विपश्यना साधना के लक्ष्य तक पहुंचने में शून्यागार का विशेष महत्व

बुद्धभूमि पर बौद्ध साधक ध्यान-साधना को लालायित रहते हैं। पर्यटन मौसम (नवंबर से फरवरी) में विश्वदाय धरोहर महाबोधि मंदिर स्थित पवित्र बोधिवृक्ष की छांव से लेकर वोटिव स्तूप के इर्दगिर्द साधक ध्यान-साधना के विभिन्न आयामों में तल्लीन देखे जाते हैं। बोधगया में आचार्यो के माध्यम से ध्यान-साधना के महत्व को समझने के लिए कई केंद्र संचालित हैं। ध्यान-साधना में विपश्यना साधना का विशेष महत्व है। विपश्यना साधना मन को वास्तविक शांति प्राप्ति का उचित माध्यम माना जाता है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 16 May 2019 06:49 PM (IST) Updated:Thu, 16 May 2019 06:51 PM (IST)
विपश्यना साधना के लक्ष्य तक पहुंचने में शून्यागार का विशेष महत्व
विपश्यना साधना के लक्ष्य तक पहुंचने में शून्यागार का विशेष महत्व

विनय कुमार मिश्र, बोधगया :

बुद्धभूमि पर बौद्ध साधक ध्यान-साधना को लालायित रहते हैं। पर्यटन मौसम (नवंबर से फरवरी) में विश्वदाय धरोहर महाबोधि मंदिर स्थित पवित्र बोधिवृक्ष की छांव से लेकर वोटिव स्तूप के इर्दगिर्द साधक ध्यान-साधना के विभिन्न आयामों में तल्लीन देखे जाते हैं। बोधगया में आचार्यो के माध्यम से ध्यान-साधना के महत्व को समझने के लिए कई केंद्र संचालित हैं। ध्यान-साधना में विपश्यना साधना का विशेष महत्व है। विपश्यना साधना मन को वास्तविक शांति प्राप्ति का उचित माध्यम माना जाता है।

विपश्यना साधना कोर्स के संचालन के लिए बोधगया में मगध विश्वविद्यालय के समीप धम्मबोधि केंद्र स्थापित है। यहां हर माह में दो बार दस दिवसीय विपश्यना साधना का कोर्स कराया जाता है। यहां साधक को विपश्यना साधना के लक्ष्य तक पहुंचने में मदद हेतु गोलाकार शून्यागार का निर्माण भी कराया गया है। इसकी बाहरी बनावट सहज ही लोगों को आकर्षित करता है।

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शून्यागार

शून्यागार नाम से ही स्पष्ट है कि जहां बिल्कुल 'शून्य' की स्थिति हो और साधक को श्वांस दर्शन और शरीर दर्शन पद्धति अपनाने के दौरान किसी भी बाह्य आलंबन से बाधा न हो। शून्यागार में बाह्य आवाज, प्रकाश और वायु का प्रवेश न हो। इसमें गर्मी के मौसम में पंखे की भी आवश्यकता नहीं होती। शून्यागार में 70 छोटे-छोटे साधना कक्ष और एक सभा कक्ष बना है।

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विपश्यना साधना

विपश्यना भारत की अत्यंत पुरातन ध्यान विधि है। इसकी खोज 2563 वर्ष पूर्व भगवान बुद्ध ने किया था और स्वयं 45 वर्षो तक इस विधि को अपनाया था। यह ध्यान-साधना की एक सरल और कारगर विधि है। इससे मन को वास्तविक शांति प्राप्त होती है और एक सुखी व उपयोगी जीवन बिताना संभव हो जाता है। केंद्र के आचार्य बताते हैं कि विपश्यना का अभिप्राय है कि जो वस्तु सचमुच जैसी हो, उसे उसी प्रकार जान लेना। विपश्यना हमें इस योग्य बनाती है कि हम अपने भीतर शांति और सामंजस्य का स्वयं अनुभव कर सकें। यह चित्त को निर्मल कर चित्त की व्याकुलता को दूर करती है।

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देश से लुप्त हो गई थी यह विधि

विपश्यना ध्यान विधि भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के लगभग पांच सौ वर्ष बाद विपश्यना की कल्याणकारी विधि भारत सहित श्रीलंका और थाईलैंड से लुप्त हो गई। केवल म्यांमार में इस विधि के प्रति समर्पित आचार्यो की एक शृंखला के कारण कायम रह सकी। इस परंपरा के ख्यात आचार्य सयाजी ऊ बा खिन ने भारत में वर्ष 1969 में फिर से शुरू करने के लिए सत्यनारायण गोयनका को अधिकृत किया। उसके बाद से गोयनका ने विपश्यना विश्व विद्यापीठ की स्थापना कर इस विधि को देश-विदेश में शिविर के माध्यम से प्रचारित-प्रसारित किया। देश भर में विपश्यना साधना के 65 केंद्र संचालित हैं। इनमें बोधगया स्थित केंद्र का विशेष महत्व माना जाता है।

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