लोक-संस्कृति के लुभावने रंगों को देखना चाहते हैं, तो रुख करें रांची की ओर
रांची जो यहां एक बार आ गया यहीं का होकर रह जाता है। यह शहर जितना अनूठा है उतनी ही मस्त है इसकी चाल। यहां थोड़ी कम गर्मी पड़ती है। संजय कृष्णा के साथ चलते हैं रांची के सफर पर।
'जे नाची से बाची' यानी 'जो नाचेगा वह बचाए रखेगा' का संदेश देता शहर है यह। पग-पग में नृत्य और कंठ-कंठ से गीत सुनाती हुई रांची। इसे किसी खांचे में नहीं रख सकते। इसके पास कहानियों का अंबार है, पर सुनने वाले को धीरज से काम लेना होगा। यह रांची है, जिसके एक पथ पर प्रात: बेला में चालीसा का स्वर सुनाई देता है। थोड़ा आगे बढ़ें तो सबद कीर्तन गूंजने लगता है। और आगे बढ़ें तो अजान सुनाई देती है। थोड़ा और आगे बढ़ें तो चर्च की घंटियां भी सुनाई देने लगती हैं। बहुत ही खूबसूरत है रांची शहर, जहां घूमने वाली जगहों की कोई कमी नहीं। जानते हैं इन जगहों के बारे में।
हिमालय से भी पुरानी है पहाड़ी
रांची बुरू (पहाड़) हिमालय से भी पुराना है। शोध से पता चला कि यह पहाड़ प्रोटेरोजोइक काल का है, जिसकी आयु लगभग 4500 मिलियन वर्ष है। यह पहाड़ मुख्यत: कायांतरित शैल चट्टानों से बना है। इसी पहाड़ की चोटी पर पहाड़ी बाबा यानी शिव विराजमान हैं। इस पहाड़ी की चोटी से रांची शहर का विहंगम दृश्य दिखाई देता है और विशाल बड़ा तालाब भी।
टैगोर हिल
शहर के पश्चिमी छोर पर मोरहाबादी में एक पहाड़ी है, जिसे आज टैगोर हिल के नामसे जाना जाता है। कविंद्र रवींद्र नाथ टैगोर के बड़े भाई ज्योतिंद्र नाथ टैगोर यहीं रहे। ज्योतिंद्रनाथ ने यहां के जमींदार हरिहरनाथ सिंह से इसे लिया था। इसके बाद टूटे-फूटे रेस्ट हाउस को दुरुस्त करवाया। पहाड़ पर चढ़ने के लिए सीढि़यां बनवाईं। मकान के प्रवेश द्वार पर एक तोरण द्वार बनवाया। वे ब्रह्म समाज के थे, इसलिए बुर्ज पर एक खुला मंडप बनवाया ध्यान-साधना के लिए। उन्होंने अपने मकान का नाम रखा शांतालय।
योगदा सत्संग आश्रम
रांची रेलवे स्टेशन से चंद कदम की दूरी पर स्थित योगदा आश्रम शांति का परम धामहै। रांची में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया की स्थापना 1917 में परमहंसयोगानंद ने की थी। परमहंस योगानंद की 'योगी कथामृत' सबसे अधिक बिकने वाली आत्मकथा है। यहां क्रिया योग की दीक्षा दी जाती है। शरदोत्सव में देश-विदेश सेयहां हजारों साधक भाग लेने के लिए आते हैं।
डोंबारी बुरू: एक और जलियांवाला बाग
पंजाब के अमृतसर में जालियांवाला बाग की दुर्भाग्यपूर्ण घटना से देश-दुनिया परिचित है, पर डोंबारी बुरू की शायद किसी को याद नहीं है। झारखंड के खूंटी जिले में अंग्रेजों ने 9 जनवरी, 1900 को हजारों मुंडाओं का बेरहमी से नरसंहार करदिया था। इसी पहाड़ी पर बिरसा मुंडा गिरफ्तार कर लिए गए थे। उस घटना की याद में डोंबारी बुरू तक सड़क का निर्माण कर दिया गया है। पहाड़ की चोटी पर एक विशालस्तंभ बना हुआ है, जो दूर से ही दिखाई देता है।
पुरावशेषों की झलक राज्य म्यूजियम में
राज्य संग्रहालय राज्य का आईना है। राज्य के पुरावशेषों, प्राचीन मूर्तियों, कईप्रकार के शिल्प, उत्खनन से प्राप्त कई दुर्लभ सामग्रियों का खजाना यहां पर है।यहां कई दीर्घाएं हैं। जनजातीय दीर्घा में झारखंड के जनजातियों की जीवन शैली,सांस्कृतिक परिवेश के मॉडल और वास्तविक सामग्रियों के माध्यम से प्रस्तुत कियागया है। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो के समय के मृदभांड एवं खुखरागढ़, कबरा कला आदि मेंउत्खनन से प्राप्त अवशेष भी यहां रखे गए हैं।