बिहार के इस जिले में गांवों के नामों में दफन है कोसी के तांडव की कहानी
कभी पूर्णिया शहर के करीब तो कभी धमदाहा अनुमंडल के बीचोंबीच गुरजती थी कोसी। बाढ़ के कारण काफी संख्या में गांवों के नाम में जुड़ा है दाहा शब्द। जिले के एक दर्जन से अधिक गांवों के नाम से जुड़े दाहा शब्द भी इसी की कड़ी मानी जाती है।
पूर्णिया [प्रकाश वत्स]। बिहार की शोक कही जाने वाली कोसी नदी अपने तांडव की निशानी भी छोड़ती रही है। पूर्णिया जिले के कई गांवों के नामों में भी कोसी की तांडव की कहानी दफन है। कोसी परिक्षेत्र के भूगोल को प्रभावित करती रही इस नदी की यह कहानी कई दस्तावेजों में भी दर्ज है। जिले के एक दर्जन से अधिक गांवों के नाम से जुड़े दाहा शब्द भी इसी की कड़ी मानी जाती है। धमदाहा से लेकर इसी अनुमंडल क्षेत्र के मोगलिया पुरंदाहा, चकरदाहा, डिप्टी पुरंदाहा, बरदाहा, सिमलदाहा जैसे गांव इसका साक्ष्य है। लोक भाषा में दाहा का अर्थ बाढ़ से है और इन गांवों के नामों के पीछे भी कोसी के बाढ़ की कहानी ही मानी जाती है।
1735-36 में फारबिसगंज व पूर्णिया होकर बहती थी कोसी
कोसी की नदियों पर अध्ययन करने वाले भगवान पाठक के अनुसार सन 1735-36 में कोसी अररिया के फारबिसगंज व पूर्णिया शहर के करीब से ही गुजरती थी। बाद में वर्ष दर वर्ष कोसी पश्चिम की ओर खिसकती चली गई। इसी खिसकाव में कभी इसका मार्ग पूर्णिया जिले का बनमनखी व धमदाहा अनुमंडल भी रहा। सलाना बाढ़ वाले क्षेत्र में पड़ने वाले गांवों के नाम में दाहा शब्द का जुड़ाव है। इस तरह के गांवों की संख्या पांच दर्जन के करीब है। यद्यपि अब फिर से कोसी पूर्व की ओर लौट रही है।
एक दशक पूर्व तक सजीव रही है कई उप धाराएं
काेसी के कभी फारबिसगंज व पूर्णिया शहर के करीब से बहने का साक्ष्य उसकी कई उप धाराएं भी रही है। यद्यपि कोसी के पश्चिम खिसकाव के कारण इसकी उपधाराओं का अस्तित्व भी मिटता गया, लेकिन अब भी कई उप धाराएं जीवित है। धमदाहा अनुमंडल से कारी कोसी, हिरण्य धार जैसी उप धारा बह रही है।
कोसी का इतिहास ही पहेली है। इसकी दशा-दिशा व स्वरुप सदा से उसकी मर्जी से तय होती रही है। कभी कोसी अररिया के फारबिसगंज व पूर्णिया शहर के समीप से गुजरती थी। बाद में नदी लगातार पश्चिम की ओर सरकती चली गई। कभी यह धमदाहा अनुमंडल के बीचो बीच से भी गुजरती थी। कोसी की बाढ़ व तबाही लगातार यहां के भूगोल को प्रभावित करती रही है। गांवों के नाम से जुड़ा दाहा शब्द उसी की निशानी है। -भगवान पाठक, संयोजक, कोसी कंसोर्टियम।