प्रदूषण से बढ़ रहे अस्थमा के मरीज
भागलपुर। बीड़ी, सिगरेट, धुंआ और प्रदूषित वातावरण से देश में अस्थमा के मरीजों की संख्या में वृद्धि हो रही है। इसके अलावा भावनात्मक गुस्सा करने से भी अस्थमा का अटैक होता है। ये बातें जवाहरलाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल के मेडिसीन विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. हेम शंकर शर्मा ने रविवार को आयोजित प्रेसवार्ता में कहीं।
भागलपुर। बीड़ी, सिगरेट, धुंआ और प्रदूषित वातावरण से देश में अस्थमा के मरीजों की संख्या में वृद्धि हो रही है। इसके अलावा भावनात्मक गुस्सा करने से भी अस्थमा का अटैक होता है। ये बातें जवाहरलाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल के मेडिसीन विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. हेम शंकर शर्मा ने रविवार को आयोजित प्रेसवार्ता में कहीं।
उन्होंने कहा कि अधिकांश लोग अब व्यायाम करना और टहलना छोड़ चुके हैं। इससे फेफड़ा भी कमजोर हो रहा है। टहलने और नियमित व्यायाम करने से सांस तेज चलती है। इससे फेफड़े में ज्यादा ऑक्सीजन पहुंचता है और फेफड़ा स्वस्थ रहता है। कमजोर फेफड़े से अस्थमा होने की संभावना ज्यादा हो जाती है। फेफड़े की कितनी क्षमता है इसके लिए पल्मोनरी जांच से जानकारी मिलती है। फेफड़ा जितना कम काम करेगा, बीमारी उतनी ही बढ़ेगी। फेफड़े की कार्यक्षमता पूरे शरीर को प्रभावित करती है। उन्होंने कहा कि भारत में 15 से 20 मिलियन लोग अस्थमा से पीड़ित हैं।
अस्थमा के लक्षण
छाती में जकड़न, सांस लेने में परेशानी, सुबह खांसी होना, कफ सीरप या दवा सेवन के बाद भी लगातार खांसी होना।
अस्थमा होने के कारण
हवा में उड़ते परागकण, बंद कमरे की धूल का सांस द्वारा फेफड़े में जाना, ठंड से एलर्जी होना, बीड़ी, सिगरेट, हुक्का आदि पीना, जानवरों के फर के संपर्क में आना आदि इसके कारण हैं। इसके अलावा भावनात्मक गुस्सा करने से भी अस्थमा का अटैक हो सकता है।
क्यों होती है बीमारी
एलर्जी होने अथवा धूलकण सांस द्वारा जब फेफड़ा में जाते हैं तो सांस की नली में सिकुड़न होने लगती है। इससे फेफड़े में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और सांस फूलने लगती है।
मुकम्मल नहीं है इलाज
अस्थमा इलाज से दूर नहीं किया जा सकता है। इन्हेलर से कम किया जा सकता है। सांस की गति ठीक होते ही लोग इन्हेलर लेना छोड़ देते हैं इसे बंद नहीं करना चाहिए।