आजादी के दीवानेः साकेत बिहारी सिंह व परमेश्वर सिंह को मिली थी अंग्रेजी हुकूमत की जेल, इसी दौरान जेपी नारायण से मुलाकात हुई

आजादी की लड़ाई में साकेत बिहारी सिंह व परमेश्वर सिंह पर अंग्रेजी हुकूमत द्वारा कई आरोप लगे थे। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान 1938 में तिरंगा झंडा फहराने और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय रेलवे पटरी उखाड़ने समेत हिसुआ थाना पर हमला करने जैसे कई गम्भीर आरोप लगाए थे।

By Prashant Kumar PandeyEdited By: Publish:Mon, 08 Aug 2022 02:45 PM (IST) Updated:Mon, 08 Aug 2022 02:45 PM (IST)
आजादी के दीवानेः साकेत बिहारी सिंह व परमेश्वर सिंह को मिली थी अंग्रेजी हुकूमत की जेल, इसी दौरान जेपी नारायण से मुलाकात हुई
साकेत बिहारी सिंह व परमेश्वर सिंह को मिली थी अंग्रेजी हुकूमत की जेल

सचिन कुमार, हिसुआ (नवादा): अंग्रेजी हुकूमत से आजादी की लड़ाई हर क्षेत्र के आजादी के दीवानों द्वारा लड़ी गई थी। इन दीवानों में हिसुआ के मंझवे निवासी साकेत बिहारी सिंह और छतिहर निवासी परमेश्वर सिंह ने भी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में अपनी अहम भूमिका निभाई । आज भी इनकी कहानी लोगों की जुबानी है। हिसुआ प्रखंड क्षेत्र के मंझवे गांव निवासी स्वतंत्रता सेनानी साकेत बिहारी सिंह आज भी शिद्दत से याद किए जाते हैं। मंझवे स्थित बनी उनकी हवेली लोगों को उनके किए कार्यों को याद दिलाती है। उनके द्वारा लड़ी गई आजादी की लड़ाई को लोग आज भी श्रद्धापूर्वक याद करते हैं।

अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें नौ महीनों के लिए हजारीबाग जेल भेजा

मंझवे में ही रह रहे उनके पुत्र समाजसेवी कैलाश बिहारी सिंह उर्फ गोपाल बाबू तथा पुत्रवधू भूतपूर्व जिला पार्षद सरोज देवी ने बताया कि आजादी की लड़ाई में उनपर अंग्रेजी हुकूमत द्वारा कई आरोप लगाए गए थे। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान 1938 में तिरंगा झंडा फहराने और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय रेलवे पटरी उखाड़ने समेत हिसुआ थाना पर हमला करने जैसे कई गम्भीर आरोप लगाए थे। फलस्वरूप अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें हिरासत में ले नौ महीनों के लिए हजारीबाग जेल भेज दिया।

जेल में रहने के दौरान जय प्रकाश नारायण से मुलाकात हुई

जेल में रहने के दौरान उन्हें वहां जय प्रकाश नारायण से मुलाकात हुई। आजादी के सिपाही से मिल साकेत बिहारी सिंह की मानों दोगुनी ऊर्जा हो गई। देश की आजादी के लिए अब प्राण की भी आहुति देने की नौबत आती तो कोई दुख ना होता। उसी दौरान जेपी जेल से भाग निकले थे और छिप कर मंझवे स्थित साकेत बिहारी सिंह के हवेली पर कुछ दिन रहे थे। जेपी के साथ रह साकेत बिहारी सिंह में आजादी के लिए खून उफान मारने लगा था। आज़ादी के संग्राम के दौरान उनकी मुलाकात महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, स्वामी सहजानंद सरस्वती, जवाहर लाल नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद समेत देश के बड़े-बड़े आंदोलनकारियों से हुई।

आखिरकार जब देश आजाद हुआ तो वो अपने निवास स्थल को वापस आकर अपना जीवन समाजसेवा को सौंप दिया। कई सारे स्वतंत्रता सेनानी का पुरस्कार समेत इलाहाबाद में ताम्र पत्र से सम्मानित किया गया। लगभग 96 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई। मरणोपरांत भी उन्हें कई सम्मान से नवाजा गया। मंझवे आज भी उनकी यादों को सहेजे हुए है। 

छतिहर के परमेश्वर सिंह हैं सबकी यादों में

हिसुआ के छतिहर निवासी परमेश्वर सिंह की कहानी भी लोगों की यादों में बसा हुआ है। ग्रामीण उनकी बहादुरी के किस्से सब जगह सुनाते मिल जाएंगे। परमेश्वर सिंह भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अनुयायी थे। गांधी के दीवाने गांधी को देखने निकल पड़े। मौका था गया में महात्मा गांधी का आगमन। गांधीजी द्वारा जब अहिंसा का रास्ता अपनाकर आजादी की लड़ाई लड़ने की बात कही गई। देश को आजाद करने का सपना लेकर परमेश्वर सिंह अपनी सारी दुनियादारी छोड़ कर बस इसी में रम गए। इस दौरान कई आंदोलनकारियों से उनकी मुलाकात हुई, कई बार अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा आरोप लगे और कई बार जेल तक जाने की भी नौबत आई। कहा जाता है ना जब आजादी के सपने आंखों मेंपल रहे हों तो नींद कहां। लंबे समय तक जेल में रहने के बाद भी यह उनकी राह में बाधा नहीं बन सकी। 

राष्ट्रपति भवन में आयोजित स्वागत समारोह में भाग लेने का मिला मौका

दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी परमेश्वर सिंह के पुत्र दिनेश सिंह बताते हैं कि उनके पिता को उनके अद्भुत साहस के लिए उन्हें 09 अगस्त 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति डा.एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में राष्ट्रपति भवन में आयोजित स्वागत समारोह में भाग लेने का अवसर मिला था। उन्होंने बताया कि मृत्यु के कुछ दिन पहले नवादा जिला प्रशासन ने उन्हें स्वतंत्रता सेनानी के सम्मान से सम्मानित भी किया।

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