Move to Jagran APP

उडुपी में है स्वाद व सौंदर्य का खजाना

कर्नाटक का उडुपी शहर, जहां की हर सुबह सुरीली और मनोरम है।

By Pratima JaiswalEdited By: Published: Mon, 04 Dec 2017 02:29 PM (IST)Updated: Mon, 04 Dec 2017 02:29 PM (IST)
उडुपी में है स्वाद व सौंदर्य का खजाना
उडुपी में है स्वाद व सौंदर्य का खजाना

कर्नाटक की अनूठी भव्यता का दर्शन करना हो तो उडुपी एक बेहतरीन पड़ाव साबित हो सकता है। यहां गीत-संगीतमय आस्था की तरंगें हिलोरे लेती हैं, तो प्रकृति का मनोरम सुख तन-मन को तरोताजा कर देता है। 'वैष्णवों के नगर' नाम से भी चर्चित इसी छोटे से शहर ने दुनिया को दिए हैं मसाला डोसा और अन्य स्वाद भरे तोहफे। दरअसल, खुद में कई हैरतों को समेटे है यह शहर। आज चलें उडुपी के खास सफर पर..

loksabha election banner

शहर की गलियों से गुजरते हुए नजर आती हैं मुख्य रूप से श्वेत  रंगों से बनी रंगोलियां, यहां घरों के प्रांगण में दीयों और अगरबत्तियों से सजे तुलसी चौरे, पूजाघरों से बहकर आने वाली कर्नाटक संगीत की स्वर लहरियां। इन सबके बीच कृष्णा मठ के ढोल-मंजीरों के साथ बजते भजन और इस सुंदर आलम में अरब सागर की ठंडी हवाओं का स्पर्श। कह सकते हैं सुंदर अनुभवों और एहसासों का असंख्य खजाना मिलता है यहां। यही है कर्नाटक का उडुपी शहर, जहां की हर सुबह सुरीली और मनोरम है। गिरजाघरों की गायन-मंडली के भजन, इशु के चरणों में सजी मोमबत्तियां, मनिपाल के छात्रों के गिटार से बजते प्यार भरे गीत और मालपे बीच पर बजता धमाकेदार संगीत उडुपी में शाम के आगमन का संकेत देते हैं। गरमा-गरम इडली-वडा खाते नौजवान, ताजा सब्जियों के लिए मोलभाव करती गजरे की खुशबू से महकती गृहिणियां, लुंगी पहने, गमछा संभालते हुए अखबार पढ़ते व्यवसायियों के दृश्य आपको उडुपी की गलियों में हर दिन देखने को मिलेंगे। यदि आप यह पूछें कि यहां खास क्या-क्या हैं? तो जवाब होगा सुंदरतम समुद्री तट, ऐतिहासिक कृष्ण मठ, मनिपाल यूनिवर्सिटी और मजेदार दक्षिण भारतीय व्यंजन। यदि आप धार्मिक न भी हों तो कृष्ण मठ की रमणीयता आपको लुभाएगी। इन सबके साथ यदि आप प्राकृतिक सौंदर्य के बीच समय गुजारने और उसे जी भर निहारने के शौकीन हैं तो उडुपी जरूर आपका दिल जीत लेगी। इन सबके अलावा, आपको बस स्वाद और व्यंजनों की विविधता में रुचि है तो भी यह शहर आपके लिए है एक आदर्श पड़ाव।

आस्था में डूबा मंजर

उडुपी को कृष्ण मठ के कारण ज्यादा जाना जाता है। यह मठ भारत के दूसरे कृष्ण मंदिर से काफी अलग है। यहां के तालाब के पानी में दिखाई देता है मंदिर का खूबसूरत प्रतिबिंब। मंदिर के विशाल मंडप से विस्मित होकर जब आप उडुपी के श्रीकृष्ण मठ में भगवन के दर्शन करने जायेंगे तो यह देखकर जरूर दंग रह जायेंगे कि भगवान दरवाजे की तरफ नहीं, बल्?कि मंदिर के पीछे बनी खिड़की से अपने भक्तों को दर्शन दे रहे हैं। गर्भगृह में बनी नौ खंडों में बंटी छोटी-छोटी खिड़की पर तराशे गये दशावतार के दर्शन के बाद जब आपकी दृष्टि गर्भगृह के भीतर बनी छोटी मूर्ति पर पड़ेगी तो भगवान के मुख की निर्दोषता आपका दिल खुश कर देगी। यज्ञगृह के साथ पुजारियों द्वारा किया जाता मंत्रोच्चारण इस मंदिर के भक्तिभावपूर्ण वातावरण में आध्यामिकता के लहर का प्रसार करता है। सूर्यदेव से लेकर हनुमानजी तक हिंदू धर्म के कई देवी-देवताओं की सदियों पुरानी अलंकृत मूर्तियां मठ की प्राचीनता की आभास कराती हैं। मंदिर के प्रांगण में स्थित विष्णु के प्रिय नागराज का मंदिर भी यहां की विशेषता है। इसकी दीवारों पर कुछ अनसुनी कथाओ के चित्र भी देखने को मिलेंगे।

कृष्ण मंदिर की भव्य भोजशाला

पीतल के बड़े-बड़े बर्तनों में शुद्ध घी में खाना पका रहे मंदिर के पंडित सालों और सामाग्रियों से खाने में अपना भक्तिभाव रस भी घोलते हुए प्रतीत होते हैं। प्रतिदिन भक्तों को प्रसाद देने की सेवा में लगे पंडित, लोगों को सात्विक खाना मिले उसकी पूरी कोशिश करते हैं। सुबह 11 बजे से लेकर रात तक चलती इस भोजनशाला में हजारों भक्त प्रसाद लेकर भगवान का आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। केले के पत्ते पर परोसे जाने वाले प्रसाद की परंपरा इस मंदिर में सदियों से अविरत चल रही है। पिछले दिनों मुस्लिम संप्रदाय के लोगों को भी खाना खिलाकर इस मंदिर ने धार्मिक सौहार्द का एक उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया है। कृष्णभक्ति का यह अनोखा नजारा, मंदिर की रसोई तथा भोजनशाला को देखना एक अनूठा अनुभव हो सकता है।

अलौकिक आइलैंड का नजारा

नाव के जरिए नीली लहरों पर सवार होकर जब आप यहां सेंट मेरीस आइलैंड पर पहुचेंगे तो आपको किसी अलौकिक जगह पर होने का एहसास होगा। यहां सुनहरी रेत के साथ आपको कुदरत द्वारा तराशे गये विशाल पत्थरों के शिल्प भी आपका स्वागत करेंगे। सालों बाद च्वालामुखी के लावा के ठंडे होने पर यहां के पत्थर बेहद बारीकी से तराशे हुए नजर आते हैं, जो इस आइलैंड की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। भारत के आम समुद्रीतटों से अलग इस आइलैंड पर आपको कांच की तरह साफ पारदर्शी पानी नजर आएगा। आप इसमें तैराकी का आनंद ले सकते हैं। दूर तक फैले नीले समंदर को चूमते हुए नीले आसमान को देखकर आपको ऐसा प्रतीत होगा जैसे कुदरत ने अपने रंगों की थाली में नीले रंग के अलग-अलग शेड्स रखे हों। यह विस्मयकारी नजारा आपको घंटों तक बैठे रहने पर भी उबने नहीं देगा।

मालपे बिच पर अंडमान के नजारे

हलके भूरे रंग की रेत पर लेट कर नीले समंदर की लहरों के संगीत को सुनने का आनंद लेने के लिए भले ही लोग अंदमान द्वीपसमूह जाने की सलाह दें किन्तु उडुपी में स्थित मालपे बीच आपको अंडमान के किसी खुबसूरत बीच पर होने का एहसास कराएगा। समंदर के किनारे लगी छतरियां आपको धूप में भी इस खूबसूरत समुद्रतट का आनंद लेने के लिए छांव प्रदान करेंगी। आप बचपन की यादों को ताजा कर कोमल रेत से शिल्प बनाकर पूरा दिन भी यहां बिता सकते हैं। बीच पर स्थित पार्क में बच्चों और बड़ों के लिए एडवेंचर राइड्स भी बनी हुई हैं।

आगुम्बे: दक्षिण का चेरापूंजी

उडुपी से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर आगुम्बे नामक घाट में बारिश कुछ इस तरह से बरसती है, मानो वह इंद्रदेव की प्रिय जगह हो और बारिश के रूप में अपना प्रेमभरा आशीर्वाद हरे-भरे जंगलों पर बरसा रहे हों। बारिश के इन सुहावने नजारों  से लोग यहां ट्रैकिंग करने आते हैं। सीता नदी के किनारे बैठकर इंद्रधनुष के रंगों का मजा लेना हो या जोगी कुंडी जलप्रपात में दोस्तों के साथ ठंडे पानी में नहाना हो, आगुम्बे का घना जंगल प्रकृति का हर बेहतरीन रूप पेश करता है। अंधेरा होते ही यह जंगल, जंगली प्राणियों की दहाड़, गुर्राहट और बादलों की गर्जना के साथ नाइट कैम्पिंग का रोमांचक अनुभव देगा। यदि आप बारिश के दिनों में उडुपी आते हैं तो च्दक्षिण के चेरापूंजीच् आगुम्बे के हसीन नजारों का आनंद लेना न भूलें। आसपास भी है अनूठा सौंदर्य

कापू बीच पर मस्तानी शाम

दिन ढलने पर जब सूरज की तपिश कम हो जाती है तो ऊंचे-ऊंचे नारियल के पेड़ों से सजे हुए कापू बीच पर सूरज की कोमल किरणों से चमकती पानी की लहरों से रौनक छा जाती है। यह शहर से करीब 17 किमी. दूर है। किनारे पर बना लाइटहाउस यहां के सुरम्य दृश्य को और भी खूबसूरत बना देता है। यदि लाइटहाउस के ऊपर से पूरे समुद्र तट का नजारा देखेंगे, तो ऐसा आभास होगा जैसे कोई खूबसूरत सपना देख रहे हों। ऐसा लगता है जैसे दूर तक फैला समंदर मानो नारियल के पेड़ों से सजी हरियाली और पीली रेत के साथ मिलकर किसी चित्रकार की मनोकल्पना को साकार करता कोई दृश्य सजा रहा हो।

 अन्नेगुदड़े की सैर

उडुपी से 33 किमी. दूर है अन्नेगुदड़े मंदिर। ऐसा लगता है जैसे ठंडी हवाओं के झोंके नारियल के पेड़ों को झुला रहे हो। अन्नेगुदड़े मंदिर की तरफ के रास्ते पर बस की खिड़की से बाहर झांकते वक्त एक ऊंची टेकड़ी पर बने इस मंदिर तक पहुंचने से पहले आपको एक कुंड के मध्य में बने सुंदर शिव मंदिर से गुजरकर जाना होगा। शांति और आध्यामिकता के साथ-साथ यहां की खूबसूरती भी आपक मन मोह लेगी। विशाल चमकीले झूमर और रंगीन लाइट्स के बीच में गणपति की विशाल चांदी की मूर्ति आपको ऐसा आभास कराएगी जैसे साक्षात अष्ट विनायक देव गणेश के दर्शन कर रहे हों।

अजब-गजब स्वाद

सुबह के शांतिपूर्ण वातावरण में आपको उडुपी की लगभग हर गली में कटहल के पत्तों में लपेटकर दी जाने वाली इडली जैसे दिखाई देते पाइप नजर आयें तो चौंकिएगा नहीं। दरअसल, यह उडुपी का विशिष्ट नास्ता च्कदुब्बूच् है, जिसे इडली के च्बेटरच् से ही गिलास के आकार में बनाया जाता है। अति-स्वादिष्ट व्यंजन नारियल की चटनी के साथ जब च्फिश मैक्सच् या च्फिश लैंडच् रेस्टोरेंट्स में परोसा जाता है तो मनिपाल और उडुपी के मछलीप्रेमी उसे खाने के लिए मचल उठते हैं। शाम की आरती के पहले मंदिर के नजदीक स्थित च्मित्र समाजच् में भी हलचल दोगुनी हो जाती है और आपको हर टेबल पर लोग गरमा-गरम फिल्टर कॉफी के साथ गोली भच्जे खाते नजर आयेंगे। गोली भच्जे मैदे, आटे तथा बेसन में थोड़ी मात्रा में दही और मिर्च डालकर बनाये जाते हैं। गोली भच्जे यहां के लोगो का मनपसंद नाश्?ता है। यदि आप उडुपी शैली का खाना चखना चाहें तो ब्राह्मण भोजन के नाम से प्रसिद्ध घी, चावल और शुद्ध घी में बने व्यंजन खाना न भूलें। च्मट्टी गुल्लाच् एक अन्य मशहूर व्यंजन है, जो बैंगन की स्लाइस में ताजे नारियल, जीरा और इमली की चटनी का मिश्रण डालकर बनाया जाता है। इसे पकाते समय जो खुशबू आती है, उसी से मुंह में पानी आ जाना स्वाभाविक है। खाने की थाली के साथ आपको अंकुरित मूंग से बनीच्कोसुम्बरीच् नामक चटपटी चाट जरूर भाएगी। अक्की पुण्डी अर्थात चावल के लड्डू और रसम के साथ कोसुम्बरी खाने का अनोखा मजा है। यदि यह कहें कि यहां स्वाद का खजाना बसता है तो गलत नहीं होगा। उडुपी के व्यंजन वैसे तो पूरे भारत में मशहूर हैं और शायद हर शहर में एक उडुपी होटल/रेस्?टोरेंट तो जरूर मिल जाएगा, लेकिन यदि आप खाने के शौकीन हैं तो यहां जो स्वाद मिलेगा शायद उसकी तुलना दूसरे शहरों में मिलने वाले व्यंजनों से नहीं की जा सकती। 

नाम गड़बड़ आइसक्रीम का अनोखा स्वाद 

उडुपी और गड़बड़ आइसक्रीम का अनमोल रिश्ता है। इस मशहूर गड़बड़ आइसक्रीम का जन्म स्थान उडुपी ही है। कहते हैं आइसक्त्रीम के अभाव में जब एक दुकानदार ने जल्बाजी में सारे गड़बड़ आइसक्रीम मिलाकर दे दिए तो इस गड़बड़ी से अंग्रेजी ग्राहक गुस्सा होने की जगह पहले तो आश्चर्य में पड़ गया और फिर जब उसे स्वाद पसंद आया तो दुकानदार की खूब तारीफ भी की। तभी से इस आइसक्त्रीम की डिमांड इतनी बढ़ गई कि आज तक उडुपी में हर किसी का मनपसंद आइसक्त्रीम शायद गड़बड़ आइसक्त्रीम ही है। इस गड़बड़ आइसक्रीम की खासियत यह है कि चाहे कितनी भी बार मंगवा लो, पर हर बार आपको अलग ही मिश्रण और स्वाद मिलेगा और इस प्रकार से आप कभी इस स्वादिष्ट गड़बड़ी को नहीं भूल पाएंगे।

करकला की ऐतिहासिक धरोहर

कर्णाटक में गोमतेश्र्वर की विशालकाय मूर्तियां आपको सिर्फ उनकी वीरता का ही नहीं,  उनकी प्रसिद्धि का भी प्रमाण देती हैं। राच्य की दूसरी सबसे ऊंची बाहुबली की मूर्ति करकला में स्थित है, जो 42 फीट ऊंची है। यह शहर से 37 किमी. की दूरी पर है। यह बेहद खास स्थल है। इस जगह की शांति और सुंदरता आपको जरूर मोहित कर देगी। बाहुबली की इस विशाल मूर्ति के साथ अठारहवीं सदी में बने अट्तुर चर्च की मीनारें, सदियों पुरानी चर्च बेल, ईसा मसीह की जीवन कथाएं सुनाते रंगबिरंगे चित्रों से सजी खिड़कियों के कांच और ऊंची इमारत की अद्भुत भव्यता भी आपको इस जगह के ऐतिहासिक महत्व से परिचय कराएगी।

परिका में नेचुरोपैथी और आयुर्वेदिक इलाज

आयुर्वेदिक तेल का मसाज, मन को शांति प्रदान करती शिरोधरा और स्वास्थ्यदायी सात्विक आहार से शरीर की स्फूर्ति और मानसिक स्वस्थता के साथ-साथ आनंदमयी चित्त की भी प्राप्ति होती है। इसकी अनुभूति करनी हो तो परिका में स्थित च्नेचर क्योरच् आश्रम में पधार सकते हैं। यह स्थल शहर से करीब 35 किमी. की दूरी पर है।यहां पर आप योग, ध्यान एवं रेकी के अभ्यास और मिट्टी से न करके शरीर की ऊष्णता निकालकर दिन की शुरुआत कर सकते हैं। विशिष्ट सुहावनी शाम में आश्रम के बाग में टहलकर चिंतामुक्त जीवन की अनुभूति कर सकते हैं। चाहें तो परिका में पूरे सप्ताह या महीना बिताकर भी अपने तन-मन को स्फूर्तिवान बना सकते हैं।

मुरुदेश्र्वर बीच

इस बीच पर शिवजी की भव्य प्रतिमा कुछ इस तरह स्थापित की गयी है, जिससे ऐसा आभास होगा कि स्वयं शिवजी इस समुद्र तट पर ध्यानमुद्रा में लीन हैं। आसमान को छूते टॉवर सा बना शिव मंदिर इस बीच को आकर्षक बनाता है। यह घुमक्कड़ों का मनपसंद स्थान भी है। यह शहर से करीब 102 किमी. की दूरी पर है।

इन्हें भी जानें

-उडुपी का प्राचीन नाम उडुपा था, जिसको प्राचीन काल में रजतपीठपुर, रौप्यपीठपुर एवं शिवाली भी कहते थे।

 -उडुपी, मंगलौर और आसपास के प्रदेश तुलुनाडु प्रदेश कहलाते हैं और यहां की स्थानीय भाषा कन्नड़ नहीं च्तुलुच् है।

 -उडुपी के कुछ पुराने बंदरगाहों से राजाओं के समय से ही देश-विदेश तक व्यापार चलता था।

 -शहर और आसपास के इलाकों में कटहल का सबसे च्यादा उत्पादन होता है।

 -दक्षिण भारत के प्रसिद्ध दार्शनिक और द्वैतमत के प्रतिपादक मनीषी माध्वाचार्य की जन्मभूमि है।

 -यहां भारत प्रसिद्ध कृष्ण मंदिर है, जिसके संस्थापक 13वीं सदी के प्रसिद्ध

 वैष्णव सुधारक श्री माधवाचार्य माने जाते हैं।

 -कहा जाता है कि माधवाचार्य ने अपना प्रसिद्ध च्गीताभाष्यच् इसी स्थान पर लिखा था।

 -परियाय नामक प्रसिद्ध पर्व पर प्रत्येक दूसरे वर्ष जनवरी में यहां बड़ी धूमधाम रहती है।

सैर: कब और कैसे?

उडुपी से सबसे नजदीक हवाईअड्डा मंगलौर में है। यह बेंगलुरु से 400 किमी. ओर मंगलौर से 54 किमी. की दूरी पर है। यह शहर सड़कमार्ग और रेलमार्ग द्वारा भारत के सभी मुख्य शहरों से जुड़ा हुआ है। बारिश का मौसम या सर्दी का मौसम उडुपी की सैर करने के लिए सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। रिक्शा और सरकारी बसों द्वारा आप उडुपी तथा आसपास की सारी जगहों की आसानी से सैर कर सकते हैं। दिसंबर से फरवरी यहां घूमने के लिए आदर्श समय है।

लेखन : पूर्वी कमालिया


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.