अगर हर साल 12 हजार किलोमीटर की यात्रा करते हैं तो मत खरीदिये कार

साल में अगर 12 हजार किलोमीटर से कम यात्रा करते हैं तो कार न खरीदकर उबर और ओला का इस्तेमाल करें, जानें क्यों

By Ankit DubeyEdited By: Publish:Thu, 10 Aug 2017 12:55 PM (IST) Updated:Mon, 14 Aug 2017 10:23 AM (IST)
अगर हर साल 12 हजार किलोमीटर की यात्रा करते हैं तो मत खरीदिये कार
अगर हर साल 12 हजार किलोमीटर की यात्रा करते हैं तो मत खरीदिये कार

नई दिल्ली (ऐजेंसी)। साल में अगर 12 हजार किलोमीटर से कम यात्रा करते हैं तो कार न खरीदकर उबर और ओला का इस्तेमाल करें। एक स्टडी के अनुसार अगर साल में 12 हजार किलोमीटर से कम का सफर करते हैं तो पर्सनल कार रखना उपयोगी नहीं है। स्टडी के अनुसार भारत में सालाना औसतन 12,000 किमी कार चलाने पर कुल लागत प्रति किमी 22 रुपये पड़ती है। पर्सनल कार तभी सस्ती पड़ सकती है जब साल में कम से कम 15,000 किमी यात्रा करनी हो।

कैब ऐग्रिगेटर कंपनियों ने भी पिछले दो सालों में अपने बेड़े को दोगुना कर लिया है। अभी जिस रफ्तार से कारें बिक रही हैं उसके मुताबिक साल 2020 तक बिकीं कारों का 20 फीसद और 2030 तक बिकीं कारों का 30 फीसद हिस्सा ऐग्रिगेटर सर्विसेज और रेग्युलर कैब के रूप में इस्तेमाल होगा। क्रिसिल रिसर्च के एक अध्ययन में यह पाया गया। एजेंसी का कहना है कि चूंकि कैब के रूप में कारों का भरपूर इस्तेमाल होता है, इसलिए साल 2030 तक कुल कारों की तादाद में 20 प्रतिशत की कटौती होगी।

ऐग्रिगेटर सर्विसेज से किराये पर कैब लेने का प्रचलन बढ़ने की वजह से साल 2030 तक पैसेंजर कारों की सालाना बिक्री 1.5% तक गिर जाएगी। क्रिसिल का कहना है कि कैब पर्सनल कारों के मुकाबले ज्यादा ड्राइव की जाती हैं। मजेदार बात यह है कि ट्रांसपोर्टेशन में पर्सनल कारों की हिस्सेदारी टैक्सी और तिपहिया वाहनों से ज्यादा है क्योंकि लोग बेहतर सुविधा के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने के लिए तैयार हैं। इसी तरह, पहली बार कार खरीदते वक्त लोग उसकी ऊंची कीमत की भी परवाह नहीं करते। क्रिसिल रिसर्च की डायरेक्टर ने कहा, ‘कन्ज्यूमर सर्वे में सामने आया है कि लोग किसी भी तरह पहली कार खरीद ही लेते हैं क्योंकि यह उनका सपना होता है, लेकिन दूसरी कार खरीदने में काफी टालमटोल होता है।’

लोग अपनी कार रखने की बजाय कैब का इस्तेमाल इसलिए भी करते हैं क्योंकि उन्हें प्रति कि.मी. की यात्रा पर कम खर्च करना पड़ता है। टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ साझा की गई क्रिसिल रिसर्च की स्टडी कहती है कि ऐग्रिगेटरों से कैब मंगाने पर प्रति कि.मी. 19 रुपये जबकि ट्रेडिशनल टैक्सी पर 18 रुपये और अपनी कार रखने पर प्रति कि.मी. 22 रुपये के खर्च से सफर करना होता है। कई लोग कम खर्च की वजह से कैब का रुख कर रहे हैं।

क्रिसिल की डायरेक्टर ने कहा, ‘कैब ऐग्रिगेटर सर्विसेज की तरफ बढ़ते झुकाव का बड़ा असर होगा। पर्सनल कार यूजर्स के मुकाबले कैब ओनर्स ज्यादा माइलेज देनेवाली कारों को कहीं तवज्जो देते हैं। इसका मतलब है कि कार्बन उत्सर्जन में भी कमी आएगी।’ उन्होंने कहा, ‘वैसे भी, जब कारें सड़कों पर ज्यादा देर तक होंगी तो पार्किंग की समस्या भी कम होगी। अगर आप शेयरिंग कैब से सफर करते हैं तो इसकी लागत 11 रुपये प्रति कि.मी. आती है और वो घर तक आती हैं, एयर कंडीशन में ले जाती हैं। इतना ही नहीं, आपको ड्राइवर भी नहीं रखना पडता है।’ 

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