कोसी का बांस नहीं रहेगा कमजोर देगा असम को जोर

सुपौल [मिथिलेश कुमार]: कोसी का सुपौल जिला बांस उत्पादन के लिए भी जाना जाता है। वर्तमान समय में भी जि

By JagranEdited By: Publish:Thu, 10 May 2018 12:12 PM (IST) Updated:Thu, 10 May 2018 12:12 PM (IST)
कोसी का बांस नहीं रहेगा कमजोर देगा असम को जोर
कोसी का बांस नहीं रहेगा कमजोर देगा असम को जोर

सुपौल [मिथिलेश कुमार]: कोसी का सुपौल जिला बांस उत्पादन के लिए भी जाना जाता है। वर्तमान समय में भी जिले से अन्य प्रदेशों को बांस भेजे जाते हैं। जिले से गुजरने वाले एनएच व फोरलेन पर बांस लदी गाड़ियां अक्सर दिख जाती है। पर विडंबना है कि यहां की बांस लंबाई-मोटाई व क्वालिटी में अच्छी नहीं मानी जाती। बांस उत्पादक किसानों को ऐसे बांसों की उचित कीमत भी नहीं मिल पाती। नतीजा रहा कि धीरे-धीरे किसानों की दिलचस्पी बांस उत्पादन के प्रति घटती चली गई। जबकि जिले में बांस उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। अब टीशू कल्चर लैब की मदद से बांस कोसी के इलाके को नई पहचान दिलाएगी।

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बांस उत्पादक किसानों की बदलेगी दशा दिशा

बांस उत्पादक किसानों की दशा और दिशा बदले, उन्हें भी अपने उत्पाद की सही व उचित कीमत मिले और किसान उत्साह के साथ बांस की खेती को बढ़ावा दे इस दिशा में सरकार भी सजग हुई है। बांस उत्पादक किसानों के चेहरे पर मुस्कान बिखरे इसको ले सरकार ने पहल की है। 9 सितंबर 2015 को बिहार के तत्कालीन वाणिज्यकर व उर्जा मंत्री विजेन्द्र प्रसाद यादव एवं भवन निर्माण मंत्री दामोदर राउत ने सुपौल पहुंचकर बीएसएस कॉलेज परिसर में टीशू कल्चर लैब की आधारशिला रखी। लैब का भवन बन कर तैयार हो चुका है और अब बस उद्घाटन का इंतजार है। आने वाले दिनों में इस लैब की मदद से बांस उत्पादन को चार चांद लगेंगे।

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यहां के बांस भी अब होंगे लंबे-मोटे

जहां तक बांस की क्वालिटी की बात है तो लैब के माध्यम से इस इलाके के बांस भी अब क्वालिटी युक्त होंगे। बांस की मोटाई और लंबाई बढ़ेगी और बांस उत्पादक किसानों को उनके उत्पाद की सही कीमत मिल पाएगी। पड़ोसी राज्य असम के बांस और कोसी के सुपौल जिले के बांस में काफी भिन्नता है। असम के बांस लंबे और मोटे होने के साथ-साथ उनकी क्वालिटी भी अच्छी होती है। इसी तकनीक को टीशू कल्चर लैब के माध्यम से इलाके में आजमाया व अपनाया जाएगा। अब तो सरकार ने बांस काटने व बेचने पर प्रतिबंध भी हटा लिया है। लैब की सहायता से बांस उत्पादन को चार चांद लगेंगे ही, किसानों के चेहरे पर भी मुस्कान दिखेगी।

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