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त्रिपुरा के हर एक रंग की झलक देखने को मिलती है 'उज्जयंता पैलेस' में

त्रिपुरा की खूबसूरती का नायाब नमूना है उज्जयंता पैलेस। जो अब म्यूज़ियम में बदला जा चुका है लेकिन आज भी इसकी खूबसूरती वैसे ही बरकरार है।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Fri, 03 Aug 2018 03:53 PM (IST)Updated: Sun, 05 Aug 2018 06:00 PM (IST)
त्रिपुरा के हर एक रंग की झलक देखने को मिलती है 'उज्जयंता पैलेस' में
त्रिपुरा के हर एक रंग की झलक देखने को मिलती है 'उज्जयंता पैलेस' में

त्रिपुरा के शाही कल्चर के साथ-साथ माणिक्य राजवंश की गाथा को बयां करता हुआ उज्जयंता पैलेस यहां के शानदार धरोहरों में शामिल है। सफेद संगमरमर से चमकता हुआ ये महल राजधानी अगरतला में स्थित है। महल का निर्माण भले ही काफी सालों पहले हुआ है लेकिन इसकी खूबसूरती  आज भी वैसी ही बरकरार है। सन् 1901 में राजा राधाकिशोर माणिक्य द्वारा महल का निर्माण कराया गया था। इंडो-ग्रीक स्टाइल में बने इस महल के आसपास कई सारे छोटे-छोटे बाग-बगीचे और मंदिर भी हैं, जिनमें लक्ष्मी नारायण, उमा-माहेश्वरी, काली और जगन्नाथ मंदिर प्रमुख हैं। हालांकि अब इस महल का इस्तेमाल कुछ समय तक राज्य की विधानसभा की बैठकों के लिए किया जाता है लेकिन अब टूरिस्टों के लिए इसे म्यूज़ियम में तब्दील कर दिया गया है। जो नॉर्थ-ईस्ट इंडिया का सबसे बड़ा म्यूज़ियम है। 

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उज्जयंता महल की खूबसूरती

800 एकड़ में फैले इस महल में सिंहासन रूम, दरबार हॉल, लाइब्रेरी और रिसेप्शन हॉल है। इस महल को एलेक्जेंडर मार्टिन ने डिज़ाइन किया था। महल में अलग-अलग जगहों का आर्किटेक्चर देखने को मिलता है। महल में तीन ऊंची गुंबदें हैं। सबसे ऊंचे गुंबद की ऊंचाई 86 फीट है। महल की खूबसूरती बढ़ाने का काम करते हैं म्यूज़िकल फाउंटेन, जो मुख्य द्वार पर लगे हैं। कहा जाता है उस समय इसे बनवाने में लगभग 10 लाख रूपए खर्च हुए थे। महल का नामकरण रविन्द्रनाथ टैगोर ने किया था।

म्यूज़ियम की खासियत 

म्यूज़ियम में 16 गैलरी हैं। हर एक गैलरी में नॉर्थ ईस्ट अलग-अलग झलकियां देखने को मिलती है। ऐतिहासिक, आर्किटेक्चर और पारंपरिक संस्कृति के अलावा त्रिपुरा के त्यौहार, 14 खास पूज्नीय भगवान, 20 बांस की जातियां और मुख्य जन-जातियों के बारे में भी यहां देखने को मिलता है।   

कैसे पहुंचे

हवाईमार्ग- दिल्ली, गुवाहाटी, कोलकाता और मुंबई जैसे सभी बड़े शहरों से यहां तक के लिए फ्लाइट की सुविधा मौजूद है।

रेलमार्ग- कुमारघाट(160 किमी) और धर्मनगर(200 किमी) ये दोनों ही यहां तक पहुंचने के सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन हैं।  

सड़कमार्ग-  सिलचर, गुवाहाटी, शिलांग और धरमनगर से यहां तक पहुंचने के लिए बसें अवेलेबल रहती हैं।


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