अमर शहीद तिलकामांझी की प्रतिमा को शरारती तत्वों ने तोड़ा, इसके बाद तो...

तिलकामांझी भारत में ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देने वाले पहाड़िया समुदाय के वीर आदिवासी थे। तिलकामांझी का संबंध बिहार और झारखंड से है। भागलपुर में उनकी शहादत हुई थी।

By Dilip ShuklaEdited By: Publish:Thu, 28 Feb 2019 08:10 PM (IST) Updated:Fri, 01 Mar 2019 08:06 PM (IST)
अमर शहीद तिलकामांझी की प्रतिमा को शरारती तत्वों ने तोड़ा, इसके बाद तो...
अमर शहीद तिलकामांझी की प्रतिमा को शरारती तत्वों ने तोड़ा, इसके बाद तो...

भागलपुर [जेएनएन]। कहलगांव, अमडंडा के काझा घुटीयानी चौक पर अमर शहीद बाबा तिलकामांझी की प्रतिमा को बुधवार की रात्रि शरारती तत्वों तोड़ दिया। यहीं पर सड़क किनारे डेढ़ सौ पौधों को भी लाठी-डंडे से मार कर नष्ट कर दिया। गुरुवार सुबह बाबा तिलकामांझी की प्रतिमा टूटी देख आदिवासी समाज के लोग आक्रोशित हो उठे। चौक पर काझा, घुटीयानी, गोकुलपुर आदि गांवों के आदिवासियों का जुटान हो गया।

बाबा तिलकामांझी अमर रहे का नारा लगाते हुए उग्र आदिवासियों और ग्रामीणों ने खड़हरा-अमडंडा पथ और धुआवे पथ को जाम कर दिया। प्रतिमा तोडऩे वालों को अविलंब गिरफ्तार करने, प्रतिमा स्थल के निकट पुलिस बल की तैनाती करने, पुन: प्रतिमा और छत निर्माण के साथ घेराबंदी करवाने, प्रतिमा तोडऩे की घटना की सीबीआइ जांच कराने, कटे हुए पौधों को लगवाने की मांग कर रहे थे।

सूचना पर अमडंडा थानाध्यक्ष मुकेश कुमार, अनुमंडल पदाधिकारी सुजय कुमार सिंह, अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी मनोज कुमार सुधांशु, सन्हौला बीडीओ, सीओ, मुखिया राजेश कुमार सिंह उर्फ पप्पू, पंचायत समिति प्रतिनिधि श्रवण कुमार, पूर्व मुखिया बाल किशोर हांसदा, वार्ड सदस्य सुरेंद्र बेसरा आदि पहुंचे। अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने आक्रोशित लोगों को समझा कर शांत किया। एसडीओ एवं एसडीपीओ ने प्रतिमा निर्माण करवाने का आश्वासन दिया और अन्य मांगों को यथासंभव पूरा करने की बात कही।

आदिवासी समाज ने अपने खर्च पर बनवाई थी प्रतिमा

आदिवासी समाज ने अपने खर्च पर सीमेंट की प्रतिमा का निर्माण कराया था। इसका उद्घाटन 18 फरवरी 2008 को भव्य समारोह के तहत कराया गया था। उद्घाटन समारोह में विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष सदानन्द सिंह भी शरीक हुए थे। कांग्रेस विधायक दल के नेता सह क्षेत्रीय विधायक सदानन्द सिंह ने कहा कि अमर शहीद रतन कुमार ठाकुर की पंचायत में इस तरह की घटना दुर्भाग्यपूर्ण है। असमाजिक तत्वों ने दो तीन वर्ष पहले बाबा तिलकामांझी का धनुष तोड़ दिया था, फिर हाथ तोड़ दिया था। इसबार प्रतिमा तोड़कर गिरा दिया। यह काफी दुखद है। ऐसे तत्वों को अविलम्ब गिरफ्तार करना चाहिए। विधायक ने कहा कि अपने खर्च पर प्रतिमा निर्माण कर घेराबंदी कराएंगे। लोजपा के प्रदेश महामंत्री नीरज मण्डल ने कहा कि यह घिनोनी हरकत है। पुलिस ऐसे तत्वों को गिरफ्तार करे।

काझा घुटीयानी में बनती और बिकती है महुआ शराब

काझा घुटीयानी में महुआ शराब बनती और बिकती है। आशंका है कि शराबियों ने ही इस तरह का कुकृत्य किया होगा। थानाध्यक्ष ने कहा कि एक बार जब गांव में शराब की सूचना पर गया था तो सभी एकजुट हो डुगडुगी बजाने लगे थे। अज्ञात पर थाने में मुकदमा दर्ज किया गया है। मामले की जांच की जा रही है।

कौन थे तिलकामांझी

तिलकामांझी भारत में ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देने वाले पहाड़िया समुदाय के वीर आदिवासी थे। सिंगारसी पहाड़, पाकुड़ के जबरा पहाड़िया उर्फ तिलकामांझी का जन्म 11 फ़रवरी 1750 ई. में हुआ था। 1771 से 1784 तक उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध लंबी और कभी न समर्पण करने वाली लड़ाई लड़ी और स्थानीय महाजनों-सामंतों व अंग्रेजी शासक की नींद उड़ाए रखा। पहाड़िया लड़ाकों में सरदार रमना अहाड़ी और अमड़ापाड़ा प्रखंड (पाकुड़, संताल परगना) के आमगाछी पहाड़ निवासी करिया पुजहर और सिंगारसी पहाड़ निवासी जबरा पहाड़िया भारत के आदिविद्रोही हैं।

दुनिया का पहला आदिविद्रोही रोम के पुरखा आदिवासी लड़ाका स्पार्टाकस को माना जाता है। भारत के औपनिवेशिक युद्धों के इतिहास में जबकि पहला आदिविद्रोही होने का श्रेय पहाड़िया आदिम आदिवासी समुदाय के लड़ाकों को जाता हैं जिन्होंने राजमहल, झारखंड की पहाड़ियों पर ब्रितानी हुकूमत से लोहा लिया। इन पहाड़िया लड़ाकों में सबसे लोकप्रिय आदिविद्रोही जबरा या जौराह पहाड़िया उर्फ तिलका मांझी हैं। इन्होंने 1778 ई. में पहाड़िया सरदारों से मिलकर रामगढ़ कैंप पर कब्जा करने वाले अंग्रेजों को खदेड़ कर कैंप को मुक्त कराया। 1784 में जबरा ने क्लीवलैंड को मार डाला।

बाद में आयरकुट के नेतृत्व में जबरा की गुरिल्ला सेना पर जबरदस्त हमला हुआ जिसमें कई लड़ाके मारे गए और जबरा को गिरफ्तार कर लिया गया। कहते हैं उन्हें चार घोड़ों में बांधकर घसीटते हुए भागलपुर लाया गया। पर मीलों घसीटे जाने के बावजूद वह पहाड़िया लड़ाका जीवित था। खून में डूबी उसकी देह तब भी गुस्सैल थी और उसकी लाल-लाल आंखें ब्रितानी राज को डरा रही थी। भय से कांपते हुए अंग्रेजों ने तब भागलपुर के चौराहे पर स्थित एक विशाल वटवृक्ष पर सरेआम लटका कर उनकी जान ले ली। हजारों की भीड़ के सामने जबरा पहाड़िया उर्फ तिलका मांझी हंसते-हंसते फांसी पर झूल गए। तारीख थी संभवतः 13 जनवरी 1785

बाद में आजादी के हजारों लड़ाकों ने जबरा पहाड़िया का अनुसरण किया और फांसी पर चढ़ते हुए जो गीत गाए - हांसी-हांसी चढ़बो फांसी ...! वह आज भी हमें इस आदिविद्रोही की याद दिलाते हैं।

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