आस्था के मेले में दिख रही भक्ति की शक्ति

कांवरिया पथ से [नवनीत मिश्र] उत्तरवाहिनी गंगा का पवित्र जल हमें बाजार से दूर पुराण, विश्वास, श्रद्ध

By Edited By: Publish:Sat, 30 Jul 2016 03:33 AM (IST) Updated:Sat, 30 Jul 2016 03:33 AM (IST)
आस्था के मेले में दिख रही भक्ति की शक्ति

कांवरिया पथ से [नवनीत मिश्र] उत्तरवाहिनी गंगा का पवित्र जल हमें बाजार से दूर पुराण, विश्वास, श्रद्धा, संस्कृति व उत्सव की एक अभिभूत दुनिया में ले जाता है। इसी का साक्षात्कार कराता है विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला। सुल्तानगंज से कावर लेकर चल रहे कावरियों की संख्या लाखों में है। यह पवित्र गंगाजल और शिव के प्रति समर्पण का अनुष्ठान है, क्योंकि कोई भी बाजार या अर्थव्यवस्था इतनी बड़ी संख्या में लोगों को पैदल नहीं चलवा सकती। वे जल के मूल्य का आकलन उसके बाजार भाव से नहीं, बल्कि इसके आध्यात्मिक आधार पर करते हैं।

शुक्रवार को एक बार फिर कांवरिया पथ केशरिया रंग में रंग गया। बुधवार व गुरुवार को सुल्तानगंज से जल भरकर बाबा वैद्यनाथ की नगरी निकलने वाले कांवरियों की संख्या कम हो गई थी, वहीं शुक्रवार को कांवरिया पथ कांवरियों से पट गया। सुल्तानगंज से छत्रहार मोड़ तक कांवरिया पथ केशरियामय हो गया था। बोल-बम व हर-हर गंगे के जयघोष से पूरा वातावरण प्रफुल्लित था। कांवर की रून-झुन आवाज श्रद्धालुओं में जोश भर रही थी।

भक्ति की गवाह बन रही गोड़ियारी नदी :

कोरिया और गौरीपुर पंचायत की सीमा पर पड़ने वाला कांवरिया पथ गोड़ियारी नदी से होकर गुजरता है। यह नदी न सिर्फ एक बार फिर भक्ति का गवाह बन रही है बल्कि आकर्षण के साथ कांवरियों को राहत भी प्रदान कर रही है। वेसे तो पूरे दिन इस नदी में कांवरियों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन शाम के समय इसकी छटा देखते ही बनती है। बच्चे हों या बूढ़े, महिलाएं हों या पुरुष, गोड़ियारी नदी की निर्मल धारा के बीच आनंद उठाते हैं। यहां हर कोई केशरिया पोशाक में ही दिखता है। ठेलों पर चाट-पकौड़े बेच रहे दुकानदार हो या फिर कांवरियों की फोटोग्राफी करने वाले फोटोग्राफर, नदी के किनारे लगाई गई लाल-पीली फाइबर की कुर्सियों एवं सजाए गए बड़े-बड़े घोड़े आकर्षण के केंद्र मे होते हैं। कांवरिया पथ पर इस आकर्षक जगह पर लिट्टी 20 रुपये प्रति प्लेट, केला 20 से 40 रुपये प्रति दर्जन, सेब 80 से 120 किलो, भुट्टा 5 से 10 प्रति पीस और चाट 10 से 20 प्रति प्लेट बिक रहा है।

कांवरियों को सुकून का एहसास करा रही नदी :

वहीं कांवरिया कुर्सी पर बैठकर छोले और चाट का आनंद लेते हैं। नदी की कल-कल करती ध्वनि और कांवरियों के शोर के बीच यहां का माहौल काफी खुशनुमा है। कांवरिया की जल क्रीड़ा को देख कर कोई सहसा ही कह सकता है कि यह कांवरिया पथ नहीं बल्कि पिकनिक स्पॉट है। यहां आने वाला हर कांवरिया नदी के पानी में कुछ देर के लिए जरूर रुकता है और नदी का आनंद लेकर ही आगे बढ़ता है। गोरखपुर के मनोज बम, सहरसा के राजू बम, नेपाल के राजेश थापा, गया के कैलाश बम, मंटू बम इत्यादि का मानना है कि गंगाधाम से गोड़ियारी नदी तक की थकान इस नदी में प्रवेश करते ही मिट जाती है। इसलिए हर कांवरिया कुछ देर के लिए यहां रुककर अपनी थकान मिटाता है।

कठिन दिनचर्या व मन में श्रद्धा का नाम है कांवर यात्रा :

कहा जाता है कि सावन के महीने में भगवान शिव कैलाश से उतरकर बाबाधाम में विराजमान हो जाते हैं और अपने भक्तों की प्रार्थना सुनते हैं। इस महीने सुल्तानगंज से देवघर तक कांवर लिए भक्तों की भारी भीड़ देखी जा सकती है। दरअसल, कावर शब्द संस्कृत के कावारथी से बना है। यह एक तरह की बहंगी होती है जो बास की फट्ठी से बनाई जाती है। यह कावर में तब तब्दील होती है, जब वैदिक अनुष्ठान के साथ गंगाजल का भार इससे जुड़ जाता है। शिवभक्त इसे फूलमाला, घटी और घुंघरुओं से खूब सजाते हैं, जिसके बाद यह काफी आकर्षक हो जाती है। कहते हैं कि शिवभक्त लंका नरेश रावण पहला कावरिया था। इसके अलावा मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने भी शिव को कावर में गंगा जल लाकर चढ़ाया था। कावरिया अपनी यात्रा के दौरान कड़े व्रत-नियमों का पालन करते हैं। वह इस दौरान हलचल भरी दुनिया से दूर वैराग्य सा जीवन बिताते हैं और ब्रह्मचर्य, शुद्ध विचार, सात्विक आहार और नैसर्गिक दिनचर्या का पालन करते हैं। दरअसल, कावर यात्रा को जीवन यात्रा के प्रतीक स्वरूप समझा जा सकता है, जिसका उद्देश्य इस कठिन यात्रा को अनुशासन, सात्विकता और वैराग्य के साथ ईश्वर तक पहुंचना है।

पूजा एक पर यात्रा के अलग-अलग हैं रूप :

कावर और उसे लेकर चलने वाले कावरिया मुख्यत: चार तरह के होते हैं। सामान्य कावरिये, जो अपनी यात्रा के दौरान जहा चाहे कावर स्टैंड पर रखकर आराम कर सकते हैं। लेकिन डाक कावरियों को लगातार चलते रहना पड़ता है। वह यात्रा की शुरुआत से शिव के जलाभिषेक तक बगैर रुके लगातार चलता रहता है। दाडी कावरियों को सुल्तानगंज से शिवधाम तक की यात्रा दंड देते हुए पूरी करनी पड़ती है। खड़ी कावर भक्त आराम करते हैं, तो सहयोगी अपने कंधे पर उनकी कावर लेकर चलने के अंदाज में हिलाते-डुलाते रहते हैं।

पांव में छाले, माथे पर पसीना, फिर भी विश्वास अडिग :

सावन में जेठ जैसी तेज धूप और उमस के बाद भी शिव भक्तों के कदम कमजोर नहीं पड़ रहे हैं। तेज धूप के कारण कांवरियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन, इन सब के बावजूद उनके कदम नहीं डिग रहे हैं। कांवरिया पथ बोलबम के नारे से गूंज रहा है। बड़ी संख्या में सुल्तानगंज से कांवरिया जल लेकर बाबाधाम की तरफ बढ़ रहे हैं। गुरुवार को कांवरिया पथ में दिखी थोड़ी विरानगी दिखी लेकिन शुक्रवार को इस पथ पर फिर से श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ गयी। सुल्तानगंज से कुमरसार तक कांवरियों का हुजूम दिख रहा है। लेकिन, पथ पर बालू बिछाव की असमानता भी बमों की राह में रोड़े बन रहे हैं।

कहीं पांव जला रहा तो कहीं गायब है बालू :

कांवरिया पथ पर धौरी से लेकर शिवलोक तक बालू की परत मोटी हो गयी है। सामान्य तौर पर तो यह आरामदायक है लेकिन बारिश नहीं होने के कारण अभी धूप में यह बालू गर्म हो जा रहा है। लेकिन शिवलोक से आगे बढ़ने पर चंदन नगर से आगे जिलेबिया तक पथ पर कहीं बालू नहीं दिख रहा है। अबरखा के पहले दर्शनियां के आसपास भी पथ की यही हालत है। जिलेबिया पहाड़ से आगे बढ़ने पर गडुआ पहाड़ और सूइया पहाड़ की पक्की सीढ़ी भी धूप में तप रही है। पूर्व में बालू वाले पथ के ऐसे हिस्सों पर दोपहर के वक्त पानी छिड़काव का इंतजाम होता था। इससे अबकी मौसम के साथ प्रशासन भी बम को सहारा देने से किनारा कर रहा है।

कांवरियों के भजन-कीर्तन से भक्तिमय हुआ माहौल :

कांवरिया पथ पर आस्था का जनसैलाब दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। बाबाधाम जाने वाले वाले कांवरियों की संख्या में हर रोज बढ़ोतरी हो रही है और श्रावणी मेला परवान चढ़ता जा रहा है। कांवर यात्री मार्ग की बाधाओं को दरकिनार करते हुए दोगुने उत्साह के साथ बाबाधाम की ओर कूच कर रहे हैं। कांवरिया पथ पर भजन-कीर्तन गाते आस्था से लबरेज भक्तों की टोली रात-दिन रवाना हो रही है। इस दौरान भक्ति के तरह-तरह के दृश्य कांवरिया मार्ग पर देखने को मिल रहा है।

भोले भंडारी सुन लो विनती हमारी :

श्रद्धालुओं का जत्था सुल्तानगंज स्थित उत्तरवाहिनी गंगा का जल कांवर में भरकर हारमोनियम, ढोलक, डफली आदि बजाते, भजन-कीर्तन गाते और नाचते देवघर जा रहा है। इससे कांवर यात्रियों को थकान का एहसास नहीं होता है। साथ ही रास्ता भी जल्द ही कट जाता है। कांवरिया मार्ग पर जगह-जगह शिवभक्त टोली में बैठकर भी भजन कीर्तन गाते दिख रहे हैं। हे भोले नाथ अबकी सावन में हमरों सुनी ल.., सावन का महीना पावन.. कांवरिया झूमे शिव के द्वार... जैसे शिव गीतों के बोल हर जगह सुनाई दे रहे हैं। साथ ही देश के विभिन्न हिस्सों से आए कांवरियों के कारण संस्कृतियों का समिश्रण भी दिख रहा है।

भोलेनाथ के भक्तों का हो रहा आर्थिक शोषण :

वहीं प्रशासन द्वारा भी कांवरियों की सुविधा का ख्याल रखा जा रहा है। कहीं-कहीं मार्ग पर दुकानदारों द्वारा कांवरियों का आर्थिक शोषण भी किया जा रहा है। वहीं कुछ होटल संचालक द्वारा कांवर यात्रियों को बासी भोजन भी परोस दिया जा रहा है। पथरीले मार्ग पर चलने से कुछ कांवरियों के पैर जख्मी हो जा रहे है। बावजूद इसके उनकी यात्रा के प्रवाह में कोई रुकावट नहीं दिखती है।

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