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Shivaji Jayanti: शिवनेरी से लेकर सिंधु दुर्ग तक किले जो याद दिलाते हैं उनकी गौरव गाथा

Shivaji Jayanti: वीरता और पराक्रम की मिसाल थे छत्रपति शिवाजी। 19 फरवरी को जन्में शिवाजी जी द्वारा बनाए गए किलों की सैर का आज कर सकते हैं प्लान।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Tue, 19 Feb 2019 03:51 PM (IST)Updated: Tue, 19 Feb 2019 03:51 PM (IST)
Shivaji Jayanti: शिवनेरी से लेकर सिंधु दुर्ग तक किले जो याद दिलाते हैं उनकी गौरव गाथा
Shivaji Jayanti: शिवनेरी से लेकर सिंधु दुर्ग तक किले जो याद दिलाते हैं उनकी गौरव गाथा

 भले ही शिवाजी महाराज ने महाराष्ट्र की धरती पर जन्म लिया हो लेकिन जब बात उनकी वीरता और उदारता की होती है तो भारत के हर एक नागरिक का सिर उनके सम्मान में झुकाई देता है। 19 फरवरी 1630 को महाराष्ट्र के शिवनेरी में जन्मे शिवाजी बचपन से ही अपने कारनामो के चलते दूर-दूर तक मशहूर थे। महज़ 17 वर्ष की उम्र में उन्होंने टोमा, रायगढ़ और कोंडना फोर्ट को अपने अधीन कर लिया था और ये सिलसिला 1676 तक ऐसे ही चलता रहा।        

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शिवनेरी किले में गुजरा शिवाजी का बचपन

शिवाजी के जन्म के समय उनके पिता शाहजी ने अपनी पत्नी जीजाबाई की सुरक्षा के लिए इस किले को बनवाया था। जन्म के बाद तकरीबन 10 साल तक शिवाजी का पालन-पोषण यहीं शिवनेरी किले में हुआ था। किले के अंदर ही एक मंदिर भी है जिसमें माता जीजाबाई और शिवाजी के बचपन की मूर्तियां बनी हुई हैं। साथ ही शिवाजी का नाम देवी शिवाई के नाम पर रखा गया था जिनका मंदिर भी किले के अंदर ही है।

क्यों खास है यह किला किले की बनावट

किला चारों ओर से बड़ी-बड़ी चट्टानों से घिरा हुआ है। किले के बीचों-बीच एक बड़ा सा तालाब है जिसे 'बादामी तालाब' कहते हैं। मंदिर में पीने के लिए पानी के दो स्त्रोत है जिसे गंगा-यमुना कहा जाता है। इस किले से जमीन को 360 डिग्री तक आराम से देखा जा सकता है। सैनिक यहां से दुश्मनों के आक्रमण का जायजा लेते थे।

तो आज हम उनके द्वारा बनाए गए किलों के बारे में जानेंगे। जो उन्होंने दुश्मनों से अपनी सेना और प्रजा की रक्षा के लिए बनाए थे और आज भी वैसे ही कायम हैं।  

पुरंदर किला

पुणे से 50 किमी की दूरी पर सासवाद गांव में बना है पुरंदर का किला। इसी किले में छत्रपति शिवाजी के बेटे संभाजी राज भोसले का जन्म हुआ था। पश्चिमी घाट की पहाड़ियों में समुद्र से 4472 फीट की ऊंचाई पर स्थित है यह किला। जिसमें एक सुरंग है और इसका रास्ता किले के बाहर की ओर जाता है | इस सुरंग का इस्तेमाल युद्ध के समय शिवाजी बाहर जाने के लिए किया करते थे।

रायगढ़ का किला

रायगढ़ का किला छत्रपति शिवाजी की राजधानी की शान रही है। उन्होंने 1674 ईस्वी में इस किले को बनवाया था। मराठा साम्राज्य का नरेश बनने पर लम्बे समय तक रायगढ़ किला उनका निवास स्थान बना रहा। रायगढ़ किला समुद्रतल से 2700 फुट की उंचाई पर स्थित है | इस किले तक पहुंचने के लिए करीब 1737 सीढ़ियां चढ़नी पडती है | रायगढ़ किले पर 1818 ईस्वी में अंग्रेजों ने कब्जा जमा लिया और किले में जमकर लूटपाट मचाकर इसके काफी हिस्सों को नष्ट कर दिया।

सुवर्ण दुर्ग

सुवर्ण दुर्ग किला गोल्डन फोर्ट के नाम से भी मशहूर है। जिसपर शिवाजी ने 1660 ईस्वी में कब्जा किया था। उन्होंने अली आदिलशाह द्वितीय को हराकर सुवर्णदुर्ग को मराठा साम्राज्य में मिला दिया था। समुद्री ताकत को बढ़ाने के लिए इस किले पर कब्जा किया गया था। इसी किले में शिवाजी के बाद के राजाओं ने मराठा जल सेना भी बनाई थी। इस किले के जरिए मराठों ने कई समुद्री आक्रमणों को रोका था।

 

सिन्धु दुर्ग

छत्रपति शिवाजी ने सिन्धु दुर्ग का निर्माण कोंकण तट पर कराया था। मुंबई से 450 किमी दूर कोंकण के पास सिंधुदुर्ग किला है। इस किले को बनने में तीन साल का समय लगा था। सिन्धुदुर्ग किला 48 एकड़ में फैला हुआ है। किले का बाहरी दरवाजा इस तरह बनाया गया है कि सुई भी अंदर नहीं जा सकती |

लोहागढ़ दुर्ग

लोहागढ़ दुर्ग में मराठा साम्राज्य की ख़जाना रखा जाता था। यह पुणे से 52 किमी दूर लोनावाला में स्थित है। कहा जाता है कि सूरत से लूटी गई संपती को भी यही रखा गया था। मराठा के पेशवा नामा साहब ने लम्बे समय तक लोहागढ़ दुर्ग को अपना निवास स्थान बनाया था। 

अर्नाला का किला

अर्नाला का किला महाराष्ट्र के वसई गांव में है। यह मुंबई से 48 किमी दूरी पर है। बाजीराव के भाई चीमाजी ने इस पर कब्जा कर लिया था। हालांकि इस युद्ध में काफी लोगों को मराठों ने खोया था। 1802 ईस्वी में पेशवा बाजीराव द्वितीय ने संधि कर ली। इसके बाद अर्नाला का किला अंग्रेजों के कब्जे में आ गया। इस किले पर गुजरात के सुल्तान, पुर्तगाली, अंग्रेज और मराठाओं ने शासन किया। अरनाला का किला तीनों ओर से समुद्र से घिरा हुआ है। 

प्रतापगढ़ किला

महाराष्ट्र के सतारा में स्थित प्रतापगढ़ किला शिवाजी के शौर्य की कहानी बताता है। इस किले को प्रतापगढ़ में हुए युद्ध से भी जाना जाता है। शिवाजी ने नीरा और कोयना नदियों के तटों की सुरक्षा के लिए यह किला बनवाया था। 1665 में प्रतापगढ़ का किला बनकर तैयार हुआ था। इस किले से 10 नवम्बर 1656 को छत्रपति शिवाजी और अफजल खान के बीच युद्ध हुआ था जिसमें शिवाजी की जीत हुई थी। प्रतापगढ़ किले की इस जीत को मराठा साम्राज्य के लिए नींव माना जाता है। 


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