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अक्टूबर के सुहावने मौसम में लें मज़ा, बेहद खूबसूरत नगरी महाबलीपुरम घूमने का

महाबलीपुरम में अतीत के स्वर्णिम दस्तावेज हैं जिसके हर पन्ने पर एक कहानी लिखी है। कहानी जिसका संबंध है महाभारत से तमिल साहित्य से। जानेंगे क्यों महाबलीपुरम है इतना खास।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Thu, 10 Oct 2019 11:14 AM (IST)Updated: Thu, 10 Oct 2019 11:14 AM (IST)
अक्टूबर के सुहावने मौसम में लें मज़ा, बेहद खूबसूरत नगरी महाबलीपुरम घूमने का
अक्टूबर के सुहावने मौसम में लें मज़ा, बेहद खूबसूरत नगरी महाबलीपुरम घूमने का

सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने पल्लवों की राजधानी कांचीपुरम का भ्रमण किया था। सैकड़ों साल बाद कल चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनौपचारिक शिखर वार्ता के लिए पल्लवों की शिल्प-नगरी रहे और यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल मामल्लपुरम आ रहे हैं। इस मौके पर आज डॉ. कायनात काजी के साथ चलते हैं चेन्नई के पास स्थित धरोहर शहर के सफर पर...

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कलाप्रेमी शासक

महाबलीपुरम या मामल्लपुरम पल्लव शासन काल में प्रमुख समुद्री बंदरगाह था। वैसे तो पल्लवों की राजधानी कांचीपुरम हुआ करती थी, लेकिन महाबलीपुरम को पल्लव अपनी दूसरी राजधानी की तरह महत्व देते थे। इस जगह पर पल्लवों ने पांचवीं सदी से आठवीं सदी के बीच शासन किया था। पल्लव राजवंश दक्षिण भारत का एक बड़ा साम्राच्य था। उत्तरी तमिलनाडु से लेकर दक्षिणी आंध्र प्रदेश तक इस साम्राच्य का विस्तार था। अत्यंत वैभवशाली होने के नाते पल्लव साम्राच्य के विदेश से भी व्यापारिक संबंध थे। यहां से प्राप्त चीन और यूरोपीय देशों के तीसरी और चौथी सदी के सिक्कों से प्रमाणित होता है कि महाबलीपुरम उस समय एक बड़ा व्यापारिक केंद्र था। प्राप्त शिलालेखों के अनुसार, महाबलीपुरम के स्मारकों को पल्लव राजा महेंद्र वर्मन ने बनवाया, जिसे बाद में उनके पुत्र नरसिंह वर्मन ने 630-668 ई. के अपने शासनकाल के बीच और परिष्कृत किया। आगे चलकर उनके वंशजों द्वारा भी कई निर्माण कार्य करवाए गए। पल्लव साम्राच्य में कई कलाप्रेमी शासक हुए, जो ललित कला के संरक्षक थे। इनके साम्राच्य में ये कलाएं न सिर्फ फली-फूलीं, बल्कि इनको खूब संरक्षण भी मिला।

चीन से प्राचीन कनेक्शन

आज अगर चीन के राष्ट्रपति हमारे प्रधानमंत्री के साथ अनौपचारिक शिखर वार्ता के लिए इस शहर में आ रहे हैं, तो इसमें हैरत नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इसका चुनाव संभवत: इसीलिए किया गया है, क्योंकि प्राचीन काल में भी इस शहर का चीन के साथ रिश्ता था। जी हां, यह रिश्ता रक्षा और व्यापार से जुड़ा था, जिसकी गवाही देते हैं यहां पर मिलने वाले चीनी सिक्के, शिलालेख और प्राचीन लिपियां। चीन ने पल्लव वंश के राजाओं के साथ कई संधियां की थीं। 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया था। वह पल्लव वंश के शासनकाल में कांचीपुरम पहुंचा था। उस वक्त चीन और तमिलनाडु दोनों के प्रतिनिधिमंडल एक-दूसरे के यहां आया-जाया करते थे।

मामल्लपुरम के स्मारक

हर तरफ फैली वास्तु संरचनाओं के कारण पर्यटकों के लिए मामल्लपुरम बेहद आकर्षक जगह है। इनमें से सबसे अच्छे स्मारकों के समूह को यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया है। यहां देखने को इतना कुछ है कि दिन ढल जाए और दर्शन खत्म न हो। इसे देखकर ऐसा लगता है, जैसे इसे किसी जादू से बनाया गया हो। विशाल शिलाओं को तराश कर उनमें जान डाली गई हो। ये स्मारक अतीत के स्वर्णिम दस्तावेज हैं, जिसके हर पन्ने पर एक कहानी लिखी है। कहानी जिसका संबंध है महाभारत से, तमिल साहित्य से।इन स्मारकों को मुख्य रूप से चार श्रेणियों में बांटा गया है- रथ, मंडप, गुफा मंदिर, संरचनात्मक मंदिर और विशाल चट्टानें। ये सभी वास्तुकला का बेजोड़ उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।

कैसे जाएं?

महाबलीपुरम से 60 किमी. दूर स्थित चेन्नई निकटतम एयरपोर्ट है। भारत के सभी प्रमुख शहरों से चेन्नई के लिए उड़ाने हैं। यहां से आप बस या टैक्सी द्वारा मामल्लपुरम पहुंच सकते हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन भी चेन्नई है, जहां से बस या टैक्सी द्वारा यहां पहुंच सकते हैं। चेंगलपट्टू यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन है, जो मामल्लपुरम से 29 किमी. की दूरी पर है। यह शहर तमिलनाडु के प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा है। राज्य परिवहन निगम की नियमित बसें अनेक शहरों से यहां के लिए चलती हैं। 


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