बांका के सूईया पहाड़ के चकमक पत्थर की भूटान हो रही तस्करी

बांका के चकमक पत्‍थर का उपयोग भूटान में कांच के बर्तन और सफेद सीमेंट बनाने में उपयोग हो रहा है। सूईया पहाड़ के आसपास भारी मात्रा में हैं सफेद चकमक पत्थर है।

By Dilip ShuklaEdited By: Publish:Fri, 04 Sep 2020 08:59 AM (IST) Updated:Fri, 04 Sep 2020 08:59 AM (IST)
बांका के सूईया पहाड़ के चकमक पत्थर की भूटान हो रही तस्करी
बांका के सूईया पहाड़ के चकमक पत्थर की भूटान हो रही तस्करी

बांका [राहुल कुमार]। सूईया पहाड़ के सफेद चकमक पत्थरों को तोड़कर पिछले दो साल से माफिया भूटान भेज रहे हैं। झारखंड के गिरीडीह और जमुई के पत्थर माफिया कुछ स्थानीय लोगों को प्रलोभन देकर इसकी तस्करी कर रहे हैं। सूईया पहाड़ के आसपास के जंगलों में बड़ी मात्रा में चमकीले पत्थर बिखरे पड़े हैं। यह काफी मजबूत और चिकना होता है।

स्थानीय माफिया मजदूर की सहायता से इसे तुड़वाकर ट्रक-हाईवा के सहारे भूटान पहुंचा देते हैं। लेदमा, बेलाबथान, हरणखुटी आदि के जंगलों में इसका कारोबार खूब हो रहा है। वन विभाग के भीतिया बिट के जंगलों में यह काम हो रहा है। स्थानीय लोगों ने बताया कि सफेद चकमक पत्थर आसपास के जंगलों में काफी मात्रा में हैं। एक ट्रक पत्थर देने पर स्थानीय माफिया को 45 हजार रुपये मिलते हैं। स्थानीय माफिया अधिकतम 10 हजार रुपये में इन पत्थरों को जमा करवा लेते हैं। यह पत्थर भूटान पहुंचकर दो लाख रुपये का हो जाता है। जानकारों के अनुसार इस पत्थर का प्रयोग वहां कांच के बर्तन और सफेद सीमेंट बनाने के अलावा चावल पॉलिश करने में भी होता है। पिछले दिनों बेलहर एसडीपीओ ने जंगल में छापेमारी कर चार पत्थर लदे ट्रक जब्त किए गए हैं। बावजूद, जंगल में पत्थर तोडऩे का काम जारी है। जंगल में कई जगहों पर पत्थरों के ढेर देखे जा सकते हैं।

सूईया क्षेत्र में पुलिस ने चकमक पत्थरों से लदे चार ट्रक जब्त किए हैं। इस संबंध में मामला दर्ज कराया गया है। कुछ स्थानीय माफिया भी इससे जुड़े हुए हैं। सफेद पत्थर से कांच के बर्तन बनाए जाते हैं। इस कारण भूटान में इसकी मुंहमांगी कीमत मिलती है। पुलिस और खनन विभाग इस पर लगाम लगाने के लिए सक्रिय है। - महेश्वर पासवान, जिला खनन विकास पदाधिकारी, बांका

देश भर के कांवरिया निशानी के तौर पर ले जाते साथ

सुईया पहाड़ का यह चकमक पत्थर देश भर से कांवर यात्रा पर आने वाले लोगों के आकर्षण का केंद्र रहा है। कांवरिया पैदल यात्रा के दौरान पत्थर पर ध्यान जाने पर वे निशानी के तौर पर  इसका टुकड़ा साथ रख लेते थे। बड़ा चिकना पत्थर उनके बैठने के लिए भी आरामदेह होता था। मगर माफिया की नज़र पड़ने से चकमक पत्थर लगातार समाप्त हो रहा है। गांव-गांव में लोग इस कारोबार से जुड़कर जंगल की खूबसूरती को नष्ट कर रहे हैं। ग्रामीण सियाराम यादव, चिंता सोरेन, शंकर हेम्ब्रम आदि ने बताया कि दिनरात पत्थर के खनन से जंगल में आसाजिक तत्वों का जुटान रहता है। यह जंगल की सुरक्षा के लिए खतरा है।

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