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नेचर लवर्स के लिए जन्नत से कम नहीं विशाखापट्टनम की खूबसूरती, भीड़ से अलग ऑफबीट डेस्टिनेशन

गाल की खाड़ी के तट पर स्थित विशाखापट्टनम में अनेक बीच यानी समुद्री तट मौजूद हैं।

By Pratima JaiswalEdited By: Published: Tue, 17 Apr 2018 04:40 PM (IST)Updated: Fri, 20 Apr 2018 01:06 PM (IST)
नेचर लवर्स के लिए जन्नत से कम नहीं विशाखापट्टनम की खूबसूरती, भीड़ से अलग ऑफबीट डेस्टिनेशन
नेचर लवर्स के लिए जन्नत से कम नहीं विशाखापट्टनम की खूबसूरती, भीड़ से अलग ऑफबीट डेस्टिनेशन

आंध्र पद्रेश का विशाखापट्टनम शहर 'वाइजैग', 'हॉर्बर सिटी', 'सिटी ऑफ डेस्टिनी'आदि नामों से भी जाना जाता है। पिछले दिनों यहां पहला इंटरनेशनल यॉट यानी नौका फेस्टिवल का आयोजन हुआ है। प्रकृति की विस्मयकारी चित्रकारी की कोई कमी नहीं यहां। डॉ. कायनात काजी के साथ आज चलते हैं इस तटीय शहर के खास सफर पर.. समुद्र तट के साथ खूबसूरत पर्वतमालाएं, शीशे-सा चमकता समंदर का पानी और नजदीक ही हरी-भरी पहाडि़यां। यहां आकर ऐसा जान पड़ेगा मानो किसी चित्रकार ने फुर्सत से प्रकृति के विशाल कैनवास पर रंग-बिरंगी चित्रकारी की हो। विशाखापट्टनम शहर कोरोमंडल तट (दक्षिणी-पूर्वी तटरेखा) पर बसा है। कोरोमंडल तट को लेकर यहां अलग-अलग कहानियां प्रचलित हैं। कहते हैं सही शब्द कोरोमंडल नहीं चोल-मंडलम था। इस क्षेत्र में चोल राजाओं का शासन था और इस मंडल को तमिल भाषा में चोल-मंडलम कहते थे। पर यह शब्द फ्रांस, पुर्तगाल से आए उपनिवेशी सौदागरों के लिए बोलना कठिन था इसलिए वे चोल-मंडलम को कोरोमंडल कहकर पुकारने लगे। तभी से इस तट को कोरोमंडल के नाम से भी जानने लगे।

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स्वच्छता में अव्वल

शहर का संबंध महात्मा बुद्ध से भी देखने को मिलता है। यहां से 15 किलोमीटर की दूरी पर तोट्लकोंडा नामक स्थान पर 2500 साल पुराने एक बौद्ध मठ के अवशेष मिले हैं। इस मठ का संबंध बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय से माना जाता है। कहते हैं कि यह शहर कभी मछुआरों का गांव हुआ करता था। आज यह भारतीय नौसेना के पूर्वी कमांड का केंद्र है। मछुआरों के आदिवासी जीवन की सादगी और भारतीय सेना का रुतबा इस शहर को अनूठा बनाता है। यह एक शांत और बेहद साफ-सुथरा शहर है। गत वर्ष एक सर्वे में इस शहर के रेलवे स्टेशन को देश के सबसे स्वच्छ स्टेशन के तमगे से नवाजा गया था। यह देश के बाकी शहरों की तुलना में स्वच्छता के लिहाज से तीसरे स्थान पर है।

मनमोहक बीच के नजारे

बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित विशाखापट्टनम में अनेक बीच यानी समुद्री तट मौजूद हैं। इनमें सबसे आकर्षक रामकृष्ण बीच है। शहर के दिल यानी बीच में होने के कारण यह लोगों में खासा लोकप्रिय है। तट से लगा हुआ ही बीच रोड भी है, जिसके पूरब में बीच है और पश्चिम में खूबसूरत इमारतों की सजीली पंक्तियां। इन्हीं इमारतों के बीच 'रामकृष्ण मिशन भवन' है। इस भवन के नाम पर ही इसका नाम रामकृष्ण बीच पड़ा। बीच रोड को यहां के नगर निगम ने काफी सुंदर तरीके से सुसज्जित किया है। रोड के किनारे बने छोटे-छोटे पार्क और जगह-जगह लगी मूर्तियां इस जगह की जीवंतता को और बढ़ा देती हैं। खास बात यह है कि यहां सुबह सात बजे से पहले यातायात की आवाजाही पर रोक सिर्फ इसलिए लगी हुई है क्योंकि यहां बड़ी संख्या में स्थानीय लोग मॉर्निंग वॉक के लिए आते हैं। भोर की पहली किरण से ही यहां चहल-पहल देखी जा सकती है। यह देश का पूर्वी-दक्षिणी तट है इसलिए यहां से सूर्योदय देखना बड़ा ही सुखद प्रतीत होता है। यहां समंदर किनारे सुनहरी रेत पर पड़ती सूर्य आभा बेहद खूबसूरत लगती है। बीच रोड एक तरह से इस शहर के लिए सूत्रधार की भूमिका निभाता है और कई मुख्य आकर्षणों को अपने साथ बांधे रखता है। इसके सहारे चलते हुए आप देख सकेंगे यहां के मुख्य आकर्षण, जैसे-आइएनएस कुरसुरा पनडुब्बी, एयरफोर्स संग्रहालय, मत्स्यदर्शिनी, फिशिंग डॉक, आंध्र प्रदेश टूरिज्म बोर्ड द्वारा संचालित बोटिंग पॉइंट और भीमली बीच आदि। सभी इसी के साथ एक डोर में बंधे जान पड़ते हैं।

 

सबसे अलग हॉर्बर सिटी

चूंकि विशाखापट्टनम एक छोटी खाड़ी पर बसा है, इसीलिए इसे हार्बर सिटी भी कहते हैं। व्यापार की दृष्टि से यह देश का चौथा सबसे बड़ा बंदरगाह है। किसी जमाने में व्यापारियों के लिए हार्बर सिटी विशाखापट्टनम कोलकाता के पोर्ट से भी ज्यादा आकर्षक थी। यहां पानी का जहाज बनाने का कारखाना भी है। विशाखापट्टनम बंदरगाह बड़ा और सबसे गहरा भी है। इसका पोताश्रय प्राकृतिक है। सामरिक दृष्टि से भी यह शहर बहुत महत्वपूर्ण है। इस शहर से अच्छी तरह वाकिफ कौशिक मुखर्जी बताते हैं, 'द्वितीय विश्र्वयुद्ध के समय इस बंदरगाह का महत्व इतना था कि बिर्टिश आर्मी ने इसकी रक्षा के लिए यहां पिलबॉक्स बनाए थे। पिलबॉक्स एक प्रकार की कंक्रीट की संरचना होती है जिसके अंदर मशीनगनें रखी जाती हैं। 1933 में इस बंदरगाह को व्यापार के लिए खोला गया था।' विशाखापट्टनम बंदरगाह में 170 मीटर लंबे जहाज भी ठहर सकते हैं। एडवेंचर प्रेमियों का खास ठिकाना अगर आप समुद्र की दमदार लहरों के साथ दो-दो हाथ करना चाहते हैं तो यहां का ऋषिकोंडा बीच आपके लिए काफी कुछ ऑफर करता है। यह शहर से करीब 8 किलोमीटर दूर है। यहां कयाकिंग, स्कूबा डाइविंग जैसे वाटरस्पो‌र्ट्स एक्टिविटीज का आनंद ले सकते हैं। सारी एक्टिविटीज प्रोफेशनल ट्रेनर्स की निगरानी में करवाई जाती हैं। यहां अनेक रेस्टोरेंट मौजूद हैं जहां आप अपनी थकान मिटा सकते हैं। ऋषिकोंडा बीच आंध्र प्रदेश के सबसे सुंदर समुद्र तटों में से एक है। पर्यटकों की भीड़-भाड़ न होने के कारण यह अभी साफ-सुथरा है।

पहला इंटरनेशनल यॉट फेस्टिवल

भारत में यॉट टूरिज्म तेजी से आगे बढ़ रहा है। अभी तक यॉट जैसी लग्जरी के लिए लोगों को थाईलैंड जाना होता था या फिर गोवा में भी कुछ लोग अपना यह शौक पूरा कर लेते थे। लेकिन पूर्वी तट पर ऐसा कुछ नहीं था। अगर आप एडवेंचर टूरिज्म या वॉटर स्पोर्ट्स की बात करें तो देश का पूर्वी तट इससे वंचित ही था, जबकि यहां का पानी बहुत साफ है। ऐसे में यॉट टूरिज्म की शुरुआत करने का बीड़ा उठाया आंध्र प्रदेश टूरिज्म ने। महीनों की मेहनत और नेवी के नियमों के दायरे में विशाखापट्टनम के खूबसूरत समुद्री तट पर पिछले महीने देश का पहला इंटरनेशनल यॉटफेस्टिवल मनाया गया। इसी के साथ आगाज हुआ वॉटर स्पोर्ट्स की एक नई परंपरा का। यह बीच शहर अब यॉट टूरिज्म के लिए भी जाना जाएगा।

यॉट की सवारी

सफेद आलीशान यॉट यानी नौका जब समुद्र के विशाल विस्तार पर हिचकोले खाती हुई आगे बढ़ती है तो सैलानियों का रोमांच देखने लायक होता है। यहां कई साइज की यॉट उपलब्ध हैं। आप बड़े यॉट में लोगों के साथ इस लग्जरी का आनंद ले सकते हैं या फिर नितांत निजी अनुभव लेने छोटे यॉट पर भी जा सकते हैं। छोटे यॉट पर एक केबिन होता है। यहां आपकी हर सुविधा का ख्याल रखा जाता है। आप इस यॉट पर मजे से फिशिंग भी कर सकते हैं। यॉट पर सवार होकर आप पलक झपकते ही तट से दूर समंदर की गहराइयों की ओर बढ़ते जाते हैं और पीछे छूट जाता है विशाखापट्टनम का सिटीस्केप। कतार में सजी इमारतें और उनके पीछे की पहाडि़यां हाथ हिला कर आपका अभिवादन करती प्रतीत होती हैं। एक बार यॉट पर बिताया हॉलिडे आपके लिए कभी न भुलाने वाला अनुभव होगा।

शान है कुरसुरा सबमरीन

बीच रोड पर पूरी शान के साथ खड़ी कुरसुरा सबमरीन विशाखापट्टनम की शान और पहचान है। इस सबमरीन को तत्कालीन सोवियत संघ से मंगवाया गया था। फणिराज जी जो कि पंद्रह साल तक इस सबमरीन पर तैनात रहे और इन दिनों इस सबमरीन के क्यूरेटर की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं, बताते हैं, 'यह सबमरीन भारतीय नौसेना की पनडुब्बी शाखा की नींव का पत्थर थी। अपनी सेवा के 31 गौरवशाली वषरें के दौरान पनडुब्बी ने 73,500 समुद्री मील की दूरी तय करते हुए नौसेना की लगभग सभी प्रकार की गतिविधियों में हिस्सा लिया।' आइएनएस कुरसुरा ने 1971 के भारत-पाक युद्ध में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस पनडुब्बी ने अपनी यात्राओं और दूसरे देशों में ध्वज दर्शन के अभियान के माध्यम से सद्भावना और सौहार्द का विस्तार किया था। 27 फरवरी, 2001 को इसका डिकमीशन किया गया था यानी इसे रिटायर किया गया। इसके बाद कुरसुरा पनडुब्बी को आर.के. समुद्र तट, विशाखापट्टनम स्थित एक पनडुब्बी संग्रहालय में बदल दिया गया। इसका उद्घाटन 9 अगस्त, 2002 को किया गया और 24 अगस्त, 2002 को इसे जनता के लिए खोला गया। पनडुब्बी पर 75 लोगों की ड्यूटी रहती थी। समुद्र से इस पनडुब्बी को यहां तक लाने में डेढ़ साल का समय लगा। दर्शकों के समझने के लिए सबमरीन में मॉडल यानी प्रतिरूप द्वारा समुद्र की गहराइयों के नीचे वास्तविक जीवन को जीवंत तरीके से दर्शाया गया है। आज भले ही भारत खुद सबमरीन निर्माण में स्वालंबी हो चुका है, लेकिन सबमरीन के इतिहास में कुरसुरा का नाम अभी भी स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।

एयरक्राफ्ट म्यूजियम

कुरसुरा सबमरीन म्यूजियम के सामने ही एयरक्राफ्ट म्यूजियम है। विशाखापट्टनम अर्बन डेवलॅपमेंट अथॉरिटी ने करीब 14 करोड़ रुपये की लागत से इस अनोखे संग्रहालय का निर्माण कराया है। इस म्यूजियम का उद्घाटन राष्ट्रपति महामहिम रामनाथ कोविंद जी के हाथों पिछले वर्ष कराया गया था। इस संग्रहालय में आप टी यू142 एयरक्राफ्ट के भीतर जाकर भी देख सकेंगे। इस संग्रहालय में कई दीर्घाएं हैं, जिनमें मॉडल की मदद से भारतीय वायुसेना की गतिविधियों को प्रदर्शित किया गया है। लोगों, खासकर बच्चों को यह म्यूजियम बहुत लुभाता है। इसके बाहर वाइजैग के अल्फाबेट लगाए गए हैं, जिसके साथ युवाओं में सेल्फी लेने का क्रेज देखा जाता है।


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