दिव्यांग कलेश्वरी के जज्बे की चर्चा हर लोगों की जुबान पर

बाराचट्टी दोनों पैरों से दिव्यांग 18 वर्षीया कलेश्वरी कुमारी अपने जज्बे को लेकर गांव व आसपास के गांवों मे चर्चा में है। वह नित्य अपने घर की साफ-सफाई करने के उपरांत खाना बनाकर खेत पर सुबह से गए पिता के लिए ले खाना ले जाती है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 24 Sep 2020 07:54 AM (IST) Updated:Thu, 24 Sep 2020 07:54 AM (IST)
दिव्यांग कलेश्वरी के जज्बे की चर्चा हर लोगों की जुबान पर
दिव्यांग कलेश्वरी के जज्बे की चर्चा हर लोगों की जुबान पर

बाराचट्टी : दोनों पैरों से दिव्यांग 18 वर्षीया कलेश्वरी कुमारी अपने जज्बे को लेकर गांव व आसपास के गांवों मे चर्चा में है। वह नित्य अपने घर की साफ-सफाई करने के उपरांत खाना बनाकर खेत पर सुबह से गए पिता के लिए ले खाना ले जाती है। इतना ही नहीं उधर से अपने पालतू जानवरों के लिए पिता द्वारा काटकर रखा हुआ चारा भी साइकिल पर लेकर आती है।

बाराचट्टी प्रखंड के कठौतिया गांव की कलेश्वरी के इस कार्य को देखकर आसपास के लोग अपने बच्चों को उससे प्रेरणा लेने की बात कहते हैं। कहते हैं कि दोनों पैर से दिव्यांग होने के बाद भी बेटी होकर इतना काम वह करती है तो आपलोग भी वह काम कर सकते हैं।

घर से दो किमी दूर है खेत वहां जाती है हर रोज : वह बताती है कि कि हमारे पिताजी पढ़ाई नहीं करा सके क्यों कि हमलोग गरीब हैं। बताती है कि भाई राजकुमार यादव, अजय यादव, गैणू यादव है। इनका भरपूर सहयोग हमें मिलता है। लेकिन घर में बैठकर खाना खाए हमें खुद अच्छा नहीं लगता था। भाई सभी अलग हो गए हैं। हम किसी पर बोझकर नहीं रहें इसलिए यह काम करते हैं। पिताजी के साथ रहते हैं। वह सुबह उठकर खेत पर चले जाते हैं। हम खाना बनाकर दो किमी दूर खेत पर ट्राइसाइकिल से खाना जाकर पहुंचा देते हैं।

सशस्त्र सीमा बल का नाम हर वक्त कलेश्वरी की जुबान पर : वह बताती है कि बीबी पेसरा एसएसबी कैंप में हमको यह साइकिल तीन वर्ष पहले मिली थी। इसके मिलने के बाद हमको लगा कि अब हम कहीं भी घूम सकते हैं। घर पर साइकिल लाकर हम और हमारे पिता भी काफी खुश थे। इसकी बदौलत हम पिताजी के काम में सहयोग भी करते है। लेकिन अब साइकिल भी टूट गयी है किसी तरह इसे चला रहे हैं। लेकिन एसएसबी ने हमको जीने का बहुत बड़ा सहारा दिया नहीं तो हम घर पर ऐसे ही बैठे रहते।

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