Move to Jagran APP

World Puppetry Day: जानें रंग-बिरंगी काठ की गुड़िया के इतिहास समेत कई अन्य रोचक बातें

एक दौर में देश-विदेश में पसंद की जाने वाली कठपुतली की कला आज लगभग लुप्त हो चुकी है। विश्व कठपुतली दिवस (21 मार्च) के मौके पर जानिए इन रंग-बिरंगी काठ की गुड़िया का इतिहास...

By Priyanka SinghEdited By: Published: Sat, 21 Mar 2020 09:00 AM (IST)Updated: Sat, 21 Mar 2020 08:55 AM (IST)
World Puppetry Day: जानें रंग-बिरंगी काठ की गुड़िया के इतिहास समेत कई अन्य रोचक बातें
World Puppetry Day: जानें रंग-बिरंगी काठ की गुड़िया के इतिहास समेत कई अन्य रोचक बातें

रंगमंच पर खेले जाने वाले प्राचीनतम खेलों में से एक खेल है कठपुतली। अब ज्यादातर बड़े-बुजुर्गो के मुंह से ही इस कला के किस्से सुनाई देते हैं, पर एक अच्छी खबर यह है कि इस कला को अब बढ़ावा भी मिल रहा है और इसे कॅरियर के रूप में भी प्रोत्साहन मिल रहा है। यह खेल सिर्फ मनोरंजन ही नहीं करता था बल्कि पौराणिक, एतिहासिक तथा सामाजिक परिवेश के बारे में दिलचस्प ढंग से जानकारी भी देता था। यही वजह है कि दुनियाभर में प्रसिद्ध इस खेल को खास दिन समर्पित किया गया है।

loksabha election banner

कब और किसने की इस दिन को मनाने की शुरुआत 

21 मार्च को मनाया जाने वाले 'विश्व कठपुतली दिवस' इन्हीं लकड़ी की गुड़िया के नाम पर मनाया जाता है। इसके प्रणेता ईरान के कठपुतली प्रस्तोता जावेद जोलपाधरी के मन में इस दिवस को मनाने का विचार आया तथा उन्होंने यूनिमा के 2002 में हुए सम्मेलन में यह विचार रखा जिसे सहर्ष स्वीकार कर लिया गया तथा वर्ष 2003 से इसे हर वर्ष मनाया जा रहा है।

विदेश पहुंची यह देसी कला

कठपुतली कला का इतिहास काफी पुराना माना जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव जी ने काठ की मूर्ति में प्रवेश कर पार्वती का मन बहलाकर इस कला की शुरुआत की थी। इस धारणा में कितनी सच्चाई है यह तो नहीं मालूम पर यह जरूर है कि किसी समय भारत में यह खेल बेहद लोकप्रिय था। उड़ीसा का साखी कुंदेई, आसाम का पुतला नाच, महाराष्ट्र का मालासूत्री बहुली, कर्नाटक की गोंबेयेट्टा, केरल के तोलपवकुथू, आंध्र प्रदेश के थोलु बोमलता इस तरह अलग-अलग देश-प्रदेश में अलग-अलग नामों से पहचानी जाने वाली कलाएं दरअसल कठपुतली के ही रूप हैं। भारत के इस लोकप्रिय खेल के चर्चे अमेरिका, चीन, जापान जैसे देशों में भी होते थे। इंडोनेशिया, थाइलैंड, म्यामांर, श्रीलंका जैसे देश के लोग भी बड़ी संख्या में इस खेल में दिलचस्पी लेते थे। उक्त में से कुछ देशों में आज भी यह कला लोकप्रिय है। कई विदेशी कलाकार राजस्थान आकर इस कला की बारीकियां सीखकर अपने देश में इसका प्रचार-प्रसार करते हैं।

सजी-धजी राजस्थानी गुड़िया

राजस्थान की कठपुतली सबसे ज्यादा मशहूर हुआ करती थी। लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़ों, जानवरों की खाल से बनी कठपुतलियों को रंगीन चटखदार गोटे, कांच, घुंघरू, चमकदार रेशमी कपड़े तैयार किया जाता था। जिसके बाद इन पैरहमन(लबादा जैसा वस्त्र) से सजे-धजे इन कठपुतलियों के पात्र सभी का मन मोह लेते थे। बनावट के साथ-साथ इन कठपुतलियों का खेल प्रदर्शन मंत्रमुग्ध करने वाला होता था। राजस्थान में राजा-रानी, सेठ-सेठानी, जमींदार-किसान और जोकर जैसे पात्रों को लेकर कठपुतलियां बनाई जाती थीं। राजस्थान में अब भी ऐसे कई परिवार हैं, जिनकी रोजी-रोटी का एकमात्र जरिया कभी कठपुतली बनाकर बेचना या उसके खेल दिखाना हुआ करता था। वहां इस कला का इतना महत्व रहा है कि जयपुर में एक मोहल्ला कठपुतली नगर के नाम से जाना जाता है।

कई कलाओं का सामूहिक प्रदर्शन

राजस्थानी पोशाक पहने इन कठपुतलियों द्वारा इतिहास के विभिन्न प्रसंग जिनमें प्रेम प्रसंग प्रमुख होते थे। हीर-रांझा, लैला-मजनू और शीरी-फरहाद की प्रेम गाथाएं कठपुतली के खेल द्वारा दिखाई जाती थी। इस खेल में राजस्थान के अमर सिंह राठौर का चरित्र बहुत लोकप्रिय हुआ क्योंकि उनके चरित्र में नृत्य तथा युद्ध शामिल थे। कठपुतली नचाने वाला पर्दे के पीछे गीत गाता था तथा संवाद बोलता था। इस कलाकार को न केवल अपने हाथों का कौशल दिखाना पड़ता था बल्कि अच्छी गायिकी और वैसी ही संवाद अदायगी भी दिखानी पड़ती थी। कठपुतली के खेल में कई कलाओं का सम्मिश्रण होता था। इनमें लेखन कला, नाट्यकला, चित्रकला, मूर्तिकला, काष्ठकला तथा वस्त्र निर्माण कला आदि के नाम लिए जा सकते हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.