवेश नहीं होने दिया। यहां के लोग न केवल बाहरी लोगों को गांव में प्रवेश पर रोक लगाई बल्कि वायरस को नष्ट करने के लिए प्राचीन व वैज्ञानिक उपाय (Ancient and Scientific Method) को भी अपनाया। नतीजा वे आज तक बचे हैं। यहां न तो अबतक कोई व्यक्ति कोरोना से संक्रमित हुआ है न हीं किसी की मौत इस महामारी से हुई है।

गांव में पीपल के हैं दर्जनों विशालकाय पेड़ 

डेहरी प्रखंड के पतपुरा पंचायत का भड़कुडीया गांव डेहरी से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर कैमूर पहाड़ी के किनारे बसा है। इस गांव में आज भी पीपल के एक दर्जन से अधिक विशालकाय पेड़ हैं। इससे ग्रामीणों को शुद्ध् हवा मिलती है तथा ऑक्सीजन की कमी नहीं होती। वहीं इस गांव के लोगों का मुख्य पेशा सब्जी व फूलों की खेती है। सभी घरों के दरवाजे पर गाय-भैंस भी बंधी मिल जाएगी। गांव में आपसी एकता भी सुदृढ़ है। गत वर्ष जब कोरोना महामारी आई तो गांव वालों ने चारों तरफ बैरिकेडिंग कर गांव में बाहरी लोगों के प्रवेश पर रोक लगा दी। इस बार भी गांव में बाहरी लोगों का प्रवेश पूरी तरह वर्जित है। इसका पालन सभी ग्रामीण सुनिश्चित कराते हैं।

इस उपाय से गांव में घुसने नहीं दिया कोरोना

ग्रामीण धर्मेंद्र महतो, लिलावती कुंवर, राजकुमार गोंड़ समेत अन्य ग्रामीण बताते हैं कि  वे साल भर तक नीम की पत्तियों और गोबर के उपलों से धुंआ पशुशालाओं व घरों के सामने रोजाना शाम ढलते ही करते हैं। इससे जहां मच्छरों व संक्रामक कीटों से बचाव होता है। वहीं वातावरण में फैले दूषित वायरस, जीवाणु, बैक्टिरिया आदि भी नष्ट हो जाते हैं। गांव में प्राय: सभी घरों में सब्जियों पर केमिकल छिड़काव के लिए स्प्रेयर मशीन उपलब्ध है। इसके माध्यम से सामूहिक रूप से सप्ताह में दो दिन घरों व गांव की गलियों को सैनिटाइज करते हैं। इस गांव के बच्चे, बुढ़े, जवान सभी लोग इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए योगाभ्यास करने के साथ ही टहलकर अपने शरीर को रोगमुक्त रखने का प्रयास करते हैं।

भौतिक सुविधाओं पर नहीं देते ध्‍यान 

धर्मेंद्र महतो बताते हैं कि चिकित्सीय सुविधाओं की कमी वाले इस गांव के लोग आयुर्वेदिक औषधियों पर निर्भर हैं या घरेलू उपचार से खुद का इलाज करते हैं। ऐसे में अपने अंदर इम्यूनिटी दुरुस्त रखने के लिए हम भौतिक सुविधाओं की कमी के बावजूद एक-दूसरे के प्रति सहयोगात्मक रवैया रखते हैं। जिसके कारण गांव में एक भी कोरोना का मामला नहीं आया। राजकुमार गौड़ बताते हैं कि  हमारे गांव में ऑक्सीजन के लिए करीब 12 से 15 विशाल पीपल का वृक्ष है जिसके चलते गांव वालों को भरपूर ऑक्सीजन प्राप्त होता है। ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होने से हम लोग वैश्विक महामारी से आज तक बचे हुए हैं। साथ ही गांव में साफ-सफाई की भी विशेष ध्यान रखा गया। इन्हीं सब वजहों से गांव के सभी कोरोना को लेकर आज भी सुरक्षित है।

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