वीकेंड में नहीं होना है बोर, तो निकल जाएं खूबसूरत अयोध्या की ओर
वीकेंड घर पर बैठकर बोर नहीं होना चाहते और शिमला मनाली नैनीताल की भीड़ से कहीं दूर शांत जगह पर रिलैक्स होना चाहते हैं तो अयोध्या है बेहतरीन डेस्टिनेशन।
तीर्थ नगरी के रूप में ही नहीं कला, संस्कृति और पर्यटन की दृष्टि से भी सदानीरा सरयू के तट पर बसी अयोध्या की समृद्ध परंपरा रही है। यह परंपरा नए सिरे से रोशन है। उत्तर मध्यकाल, जिसे भक्तिकाल के नाम से भी जाना जाता है, उस दौर में यहां पूरे भारत की रियासतों के मंदिर बने। आज भी अयोध्या में सौ के करीब रियासतों के मंदिर का अस्तित्व मिलता है। लेकिन और भी कई ऐसी जगहें हैं जो अयोध्या में घूमने लायक हैं। तो चलते हैं इसके सफर पर...
स्वामीनारायण मंदिर
रामनगरी से बमुश्किल 40 किलोमीटर दूर गोंडा जिला के ग्राम छपिया स्थित स्वामीनारायण संप्रदाय के प्रवर्तक स्वामीनारायण का मंदिर भी दर्शनीय है। भव्यता की दृष्टि से यह मंदिर उसी शीर्ष श्रृंखला का है, जो स्थापत्य के शानदार उदाहरण हैं। इसी के साथ अयोध्या में भी स्वामीनारायण संप्रदाय के संतों का आवागमन बना रहता है।
भरतकुंड
भरतकुंड रामनगरी अयोध्या से करीब 10 किलोमीटर दूर प्रयागराज हाइवे पर वह स्थल है, जहां मान्यतानुसार भगवान राम के वनगमन के बाद भरत ने 14 वर्ष तक तपस्या करते हुए अयोध्या का राज्य संचालन करते हुए उनके लौटने की प्रतीक्षा की। बूढ़े वृक्षों और प्राचीन-प्रशस्त कुंड से युगों पुरानी विरासत से भरत के गांभीर्य, त्याग और भ्रातृ प्रेम की झलक मिलती है।
शृंगीऋषि आश्रम
फैजाबाद-टांडा मार्ग पर स्थित शृंगीऋषि आश्रम उस पौराणिकता का पूरक है, जिसके केंद्र में अयोध्या है। सरयू के भव्य मुहाने पर स्थित यह स्थान प्राकृतिक सुषमा से युक्त है और यहां आने पर एकबारगी चित्त ध्यानस्थ होता है। सरयू के उसी तट पर शृंगीऋषि की गुफा भी स्थित है, जिसके बारे में मान्यता है कि शृंगीऋषि इसी गुफा में बैठकर तपस्या करते रहे।
मनोरमा नदी और मख भूमि
पड़ोस के बस्ती जिले में परशुरामपुर बाजार में मनोरमा नदी के तट वह स्थान आज भी संरक्षित है, जहां माना जाता है कि त्रेता युग में राजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ किया था। युगों के सफर में वह यज्ञ भूमि सुनिश्चित करनी मुश्किल है, जहां दशरथ ने यह किया होगा पर यज्ञशाला और अनेक मंदिरों तथा मनोरमा नदी के मनोहारी प्रवाह के साथ अतीत की स्मृति में उतरना शानदार हो सकता है।
हनुमानगढ़ी
कनक भवन की तरह हनुमानगढ़ी भी त्रेतायुगीन है। 18वीं शताब्दी के मध्य अवध के नवाब मंसूर अली के समय यह स्थल मिट्टी के ऊंचे टीले तक सिमट कर रह गया था। हनुमान जी के पुजारी महंत अभयरामदास की आला रूहानी हैसियत से प्रभावित नवाब ने यहां किले जैसा मंदिर बनवाया और मंदिर के लिए 52 बीघा भूमि के साथ अन्य संपत्तियां भी दान कीं।
नवाबों की पुरानी राजधानी
रामनगरी को नवाबों की राजधानी होने का गौरव भी हासिल हो चुका है। सन् 1731 में तत्कालीन मुगल बादशाह मुहम्मद शाह ने अवध सूबे को नियंत्रित करने का दायित्व अपने शिया दीवान सआदत खां को सौंपा। उन्होंने अपना डेरा रामनगरी में ही सरयू तट पर डाला। अवध के दूसरे नवाब मंसूर अली और शुजाउद्दौला के समय नवाबों की राजधानी के तौर पर रामनगरी से कुछ ही दूरी पर फैजाबाद शहर आबाद हुआ। 1775 में शुजाउद्दौला की मृत्यु के बाद चौथे नवाब आसफुद्दौला ने फैजाबाद से अपनी राजधानी लखनऊ स्थानांतरित की। नवाबों की स्थापत्य कला के शानदार उदाहरण के रूप में शुजाउ्दौला का मकबरा, उनकी पत्नी बहू बेगम का मकबरा एवं शाही दरवाजे अभी भी नवाबों के दौर की याद दिलाते हैं।