Move to Jagran APP

अजमेर कौमी एकता का गुलदस्ता

राजस्थान का दिल है अजमेर। सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह आकर मन को अलग ही सुकून मिलता है। आज चलेंगे अजमेर के सफर पर..जानेंगे और किन वजहों से खास है ये शहर

By Priyanka SinghEdited By: Published: Fri, 23 Nov 2018 05:11 PM (IST)Updated: Sun, 25 Nov 2018 06:00 AM (IST)
अजमेर कौमी एकता का गुलदस्ता
अजमेर कौमी एकता का गुलदस्ता

रात्रि के अंतिम प्रहर में अजमेर का वातावरण पूरी तरह शांत होता है। भोर होते ही ख्वाजा साहब की दरगाह से आती है अजान की आवाज, ब्रह्मा जी के मंदिर में आरती, क्राइस्ट चर्च में प्रार्थना और गुरुद्वारा गुरुनानक से गूंजती है अरदास की ध्वनि। इस शहर की तासीर ही कुछ ऐसी है कि यहां हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि सभी धर्मों के लोग एक-दूसरे की धार्मिक भावनाओं का पूरा आदर-सम्मान करते हुए उनके धर्म एवं आस्था स्थलों के प्रति भी श्रद्धा भाव रखते हैं। बस यूं समझ लीजिए कि बगिया में खिलने वाले संस्कृतियों के फूलों को एक शानदार गुलदस्ते में सजा कर पेश करता है अजमेर।

loksabha election banner

राजस्थान की राजधानी जयपुर से लगभग 135 किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम में अजय मेरु' (अजेय पर्वत) की तलहटी में बसा है अजमेर। अजमेर की स्थापना सातवीं शताब्दी में पृथ्वीराज चौहान के प्रथम पुत्र अजयपाल चौहान द्वारा की गई। यह नगर कई ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है। सम्राट पृथ्वीराज चौहान और अन्य हिंदू राजाओं की संयुक्त सेना के साथ युद्ध में विजयी होने के बाद मुहम्मद गौरी ने अजमेर और दिल्ली पर कब्जा कर लिया और भारत में इस्लामी हुकूमत की नींव रखी। बाद में मुगलकाल में बादशाह जहांगीर से 10 जनवरी, 1615 को ब्रिट्रिश राजदूत सर टॉमस रो ने ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए भारत में व्यापार की अनुमति हासिल की। 25 जून, 1818 को ईस्ट इंडिया कंपनी व महाराजा दौलतराव सिंधिया के बीच हुए समझौते के तहत अजमेर को अंग्रेजों को सौंप दिया गया। शाहजहां के सबसे बड़े पुत्र दाराशिकोह का जन्म यहीं हुआ था। वह युद्ध, जिसने औरंगजेब को सिंहासन पर बिठा दिया, अजमेर के पास दोराइ में ही लड़ा गया था। सन् 1879 में यहां लोको कारखाना व कैरेज वर्कशॉप की स्थापना भाप के इंजन बनाने के लिए हुई। अजमेर ने रेलवे को सैकड़ों इंजनों का निर्माण करके दिया। कम लोगों को ही जानकारी है कि यहां अंग्रेजों के जमाने में युद्ध के हथियार और गोले बनाने का काम भी होता था। अजमेर में सामाजिक जागृति की शुरुआत 19वीं शताब्दी के अंत में आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा हुई। दयानंद सरस्वती का निर्वाण अजमेर में ही हुआ।

ख्वाजा साहब की दरगाह में जियारत

यहां सजदा करने के लिए दुनिया भर के सैलानियों और जायरीनों (तीर्थ यात्रियों) का वर्ष भर तांता लगा रहता है। यहां के वार्षिक उर्स मेले के दौरान तो लाखों की संख्या में लोग पहुंचते हैं। दरगाह शरीफ का मुख्य दरवाजा 'निजाम गेट' हैदराबाद के नवाब मीर उसमान अली खान के द्वारा सन् 1911 में बनवाया गया। निजाम गेट के बाद शाहजहानी दरवाजा आता है। इसके बाद विशाल बुलंद दरवाजा है, जो तकरीबन 85 फीट ऊंचा है। शाहजहानी गेट और बुलंद दरवाजे के बीच दायीं तरफ अकबर द्वारा बनवाई गई अकबरी मस्जिद है। बुलंद दरवाजे के दोनों तरफ दो विशाल देग (कड़ाहे) रखे हुए हैं। बड़ी देग अकबर द्वारा भेंट की गई थी जबकि छोटी देग जहांगीर द्वारा। बड़ी देग में एक साथ सवा सौ मन चावल तथा छोटी देग में 80 मन चावल पकाया जा सकता है। रमजान माह की पहली रजब से 6 रजब तक अजमेर में ख्वाजा साहब का उर्स मनाया जाता है।

सुरम्य आनासागर झील

अजमेर नगर के नैसर्गिक सौंदर्य में चार चांद लगाने वाली इस झील में बोटिंग एवं जलक्रीड़ाओं से जहां लोगों का मनोरंजन होता है, वहीं इस झील के निकट प्रवासी पक्षियों का नजारा भी आकर्षित करता है। मुगल बादशाह जहांगीर ने झील के किनारे एक सुंदर बगीचा बनवाया था, जिसे दौलत बाग कहते हैं। 1637 में शाहजहां ने यहां संगमरमर की पांच बारहदरियां बनवाईं, जिससे झील की खूबसूरती में चार चांद लग गए।

सोनीजी की नसियां

आपने 'बाहुबली' फिल्म देखी है तो उसमें जो माहिष्मती नगरी का सेट है, लगभग वैसा ही आभास आपको सोनी जी की नसियां के भीतर अयोध्या नगरी का मॉडल देखकर होगा। अजमेर शहर के मध्य ऊंचे शिखर एवं मान स्तंभ वाली लाल पत्थर की यह इमारत प्रथम जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का मंदिर है। सेठ मूलचंद सोनी द्वारा इसका निर्माण प्रारंभ कराया गया था और उनके ही पुत्र सेठ टीकमचंद सोनी द्वारा 1865 में निर्माण कार्य पूरा कराया गया। मुख्य मंदिर के पीछे एक हॉल है, जिसकी दीवारों-छतों पर सोने व कांच की अत्यंत मनोहारी पच्चीकारी का काम किया गया है। इस कक्ष के एक भाग में गोलाकार आकृति में जैन मतानुसार सृष्टि की रचना का भव्य दृश्य प्रस्तुत किया गया है। दूसरे भाग में अयोध्या नगर का दृश्य है। दक्षिण में प्रयाग व त्रिवेणी संगम, वट वृक्ष एवं भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा है।

मशहूर है 'मेयो कॉलेज'

अंग्रेजों के जमाने में राजा-महाराजाओं की संतानों के अध्ययन के लिए स्थापित मेयो कॉलेज भी अजमेर की शान व पहचान है। भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड मेयो (सन् 1869-72) के नाम पर इस कॉलेज का नामकरण किया गया। सफेद संगमरमर से बने इस कॉलेज का भवन स्थापत्य कला की दृष्टि से उत्कृष्ट माना जाता है। इस महाविद्यालय में एक संग्रहालय भी है।

नायाब वास्तुशिल्प का नमूना 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा'

ख्वाजा साहब की दरगाह से कुछ ही दूरी पर तारागढ़ पहाड़ी की तलहटी में स्थित यह इमारत हिंदू-मुस्लिम स्थापत्य कला का नायाब नमूना है। इस इमारत का निर्माण प्रथम चौहान सम्राट बीसलदेव द्वारा सन् 1153 ई. में संस्कृत पाठशाला के लिए करवाया गया था। कहा जाता है कि सन् 1192 में जब मोहम्मद गौरी ने अजमेर पर आक्रमण किया, तब इसे मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया। और सात मेहराब बनाए गए। तीन केंद्रीय मेहराबों पर तीन पंक्तियों में लिखावट खु्दी है जो अरबी लिपि में है। कहते हैं कि यहां एक फकीर पंजाबशाह का यहां ढाई दिन का उर्स लगता था, तभी से यह 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा' कहलाने लगा। यह अपनी ऐतिहासिक, पुरातात्विक और कलात्मक खूबियों के कारण नि:संदेह देश की श्रेष्ठतम इमारतों में से एक है।

चर्च भी हैं खूब

ब्रिटिशकाल से ही अजमेर ईसाई धर्मावलंबियों का प्रमुख केंद्र रहा है। शहर में शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में ईसाई धर्म के लोगों ने अहम योगदान किया। यहां के अनेक चर्च अपनी स्थापत्य शैली और भव्यता के लिए काफी मशहूर हैं। इनपर फ्रेंच-रोमन और एंग्लो-इंडियन निर्माण शैली का प्रभाव दिखता है। अजमेर के प्रमुख चर्च में इमेक्यूलेट कन्सेप्शनल चर्च, रॉब्सन मेमोरियल चर्च, सेंटीनरी मेथॉडिस्ट चर्च, अवर लेडी ऑफ सेवन डॉलर्स चर्च, सेंट मैरिज चर्च पालबीसला, सेंट जोसफ चर्च पर्वतपुरा, सेंट जॉन्स चर्च केसरगंज, हिलव्यू एडवेंटिस्ट चर्च रेम्बल रोड तथा माउंट कार्मेल चर्च हाथी खेड़ा आदि शामिल हैं।

श्यामसुंदर जोशी 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.