जल प्रबंधन की बदहाली छीन रही खेती की खुशहाली

By Edited By: Publish:Tue, 19 Aug 2014 07:21 PM (IST) Updated:Tue, 19 Aug 2014 07:21 PM (IST)
जल प्रबंधन की बदहाली छीन रही खेती की खुशहाली

- हर साल नदियां मचाती है तबाही

- नदियों के जल से करोड़ों की फसल होती है बर्बाद

अररिया, जागरण संवाददाता : छह साल पहले कोसी ने इस इलाके में वापसी की जोरदार दस्तक दी थी। लेकिन यह चेतावनी भी शायद बेअसर रही। ताजा बाढ़ को देख कर यही प्रतीत होता है कि यहां के राजनीतिक रहनुमा व सरकारी हुक्मरान पानी को मैनेज करने के मामले में सचेत नहीं हैं। बाढ़ आती है। सब कुछ छीन ले जाती है। किसान हाथ मलते रह जाते हैं और मजदूरों के सामने पलायन के सिवा कोई चारा नहीं बचता।

कटाव व बरबादी बन गयी है हकीकत

जिले के छह प्रखंडों की लगभग दस लाख की आबादी हर साल प्रभावित होती। नयी नयी विकसित ग्रामीण यातायात व्यवस्था का तो दम ही टूट गया। हर साल करोड़ों की खेती डूब जाती है। प्रशासन के रिकार्ड में बरबादी के अध्याय लिखे मिल जायेंगे, लेकिन इस बरबादी से उबरने का कोई सार्थक प्रयास नजर नहीं आयेगा।

बर्बादी के कारण

-कटाव की समस्या की अनदेखी

-बाढ़ पीड़ित पंचायतों में समस्या को कोई निदान नहीं

-जल प्रबंधन में विफलता

-बकरा की मनमानी पर अंकुश लगाने में विफलता

जल प्रबंधन की बदहाली से हरित क्रांति का सपना भी पूरी तरह ध्वस्त हो गया है। जूट की खेती समाप्त होने पर है। विकल्पों पर कोई विचार नहीं हो रहा। किसानों की मानें तो खेती को बचाने के लिए नेपाल से आने वाली नदियों के पानी को मैनेज करना अति आवश्यक है। इस पानी को रखने के लिए बड़े जलाशयों का विकास किया जा सकता है। खेती के लीन सीजन में ये जलाशय मछली पालन, बत्तख पालन, फल सब्जी उत्पादन जैसे प्रयासों से किसानों की आनुसंगिक गतिविधियों का केंद्र बन जायेंगे। वहीं, इनसे पर्यावरण को संतुलित बनाये रखने में भी मदद मिलेगी।

दरअसल यहां पानी की अधिकता और पानी की कमी दोनों ही समस्या है। खरबों घनफुट पानी बह कर समुद्र में चला जाता है और लोग पानी के लिए पानी पानी हो जाते हैं।

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