विदा होता रमजान, दो दिनों बाद ईद

रमजान के अंतिम जुमा (अलविदा) की नमाज के साथ ईद के आने की दस्तक हो गई।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 24 Jun 2017 03:09 AM (IST) Updated:Sat, 24 Jun 2017 03:09 AM (IST)
विदा होता रमजान, दो दिनों बाद ईद
विदा होता रमजान, दो दिनों बाद ईद

भागलपुर। रमजान के अंतिम जुमा (अलविदा) की नमाज के साथ ईद के आने की दस्तक हो गई। 27वां रोजा पूरा होते ही ईद को बस दो दिन शेष रह गए। शहर व आसपास की मस्जिदों में बड़ी संख्या में लोगों ने अलविदा की नमाज अदा की।

खानकाह आलिया शहबाजिया, शाहजंगी ईदगाह, शाह मार्केट, भीखनुपर, बरहपुरा, खंजरपुर, तातारपुर, शाही मस्जिद जब्बारचक, हुसैनपुर, मोजाहिदपुर, हुसैनाबाद, हबीबपुर, चंबेलीचक, सदरउद्दीन चक, चंपानगर, नरगा और मीर ग्यासचक समेत शहर व आसपास की मस्जिदों में बड़ी संख्या में लोगों ने अलविदा की नमाज अदा की।

शाहजंगी ईदगाह में अलविदा की नमाज से पूर्व पेश इमाम मौलाना अशरफी ने अपनी तकरीर में रमजान की बरकत व रहमत के बारे में नमाजियों को बताया। उन्होंने जकात व फित्रे की बाबत लोगों को बताते हुए कहा कि जो दौलतमंद लोग हैं उनपर जकात वाजिब है। फित्रे की राशि ईद की नमाज अदा करने से पूर्व गरीबों में बांट देनी चाहिए। दौलतमंद लोगों के लिए नकद राशि और सोने-चांदी का जकात निकालना वाजिब है। जिनके पास सात तोला सोना या उससे अधिक हो और 52 तोला चांदी या उससे अधिक हो या उनकी कीमतों के बराबर उनके पास नकद राशि हो, उन्हें उस राशि की ढाई फीसद रकम निकालकर गरीबों में बांटना वाजिब है। जकात एक साल के अंदर किसी भी महीने निकाला जा सकता है, लेकिन रमजान में जकात निकालना अफजल माना जाता है। अपनी तकरीर में मौलाना अशरफी ने यह भी कहा कि रमजान का रोजा रखने वाले हैसियत वाले लोग जब तक जकात और फित्रे की राशि निकाल कर गरीबों में नहीं बांट देते तब तक उनके रोजे को अल्लाह कबूल नहीं करता।

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