कहां गुम हो गई चंपा : अंग प्रदेश की सभ्यता, संस्कृति, संस्कार और ऐतिहासिक विरासत को संजोती थी चंपा

चंपा नदी की धारा वापस लाने के लिए इसके विभिन्न जलस्रोतों को पुनर्जीवित करना होगा। नदी मार्ग से अतिक्रमण हटाना होगा। यह शासन प्रशासन के साथ-साथ जन सहयोग से ही संभव हो पाएगा।

By Dilip ShuklaEdited By: Publish:Thu, 05 Dec 2019 01:58 PM (IST) Updated:Thu, 05 Dec 2019 02:22 PM (IST)
कहां गुम हो गई चंपा : अंग प्रदेश की सभ्यता, संस्कृति, संस्कार और ऐतिहासिक विरासत को संजोती थी चंपा
कहां गुम हो गई चंपा : अंग प्रदेश की सभ्यता, संस्कृति, संस्कार और ऐतिहासिक विरासत को संजोती थी चंपा

भागलपुर [जेएनएन]। चंपा नदी अंग प्रदेश की सभ्यता, संस्कृति, संस्कार और ऐतिहासिक विरासत रही है। इसके बिना भागलपुर शहर की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। चंपा नदी की धारा वापस लाने के लिए इसके विभिन्न जलस्रोतों को पुनर्जीवित करना होगा। नदी मार्ग से अतिक्रमण हटाना होगा। यह शासन प्रशासन के साथ-साथ जन सहयोग से ही संभव हो पाएगा। आज से 50-60 वर्ष पूर्व जब चंपा नदी कलकल करते बहती थी तो इसके पोषक क्षेत्र के लोग खुशहाल थे। भूगर्भ में पर्याप्त पानी था। 1970 के दौर तक चंपा नदी अपने मूल रूप में प्रवाहित होती थी। उस समय यह नदी समुद्र तल से 40 मीटर ऊंचाई पर भागलपुर में बहती थी, जो उत्तर-पूर्व दिशा में चंपानगर के पास गंगा में मिलती थी। मुहाने पर समुद्र तल से इसकी ऊंचाई महज 15 मीटर से भी कम रह गई थी। नदी के पुनर्जीवन के लिए उद्गम स्थल से ड्रोन सर्वेक्षण करना होगा, ताकि इसके वास्तविक स्वरूप का आकलन हो सके। फिर इसके चैनल से गाद हटाकर इसकी जलधारा को गति देनी होगी। नदी के आसपास के जलाशयों एवं तालाबों की सूची तैयार कर उसे समृद्ध करना होगा, ताकि चंपा नदी पर सिंचाई का अतिरिक्त दबाव नहीं पड़ सके।

कतरनी और जर्दालु चंपा से मिला वरदान : देवाशीष बनर्जी

चंपा नदी अंग प्रदेश की सभ्यता, संस्कृति, संस्कार और ऐतिहासिक विरासत रही है। इसके बिना भागलपुर शहर की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। यह नदी कभी भागलपुर की जीवन रेखा हुआ करती थी। दुख होता है, जब चंपा नदी को नाला से संबोधित किया जाता है, जबकि इसी नदी के पानी का शोधन कर शहर में जलापूर्ति होती है। चंपा नदी में पश्चिम और दक्षिण से गंगा, चीर, चानन और बडुआ नदियों के पानी का समावेश होता था। कतरनी चावल और जर्दालु आम की खुशबू इसी के निक्षेपण से मिला वरदान है। इस नदी में पहले जहाज चला करते थे। कोलकाता जाने का जल मार्ग चंपा से होकर ही गुजरता था। हर्षवर्द्धन के शासन काल में चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आए थे। वे चंपा नदी के आसपास की समृद्धि से खासा प्रभावित हुए थे। ईंट से निर्मित 24 फीट ऊंची चंपा की दीवार और चार सुरक्षा मीनार का उन्होंने अपनी किताब में जिक्र किया है। नदी के किनारे सभी धर्मों के मंदिर, मजार और चर्च आज भी अवस्थित हैं। चंपा की धारा से होकर ही सती बिहुला अपने मृत पति बाला के जीवन को वापस लाने के लिए स्वर्गलोक पहुंची थीं। दानवीर कर्ण चंपा नदी में प्रत्येक दिन स्नान के बाद सूर्य को अघ्र्य देते थे। चानन में बालू उत्खनन के कारण नदी की धार मृत प्राय हो रही है, जबकि चानन धारा अभी भी जीवित है। चंपा को फिर से जीवित किया जा सकता है। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री इसे नदियों से जोड़कर जिंदा करे। जल जीवन हरियाली की सार्थकता चंपा नदी को जीवित किए बगैर अधूरी ही रह जाएगी।

जलस्रोत को पुनर्जीवित करने से जीवित होगी चंपा : डॉ. विजय कुमार (अध्यक्ष गांधी विचार विभाग, टीएमबीयू भागलपुर)

चंपा नदी की धारा वापस लाने के लिए इसके विभिन्न जलस्रोतों को पुनर्जीवित करना होगा। नदी मार्ग से अतिक्रमण हटाना होगा। यह शासन प्रशासन के साथ-साथ जन सहयोग से ही संभव हो पाएगा। आज से 50-60 वर्ष पूर्व जब चंपा नदी कलकल करते बहती थी तो इसके पोषक क्षेत्र के लोग खुशहाल थे। भूगर्भ में पर्याप्त पानी था। न पेयजल की समस्या थी न सिंचाई की। कालांतर में जब विकास की किरणें फूटीं तो हमने चंपा नदी को अपना दुश्मन मान लिया। शताब्दी पूर्व झारखंड, बांका और भागलपुर के विभिन्न पहाडिय़ों व जंगलों से उतरती जल धाराएं चंपा में समाहित होकर गंगा को समृद्ध बनाती थी। अब जगह-जगह इसके जल स्त्रोतों के मार्ग में डैम, पुल पुलिया, बांध और छिटके बना दिए गए हैं। परिणामस्वरूप धीरे-धीरे इसके सभी जलस्रोत कमजोर पड़ गए। फिर क्या था सिमटती चंपा पर बालू माफिया और अतिक्रमणकारियों की बुरी नजर पड़ती गई। किसान भी इसकी पेटी में आशियाना बना खेती करने लगे। लोगों ने चंपा नदी को नाला का नाम दे दिया। आज यह हमारी नजरों से गुम होकर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।

जीवित होगी चंपा तो तीनमुहानी बंदरगाह की लौटेगी रौनक : रमन सिन्हा

कलश तीर्थ एवं गंगापुरी नाम सि विख्यात गंगा नदी सुल्तानगंज से आगे बढऩे पर तिलकपुर, भवनाथपुर होते हुए चंपा पंहुचती है। यही पर गंगा की एक उपधारा जमुनिया भी मिलती है। चनन नदी बनी चंपा नदी भी यहीं संगम होता है। यही जगह प्राचीन चंपा का बंदरगाह था। गत वर्ष स्थानीय निवासी अजय भटाचार्य जब बंदरगाह को देखने पहुंचे तो ग्रामीणों ने बताया कि तस्करी का चाईना कोरिया धागा वाली नाव वहीं लगता थी। इसी बंदरगाह से प्राचीन काल के व्यापारी शोणकोटिविंश, महाजनक, चांद सौदागर जैसे व्यापारियों का जहाज रूपी बडे नावों से व्यापार कर चंपा को व्यापारिक नगरी का दर्जा दिलाया था। बताया गया कि महाशय ड्योढ़ी क्षेत्राअंर्तगत लोहा बांस घर ही चांद सौदागर का घर था। वहां तक नावों से सामानों की आवाजाही की जाती थी। आज भी वहां से ढालान जो 15 से 20 फीट होगा, दिखाई पडता है। कम जल रहने पर विदेशी बाबा स्थान तक बडे जहाज आते थे पुन: छोटी नावों से यातायात होता था । इसी बंदरगाह पर दूर से आने वाले जहाज भी लंगर डालकर रसद पानी इंतजाम कर आगे बढते थे। चंपा जीवित हो जायेगी तो फिर से व्यापारिक गतिविधियां बढ जायेगी तो आर्थिक रूप से चंपा भी मजबूत होगी। फिलहाल तीनमुहानी को प्रशासन स्टीमर या सुरक्षित नौकाओं से पर्यटकों को घुमाकर ईको टूरिज्म के रूप विकसित किया जा सकता है ।

खगडिय़ा से नाव पर आता था अनाज

चंपा नदी में कभी तेज और अविरल धारा बहती थी। यह सदानीरा थी। बारह मास इसकी पेटी में 10 से 15 फीट तक पानी रहता था। नाथनगर विधानसभा क्षेत्र से 1980 से 85 तक विधायक रहे तालिब अंसारी बताते हैं कि 1980 से पहले तक नदी में 10 से 15 फीट तक पानी होता था। चंपा पुल के नीचे से होकर 60 से अधिक नावें चलती थीं। यहां खगडिय़ा और नारायणपुर से अनाज पहुंचता था। उन्होंने इसी नदी में तैरना सीखा। 1985 के बाद धीरे-धीरे चंपा नदी में पानी का प्रवाह बाधित हो गया। संभवत: बालू के अत्यधिक खनन से ऐसा हुआ। 1995 के बाद तो नदी मृत अवस्था में पहुंच गई। अब बरसात में ही पानी आता है। चंपा नदी के स्वरूप के साथ छेड़छाड़ देख मन आहत होता है। निगम के कूड़े और नाले की वजह से नदी अब नाला बनकर रह गई। इसका असर भूजल स्तर पर भी पड़ा है। 1975 के करीब 15 फीट गहराई में पानी मिलता था। अब 60 फीट नीचे भी पानी नहीं मिलता है।

खुशहाल थे किसान, कम लागत में खूब होती थी उपज

भागलपुर-बांका सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक के पूर्व चेयरमैन आनंदी प्रसाद मंडल (80 वर्ष) बताते हैं कि 1954 में जब वे नरगा स्थित सीएमएस स्कूल पढ़ते थे, आने-जाने का एकमात्र साधन नाव ही था। तब चंपा नदी में 50 फीट तक पानी रहता था। पाट की चौड़ाई पांच सौ मीटर के आसपास थी। तेज बहाव रहता था। पानी बिल्कुल साफ था। लोग इसका जल घड़े में भरकर पीने के लिए ले जाते थे। आसपास के खेतों की सिंचाई भी इससे हो जाती थी। किसान खुशहाल थे। कम लागत में अधिक उपज हो जाती थी। 1980 से 95 के बीच नदी की धारा कमजोर पड़ती चली गई। मुख्य स्रोत चानन से इसका संपर्क भंग होने लगा था। तब शहर भर का कचरा इस नदी में नहीं गिराया जाता था। अब तो शहर भर के कचरे से नदी को पाट दिया गया है। नाथनगर इलाके में हानिकारक रसायन वाला पानी नदी में गिराया जाने लगा। इसने नदी को दूषित कर दिया। सबसे पहले तो चंपा नदी के उद्गम स्रोत को खोलने की जरूरत है। इसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत है।

उदगम स्थल का सर्वेक्षण जरूरी : डॉ. डीएन चौधरी (पर्यावरणविद्, भागलपुर)

चंपा की धारा को लौटाने के लिए इसके उद्गम स्थल का गहन सर्वेक्षण कराना होगा। इसके आसपास और दोनों छोर पर बढ़ता अतिक्रमण इसके सूखने का मुख्य कारण है। सरकार को भी इस दिशा में पहल करनी होगी। उद्गम से लेकर गंगा के मुहाने तक चंपा की पेटी से गाद हटाने की भी आवश्यकता है। चंपा के आसपास की ताल-तलैया को भी समृद्ध करना होगा। इसमें जल का संग्रहण और संरक्षण करना होगा। यही ताल-तलैये भूगर्भ के जलस्तर को स्थिर रखकर नदी को जीवन प्रदान करती हैं।

इतना पानी था कि नाव से आते थे कजरैली बाजार

चंपा नदी से लेकर महमूदा की धारा में जहां तेज बहाव हुआ करता था, वहां अब सिर्फ खाई बच गई है। 50 साल पहले महमूदा का पाट काफी चौड़ा था। इसमें नाव चला करती थी। कनकैथी के 85 वर्षीय ग्रामीण रामदेव चौधरी कहते हैं कि कजरैली बाजार आने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता था। नदी का पानी ही पीने के भी काम आता था। इसकी धारा सीधे चंपा नदी में जाकर मिलती थी। तब काफी चौड़ी थी और बरसात के दिनों में चानन का पानी महमूदा में तेज धारा से बहता था। इससे किसानों को कभी भी धान की खेती में सिंचाई की समस्या नहीं हुई। बहरागाछ के पास महमूदा का मुहाना सुख जाने से अब किसानी छोड़ लोग मजदूरी के लिए विभिन्न राज्यों में पलायन करने लगे हैं। चानन का पानी इस वर्ष भी आया, लेकिन धारा को ही अवरुद्ध कर दिया गया है। अधिकांश जगहों पर अतिक्रमण कर लिया गया। जो बचा था कूड़ा गिराकर बंद करने का प्रयास हो रहा है। कनकैथी में तो इसकी धारा को ही कूड़ा डंपिंग ग्राउंड बना दिया।

कभी चिडिय़ों की चहचहाहट से गूंजती थी चंपा

नाथनगर के सजय कुमार झा उर्फ बंटू के यादों में चंपा नदी का वो स्वरूप अब भी बसा हुआ है। वे बताते हैं कि चंपा की अविरल धारा और तटों की हरियाली सुकून पहुंचाती थी। चंपा पुल से दोगच्छी तक दर्जनों बरगद, पीपल, महोगनी और अर्जुन के विशाल पेड़ों पर चिडिय़ा का बसेरा था। इसकी चहचहाहट मन को सुकून देती थी। चाहे जितनी गर्मी हो यहां पेड़ की छांव में काफी ठंडक थी। लोग स्वास्थ्य लाभ लेने वहां जाया करते थे। 1995 के बाद नगर निगम ने कूड़ा गिराकर नदी के तट को संर्कीण करना शुरू किया। डेढ़ सौ वर्ष पुराने सौ से अधिक वृक्ष नष्ट कर दिए गए। दरियापुर के समीप छवनिया से होकर चंपा नदी 60 फीट चौड़ाई में बहती थी। अब इसकी पेटी 25 मीटर में सिमट गई है। स्थानीय किसानों ने बांध बनाकर नदी की धारा को रोक दिया है। 30 साल पहले तक नदी में घुटने भर पानी प्रवाहित होता था। बरसात में 15 फीट तक गहरा बहाव था। नदी के स्रोत में बालू भर जाने और अतिक्रमण ने प्रवाह बंद कर दिया। पानी बहता रहे, इसके लिए बेरमा से स्रोत खोलने की जरूरत है।

जलधारा को गति प्रदान करने से चंपा होगी पुनर्जीवित : प्रो. बीके विमल (सहायक प्राध्यापक सह कनीय वैज्ञानिक, बीएयू सबौर)

1970 के दौर तक चंपा नदी अपने मूल रूप में प्रवाहित होती थी। उस समय यह नदी समुद्र तल से 40 मीटर ऊंचाई पर भागलपुर में बहती थी, जो उत्तर-पूर्व दिशा में चंपानगर के पास गंगा में मिलती थी। मुहाने पर समुद्र तल से इसकी ऊंचाई महज 15 मीटर से भी कम रह गई थी। धीरे-धीरे नगरीकरण और जनसंख्या के बढ़ते दबाव से इसके अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा। वर्तमान में यह नदी विलुप्त होती अवस्था में पहुंच गई है, जो गंभीर चिंता का विषय है। इस नदी के पुनर्जीवन के लिए उद्गम स्थल से ड्रोन सर्वेक्षण करना होगा, ताकि इसके वास्तविक स्वरूप का आकलन हो सके। फिर इसके चैनल से गाद हटाकर इसकी जलधारा को गति देनी होगी। नदी के आसपास के जलाशयों एवं तालाबों की सूची तैयार कर उसे समृद्ध करना होगा, ताकि चंपा नदी पर सिंचाई का अतिरिक्त दबाव नहीं पड़ सके। मानक के विरुद्ध बालू के खनन पर रोक लगानी होगी। नदी प्राकृतिक संसाधन होती है। इसे संरक्षित रखने के लिए जन जागरुकता अभियान चलाने की जरूरत है।

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