Move to Jagran APP

दिल्ली की खुफिया रास्तों की दास्तां

बादशाहों की पसंद दिल्ली की जमीं, कई लड़ाइयों की गवाह बनी। सियासत की इस बिसात पर वे खुद नहीं समझ पाते थे कि कब वे मात खा जाएं। बादशाहों ने अपने बचाव के लिए एक अदद ऐसे रास्ते जरूर तैयार किए, जिससे वे दुश्मनों से बचकर निकल सकें। राजाओं ने

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 12 Mar 2016 02:43 PM (IST)Updated: Sat, 12 Mar 2016 02:54 PM (IST)
दिल्ली की खुफिया रास्तों की दास्तां
दिल्ली की खुफिया रास्तों की दास्तां

बादशाहों की पसंद दिल्ली की जमीं, कई लड़ाइयों की गवाह बनी। सियासत की इस बिसात पर वे खुद नहीं समझ पाते थे कि कब वे मात खा जाएं। बादशाहों ने अपने बचाव के लिए एक अदद ऐसे रास्ते जरूर तैयार किए, जिससे वे दुश्मनों से बचकर निकल सकें। राजाओं ने अपने शासन में शानदार किले तो बनवाये ही उनमें खुफिया रास्ते भी बनाए। प्रस्तुत है इन्हीं सुरंग नुमा खुफिया रास्तों की सैर :

loksabha election banner

उन खुफिया रास्तों का जिक्र छिड़ा है जिससे होते हुए कभी बादशाहों ने अपनी जान बचाई होगी या फिर चुपचाप शिकार पर जाने के लिए इन रास्तों का इस्तेमाल किया होगा। सियासत की समझ रखने वाले बादशाहों ने सुरंगें भी बनाई, जिसका जिक्र किताबों में है। हाल ही में दिल्ली विधानसभा में भी सुरंग निकलने का दावा किया गया है। इस बारे में अब शोध हो रहा है लेकिन यह पहला मौका नहीं है जब दिल्ली में सुरंग का जिक्र छिड़ा हो। इससे पहले भी कश्मीरी गेट के पास ऑक्टर्स लोनी के घर में सुरंग मिली थी जिसे बंद कर दिया गया, मौजूदा समय में यहां उत्तरी रेलवे का दफ्तर है। माना जाता है कि यह सुरंग कश्मीरी गेट तक निकलती है। इसके साथ निजामुद्दीन औलिया की दरगाह की बावली में भी एक खुफिया रास्ता होने की बात कही गई है। इसी रास्ते से निजामुद्दीन औलिया बावली में आया करते थे। इस पर काम भी हुआ लेकिन प्रशासनिक तौर पर इसके दस्तावेज नहीं प्राप्त हुए। यही नहीं दिल्ली में सात किलोमीटर लंबी सुरंग होनी की भी बात कही जाती है। यह सुरंग इतनी लंबी और बड़ी बताई जाती है कि इससे बादशाह की फौज घोड़े पर बैठकर भी आराम से निकल सकती थी। बाड़ा हंिदूूराव के पास पीर गायब ऐतिहासिक स्मारक के पास इसके खंडहर से जाकर सुरंग होने की बात किताबों में दर्ज है। यह सुरंग पीर गायब से फिरोज शाह कोटला तक जाती थी। अब इतनी लंबी सुरंग थी या नहीं यह शोध का विषय है।

जानकारों के मुताबिक शहांजहांनाबाद में कई सुरंग थीं, जिसकी जानकारी सिर्फ राजा के चुनिंदा वफादारों तक ही होती थी। सुरंग के कुछ प्रमाण तुगलकाबाद के किले में भी देखे जा सकते हैं। यहां जमीन के अंदर की ओर बने हुए कई रास्ते नजर आते हैं। उस क्षेत्र के लोगों का कहना है कि इस किले और सड़क के पार गयासुद्दीन तुगलक के मकबरे के बीच एक सुरंग है। उसकी कब्र के पास कुछ लोहे के ग्रिल लगी हुई हैं। सुरंग का यह रास्ता कब्र की तरफ जाता है। इसी तरह लालकिले को लेकर कई सुरंगों की कहानी है। जाहिर है यह सत्ता का केन्द्र भी रहा। कहा जाता है कि लालकिले के अंदर एक ऐसी सुरंग हुआ करती थी जो चांदनी चौक को यमुना नदी से जोड़ा करती थी। हालांकि इस बारे में यहां के अधिकारी कुछ भी कहने से कतराते हैं। अलबत्ता रंगमहल के पास पीछे एक गेट जरूर है जिससे शाहजहां यमुना नदी में जाया करते थे।

विजयालक्ष्मी सिर्फ कहानियां ही नहीं हकीकत भी है

शाहजहांनाबाद में सुरंग और खुफिया रास्तों की कहानियां सिर्फ कहानियां नहीं हकीकत भी हैं। दिल्ली में 15 शासकों ने राज किया और हर बादशाह ने अपने बचाव के लिए खुफिया रास्ता बनाया। इसके बारे में इतिहास में इसलिए भी ज्यादा तथ्य नहीं क्योंकि अंग्रेजों को इन रास्तों से ही खतरा था इसलिए सबसे पहले उन्होंने सुरंगों और खुफिया रास्तों को नेस्तोनाबूद किया। आज भी अगर इस संबंध में सर्वे किया जाए तो सुरंगों के बारे में ढेर सारी जानकारियां मिल सकती हैं। 1880 के पहले के इतिहासकारों ने अपनी किताबों में भी इसका जिक्र किया है। विलियम डेलरिंपल की किताब ‘सिटी ऑफ जिंस’ में उन्होंने लालकिले में सुरंग होने की बात लिखी है, क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि शहांजहांनाबाद बसाते समय बादशाह ने अपनी सुरक्षा के लिए अपने किले से शहर के बाहर तक सुरंग बनाई थी। लेकिन इस तथ्य के भी सुबूत नहीं मिलते। वजह, कभी किसी ने इस संबंध में शोध करने की कोशिश ही नहीं की। दंत कथाएं जरूरत हैं लेकिन उन कथाओं का आधार भी हो सकता है इस बारे में किसी एजेंसी को खोजने की लालसा नहीं है। लालकिले में भी सुरंगों के बारे में कई कहानियां है। कहा जाता है जब नादिर शाह ने मुगलों पर हमला किया तब उसने पूरी दिल्ली में कत्लेआम मचा रखा था और सिर्फ तीन घंटे में ही मुगलों की फौज को हरा दिया था। तब बादशाह मोहम्मद शाह ने नादिर से मुलाकात करने के लिए खुफिया रास्ते का इस्तेमाल किया था। लालकिले में जिस तरह मेहताब बाग की खोज की जा रही है उसी तरह उन खुफिया रास्तों की भी तह तक जाने की जरूरत है।

मिटा दिया था नामों-निशान

दिल्ली में तुगलकाबाद के किले के अंदर कुछ एक ऐसे तथ्य मिलते हैं जिससे लगता है कि यहां खुफिया रास्ते रहे होंगे। किले के अंदर भूमिगत बाजार होने के सुबूत मिले हैं, क्योंकि उस रास्ते के दोनों तरफ आर्क मिले हैं। ऐसा लगता है कि इस रास्ते में बाजार लगता होगा। इसी तरह कुछ और रास्ते हो सकते हैं जो जमीन के अंदर होते हों। चूंकि जब अंग्रेज दिल्ली आए उन्होंने सभी ऐसे रास्ते खत्म कर दिए जिससे उनके राज को खतरा था। बेशक उन्होंने बाद में कुछ बनाया होगा जिससे अभी तक एएसआइ अनभिज्ञ हो। चूंकि सुरंगों के नाम पर लोगों की जिज्ञासा जाग जाती है, इसलिए भी कई कहानियां बनाई गई हैं। जैसे कहा जाता है कि दिल्ली से आगरा तक एक सुरंग होती थी, जो कि संभव नहीं है। अगर ऐसा होता तो कुछ शाफ्ट तो मिलते। हो सकता है कि लालकिले के पीछे यमुना नदी से होते हुए आगरा जाने की कहानी को लोगों ने सुरंगी रास्ता बना दिया हो। तुगलकाबाद के किले में कुछ साक्ष्य जरूरत मिले हैं, लेकिन पीर गायब और फिरोजशाह कोटला में सुरंग के बारे में ऐसी कोई जानकारी नहीं है।

दबी हैं कई रोचक कहानियां

सुरंगों के बारे में ज्यादा सुबूत इसलिए भी नहीं हैं क्योंकि ये गुप्त रखे जाते थे। ये वो रास्ते होते थे जहां से राजा और रानी युद्ध के दौरान भाग सकें या फिर वो रास्ते जहां से उनके मुखबिर, भरोसेमंद लोग उनके लिए मुखबिरी करते होंगे। इसलिए इन रास्तों को राज रखा जाता था। उस समय के भी राजाओं के सिवाय कुछ खास लोगों को ही इसके बारे में जानकारी होती थी। दिल्ली में कई राजाओं ने खुद अंग्रेजों ने भी सुरंग बनाई होगी। कथाएं यू हीं नहीं बनती। अगर बातें होती रही हैं तो इसके पीछे कुछ तो तथ्य होंगे ही और ऐसा नहीं है कि कहीं सुरंग मिली ही नहीं हैं। कई किले में सुरंग मिली हैं। दिल्ली में भी कुछ सुरंग हो सकते हैं। दिल्ली में फिरोजशाह तुगलक ने काफी निर्माण कार्य करवाया था और कहा जाता है कि उन्होंने फिरोजशाह कोटला से लेकर पीर गायब तक एक सुरंग बनवाई थी। यह सुरंग इतनी बड़ी थी कि इसमें दो घोड़े भी आराम से जा सकते थे। माना जाता है कि यह सुरंग सात किलोमीटर तक हो सकती है जो फिरोजशाह कोटला के किले तक आती है। आज भी पीर गायब में वो दीवार जरूर है जिससे कभी सुरंग निकलती होगी। पीर गायब स्मारक के पास ही सुरंग होने की बात है। वो फिरोजशाह कोटला तक आती है। हो सकता है कि जमीन के अंदर खुफिया रास्तों का एक चैनल हो।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.