अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद कर रहा सुपौल का चौघटिया कुआं, लोकगाथा भगैत में भी है इसका जिक्र

अपने अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद सुपौल का चौघटिया कुआं कर रहा है। गोठ बरुआरी पंचायत के मोहनिया गांव में बाबा हजारी महादेव मंदिर के समीप ये कुआं स्थित है। लोकगाथा भगैत में भी है इस चौघटिया कुआं का जिक्र अब इसकी हालत हो गई है जर्जर।

By Shivam BajpaiEdited By: Publish:Sat, 22 Jan 2022 10:59 AM (IST) Updated:Sat, 22 Jan 2022 10:59 AM (IST)
अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद कर रहा सुपौल का चौघटिया कुआं, लोकगाथा भगैत में भी है इसका जिक्र
जर्जर होता जा रहा है कुआं, जीर्णोद्धार की मांग।

संवाद सूत्र, लौकहा बाजार (सुपौल) : शुद्ध पेयजल को लेकर सरकार द्वारा योजनाएं संचालित की जा रही है लेकिन इस दौर में कुएं उपेक्षित हैं। कभी कुआं जल संरक्षण का महत्वपूर्ण साधन होता था। तपती धूप में कुआं राही-मुसाफिरों के लिए पानी पीने का एक मात्र जरिया हुआ करता था परंतु अब इसके अस्तित्व पर खतरे का बादल मंडरा रहा है। सदर प्रखंड के गोठ बरुआरी पंचायत के मोहनिया गांव में परसरमा-सिंहेश्वर मुख्य सड़क के किनारे बाबा हजारी महादेव मंदिर के समीप प्रसिद्ध चौघटिया कुआं अपने अस्तित्व बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहा है।

यहां लोग करते थे स्नान पूजा

बता दें चौघटिया कुआं का जिक्र आज भी लोग लोकगाथा भगैत में सुनते हैं। भगैत गायक जुगो यादव बताते हैं कि इस कुएं का जिक्र भगैत में भी है। लोकगाथा में कहा गया है कि जो लोग इस होकर गुजरते थे वे बाबा हजारी महादेव की पूजा करते थे। पूजा से पूर्व लोग इस कुआं पर स्नान करते थे। इस कुएं का जल पीते थे। इसके अलावा पहले लोगों के लिए सिंचाई का साधन भी कुआं होता था। लोग खेती के लिए भी कुआं खुदवाते थे। यह सब बात पुरानी हो गई फिलहाल यह कुआं जर्जर हालत में है। इसके चारों ओर जंगली घास-फूस उग आए हैं। स्थानीय भूषण यादव, सिंटू यादव, राधेरमण यादव, शंकर यादव, नीरज आदि ने जिलाधिकारी से इसके जीर्णोद्धार की मांग की है।

जल संरक्षण का बेहतर माध्यम है कुआं

जलाशयों पर लगातार कार्य कर रहे स्वयंसेवी संस्था ग्राम्यशील के चंद्रशेखर बताते हैं कि पहले कुआं पानी उपलब्ध कराने के साधन ही नहीं होते थे बल्कि यह सामाजिक सह अस्तित्व के पोषक भी होते थे। लोग कुआं खुदवाना धर्म का कार्य मानते थे। वाकई यह धर्म का कार्य था भी। लोग यहां अपनी प्यास बुझाते थे। नहाने और खाना बनाने के लिए पानी की व्यवस्था भी कुएं से होती थी। खेती के लिए भी लोग कुएं खुदवाते थे। इससे वर्षा जल का संग्रहण होता था और पानी की बर्बादी कम होती थी। लोग बाल्टी से पानी निकालते थे और जितनी आवश्यकता होती थी उतना खर्च करते थे। पानी में बार-बार बाल्टी के आने से कुएं का पानी स्वच्छ रहता था। आज जब भूजल का स्तर गिर रहा है तो कुओं का संरक्षण आवश्यक हो गया है।

chat bot
आपका साथी