दुर्लभ ताड़पत्र व पांडुलिपियों का अस्तित्व खतरे में

By Edited By: Publish:Mon, 25 Aug 2014 09:46 PM (IST) Updated:Mon, 25 Aug 2014 09:46 PM (IST)
दुर्लभ ताड़पत्र व पांडुलिपियों का अस्तित्व खतरे में

जागरण संवाददाता,आरा: शहर के जेल रोड में है प्रसिद्ध जैन सिद्धांत भवन। विदेशों में इसे ओरियन्टल लाइब्रेरी के नाम से जाना जाता है। विद्या की देवी सरस्वती की प्रतिमायुक्त यह लाइब्रेरी उत्तर भारत में जैन धर्म व प्राच्य विद्या का सर्वाधिक महत्वपूर्ण केन्द्रों में से है। फिर भी आर्थिक संकट के कारण इसमें मौजूद सैकड़ों दुर्लभ पांडुलिपियों का अस्तित्व खतरे में है।

कब हुई थी स्थापना :

वर्ष 1903 में स्थापित लगभग 30 फुट चौड़ी व 65 फुट लंबी इस लाइब्रेरी के संस्थापक स्व.देव कुमार जैन ने एक दिन किसी व्यक्ति को प्राचीन दुर्लभ ग्रंथों को बेचते हुए देखा है। उसी समय उनके मन में दुर्लभ ग्र्रंथों के प्रति मोह जगा और उन्होंने उन दुर्लभ ग्रंथों को स्वयं खरीद लिया। उसके बाद से ही दुर्लभ ग्रंथों का संग्रह करने का सिलसिला शुरू हुआ।

विभिन्न भाषाओं की हैं पुस्तकें : इसमें छह सौ ताड़पत्रीय, कर्गलीय ग्रंथ, बौद्धागम, प्राचीन अर्वाचीन, प्राकृत, पाली, अपभ्रंश, हिन्दी, संस्कृत, मराठी, तमिल, बंगला, गुजराती, जर्मन, इटालियन, फ्रेंच की किताबें हैं। इन पुस्तकों के अधिकांशत: का लिपि काल 15 वीं व 16 वीं शताब्दी है।

कलाकृतियां व सिक्के : लाइब्रेरी में नवाब वाजिद अली के दरबारी चित्रकार अब्दुल गनी व चित्रकार सुबोध कुमार जैन की कलाकृतियां हैं। इसके अलावा यहां विभिन्न शासकों के शासनकाल के सिक्के हैं।

देश-विदेश के लोग हुए लाभांवित : इस लाइब्रेरी से डा. विन्टवीच, हर्मन, जेकाबी, डा.अस्ट्रा, प्रो. डब्लू, नारमैन, ब्राउन,पंडिताचार्य चारूकृति के अलावे अनेक देशी-विदेशी विद्वान व शोधार्थी अब तक लाभांवित हुए हैं।

बंद है प्रकाशन : जैन सिद्धांत भास्कर व जैन एंटीकेयरी काफी प्रसिद्ध रहा है। लेकिन आर्थिक संकट के कारण इनका प्रकाशन 1999 से बंद है। जगह के अभाव में पुस्तकों व पांडुलिपियों के रखरखाव में परेशानी हो रही हैं।

बॉक्स

लाइब्रेरी के सचिव अजय कुमार जैन ने बताया कि पूर्व में यह लाइब्रेरी मगध विश्वविद्यालय से सम्बद्ध थी। इस विश्वविद्यालय से ग्रांट के लिए 1978 में आवेदन दिया गया था। लेकिन कोई ग्रांट नहीं मिला। 11 मार्च 2005 को इस लाइब्रेरी को वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय से शोध संस्थान की मान्यता मिली है। इस लाइब्रेरी से वीकेएसयू के दर्जनों शोधार्थियों ने शोध कार्य किया। लेकिन इनको शोध कार्य के लिए जो सुविधाएं मिलनी चाहिए थी वह नहीं मिली। उन्होंने बताया कि पांडुलिपियों व अमूल्य पुस्तकों का इलेक्ट्रानिक कैटलाग तैयार कराने, पांडुलिपियों का कंप्यूटरीकरण कराने, शोधकर्ताओं की सुविधा के लिए अध्ययन कक्ष का निर्माण कराने, जैन सिद्धांत भास्कर व जैन एंटीकेयरी का नियमित प्रकाशन कराने समेत अन्य कार्यो के लिए लगभग 76लाख का प्रोजेक्ट वीकेएसयू को सौंपा गया है। वहीं वर्षो से बिहार सरकार को आर्थिक सहयोग के लिए आवेदन देने के बावजूद कोई सुनवाई नहीं हुई। जिला प्रशासन, जन प्रतिनिधियों, वीकेएसयू व बिहार सरकार की उपेक्षा बरकरार रही तो वह दिन दूर नहीं जब यहां की दुर्लभ पांडुलिपियां समाप्त हो जाएंगी।

chat bot
आपका साथी