कहां गुम हो गई चंपा : बोले जल पुरुष राजेन्द्र सिंह - शुभ है दैनिक जागरण का नदी साक्षरता अभियान

जल पुरुष राजेन्द्र सिंह ने कहा दैनिक जागरण के माध्यम से चंपा की दुर्दशा की जानकारी मिली। इसे पुनर्जीवन देने के लिए लोगों को जागरूक करने की पहल सराहनीय है।

By Dilip ShuklaEdited By: Publish:Wed, 27 Nov 2019 08:55 AM (IST) Updated:Wed, 27 Nov 2019 08:55 AM (IST)
कहां गुम हो गई चंपा :  बोले जल पुरुष राजेन्द्र सिंह - शुभ है दैनिक जागरण का नदी साक्षरता अभियान
कहां गुम हो गई चंपा : बोले जल पुरुष राजेन्द्र सिंह - शुभ है दैनिक जागरण का नदी साक्षरता अभियान

[राजेंद्र सिंह]। नदियां हमारी बोली और भाषा बनाती है। हम लालची बनकर इसे भूल जाते हैं कि नदियां हमारी राष्ट्र की सभ्यता, संस्कृति को बनाने का काम करती है। दैनिक जागरण ने भागलपुर में अपनी नदी चंपा को मरने से बचाने के लिए समाज का शिक्षण करना शुरू किया। मीडिया का यही दायित्व है। यह सराहनीय प्रयास है।

इस देश में भारत की आत्मा नदियों को पुनर्जीवित करने की जरूरत है। भारत के लोग यह कर सकते हैं। इस काम को करने से ही भारत दुनिया का गुरु था। भारतीय व्यवहार और संस्कार में नदियों से लेना कम और ज्यादा देने की परंपरा थी। गंगा के किनारे कुंभ, उज्जैन में शिप्रा और नासिक स्थित गोदावरी के किनारे कुंभ लगता है। कुंभ स्नान नहीं है। कुंभ में अमृत की खोज की परंपरा थी। जो अच्छाई थी उसे अलग करने और जो बुराई थी उसे दूर करने की परंपरा। राजा, प्रजा और संत मिल-बैठ कर निर्णय लेते थे।

इसी परंपरा ने भारत की नदियों को बचाकर रखा। अब लालची विकास ने नदियों को बीमार बनाकर मारना शुरू कर दिया है। दैनिक जागरण जैसे हिंदी अखबार ने पहल कर चंपा को बचाने का काम शुरू किया है। यह अभियान लाभ का अभियान नहीं है। यह शुभ का अभियान है। 21वीं सदी में यह अभियान राज्य के लिए शुभ है।

भारत में 33 फीसद नदियों को साजिश के तहत नाला कह दिया गया है, जबकि नदी एक स्त्री जैसी होती है। तभी भारत में नदी को मां की संज्ञा दी गई है। इससे संस्कृति, उद्योग और कृषि का विकास होता है।

भागलपुर के नाथनगर में चंपा की भौगोलिक स्थिति बताती है कि यह नदी कभी कितनी खूबसूरत रही होगी। क्या लोग इससे वाकिफ हैं। जरूरत है सबसे पहले नदी साक्षरता की। आज सचेत नहीं हुए तो याद रखें कि कल बच्चे आपसे ही पूछेंगे कि उनके दादा-परदादा ने जो नदी आपको सौंपी थी, वह कहां है।

वे बच्चे कहेंगे कि उन्हें कुछ नहीं चाहिए। उन्हें बस नदी लौटा दो, ताकि पानी मिल सके, जीवन मिल सके। पुरानी व्यवस्था में साधु-संत डंडा लेकर नदी किनारे खड़े रहते थे। कोई नदी में गंदगी फेंकने पहुंचा नहीं कि डंडा लेकर दौड़ पड़ते थे। इस पर कोई कुछ नहीं बोलता था, उन्हें किसी का डर नहीं था। समाज भी उनके साथ खड़ा होता था, क्योंकि वे उनके ही भले के लिए अपने दायित्व का निर्वहन नि:स्वार्थ भाव से करते थे। आज ऐसी बात नहीं रही, हमें वह माहौल बनाना होगा।

मुझे दैनिक जागरण के माध्यम से चंपा की दुर्दशा की जानकारी मिली। इसे पुनर्जीवन देने के लिए लोगों को जागरूक करने की पहल सराहनीय है। जिनकी आंखों में अभी भी पानी है, वे नदी की चिंता कर रहे हैं। इसकी जवाबदेही समाज को उठानी पड़ेगी। मैं दैनिक जागरण को बधाई देता हूं कि इसने चंपा का मसला उठाया। इसे निरंतर जारी रखना होगा। जागरण नदी साक्षरता का अभियान चलाते हुए लोगों को बताएगा कि इसका जीवन में क्या महत्व है। जिनकी यादों से चंपा विस्मृत हो चुकी है, उन्हें जगाना होगा।

(लेखक मैग्सेसे अवार्ड विजेता और जलपुरुष के नाम से विख्यात हैं)

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