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हर जगह के जायके का स्वाद मिलता है इंदौर की इन गलियों में

गुजरात के मिठास और विदर्भ के तीखे जायके को चखने के लिए इंदौर की गलियों में जरूर आएं। जहां लोग खाना बनाने का ही नहीं खिलाने का भी शौक रखते हैं।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Fri, 27 Jul 2018 12:38 PM (IST)Updated: Fri, 27 Jul 2018 01:34 PM (IST)
हर जगह के जायके का स्वाद मिलता है इंदौर की इन गलियों में
हर जगह के जायके का स्वाद मिलता है इंदौर की इन गलियों में

मिलनसारिता के साथ तहजीब के मामले में इंदौर लखनऊ से कम नहीं हैं। यहां मसालों की महक के साथ मिठास का स्वाद भी साथ-साथ परवान चढ़ता है। फिर चाहे बात पारंपरिक पकवानों की हो या नए कलेवर के साथ पुराने व्यंजनों के अलहदा स्वाद को लेकर बने आज के दौर के व्यंजन। हर व्यंजन को यहां जितनी शिद्दत से बनाया जाता है उससे कहीं ज्यादा प्यार से खिलाया और खाया जाता है। शायद यही वजह है कि इस शहर की गलियां जहां दिन में कारोबारी भीड़ के चलते पैर रखने की भी इजाजत नहीं देती, वहीं रात के दामन फैलाते ही स्वाद के शौकीनों की महफिलें लजीज पकवानों के साथ जम जाती है। मजे की बात तो यह है कि यहां की सड़कों पर लगने वाली खान-पान की दुकानों का इतिहास राजे-रजवाड़ों के दौर का नहीं होने के बावजूद आज इतना ज्यादा प्रसिद्ध हो गया कि इन गलियों में अपने स्वाद को तलाशने हर वह व्यक्ति आता है जो खान-पान का कद्रदान है। खास बात तो यह है कि पीढि़यों से इन तमाम व्यंजनों का स्वाद बरकरार है। इस बाजार में भुट्टे को पीसकर बनाया गया नमकीन व्यंजन, जमीन के भीतर पनपने वाले कंद को तलकर उस पर नीबू और खास तरह के मसाले जीरावन को डालकर परोसने की पाक कला, दोने में दही बड़े को रखकर उछाल-उछालकर शौकीनों को स्वाद और करतब के साथ आकर्षित करने का हुनर हर किसी को एक बार यहां आने पर मजबूर कर देता है। प्रकाश अग्रवाल अपनी मुस्कान के साथ भुट्टे का कीस कुछ इस तरह खिलाते हैं कि खाने वाला भी मुस्कुराए बिना नहीं रह पाता। अग्रवाल जी यही कहते हैं कि बेशक खाना बनाना एक कला है तो उसे खिलाना भी कला ही है। इसी तरह रमेशचंद्र जोशी के दही बड़े भी बड़े दिलचस्प हैं। यहां ओम जोशी दुकान पर आने वालों को कभी अकबर बना देते हैं तो कभी शहंशाह, पर वे पूछने पर भी अपनी पाक कला के जादू का राज नहीं बताते। बदलते वक्त के साथ अब यहां सांभर-डोसा, छोले-टिकिया, चाउमीन, मंचुरियन, फालुदा,तरह-तरह के सेंडविच और पिज्जा तक मिलने लगे हैं पर खाने के ओरिजनल टेस्ट के मुरीदों को तो यहां की पुरानी दुकानों का जायका ही लुभाता है। 

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नमकीन ही नहीं मीठे के शौकीनों के लिए भी है यहां बहुत कुछ
जी हां, और इसमें शिकंजी का नाम सबसे पहले आता है। यह शिकंजी नीबू-पानी वाली नहीं बल्कि दूध, चक्का, सूखे मेवे और केसर की रंगत लिए बनने वाली होती है जिसे अगर एक गिलास भी पी लिया जाए तो समझो कि आधी भूख खत्म। करीब 80 साल से स्वाद के शौकिनों को अपनी ओर खींचती यह शिकंजी नागोरी की शिकंजी के नाम से प्रसिद्ध है जिसे अब विनय नागोरी देश-विदेश तक प्रसिद्ध कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में जहां छोटी और कुरमुरी जलेबियां मिलती हैं वहीं यहां की जलेबी इसके बिल्कुल विपरित है। इसकी तुलना नसीराबाद के कचोरे से की जा सकती है। इसलिए इस जलेबी को जलेबा भी कहा जाता है। बाजार के एक कोने पर जहां जलेबा और शिकंजी का डेरा डला रहता है वहीं दूसरे हिस्से में मावाबाटी, गुलाबजामुन, मालपुए, रबड़ी और ठंड के मौसम में मूंग व गाजर का हलवा शान के साथ अपनी महक फैलाता है। 

 

चाट गली का अनोखा अंदाज 
रात करीब 9 बजे से सराफे में शुरू हुआ खान-पान का दौर रात 2-3 बजे तक जारी रहता है। पहले तो यहां स्वाद के दीवाने सुबह के 4-5 बजे तक भी डटे रहते थे, लेकिन अब प्रशासनिक व्यवस्थाओं के चलते यह समय कम कर दिया गया है। सराफा की तरह ही यह भी एक गली है जिसकी पहचान ही अब चाट के नाम से हो गई है। यह गली है एमजी रोड स्थित चाट गली जिसका वास्तविक नाम सिख मोहल्ला है, लेकिन इस गली को यहां मिलने वाले हॉट डॉग, छोले टिकिया, दही पुरी और पानी पुरी के कारण चाट गली कहा जाने लगा है। यहां छोले टिकिया और हॉट डॉग में छोले, चटनी और इंदौर में बनने वाले खास तरह के मसाले के साथ इंदौरी सेंव को भी शामिल किया जाता है। इस बाजार में भी बैठकर खाने की व्यवस्था नहीं होने के बावजूद हर उम्र के लोग यहां जायके की दावत उड़ाते नजर आ ही जाते हैं। मजे की बात तो यह है कि यदि किसी के मुंह में छाले हो रहे हों तो यहां पानी पूरी के साथ का स्पेशल पानी पीने की सलाह भी उसे दे दी जाती है। इसके पीछे यही लॉजिक चलता है कि पानी इतना तीखा होता है कि छाले भी तौबा कर लेते हैं। भई वाह लॉजिक काम करे या न करे पर खाने-खिलाने की ये जुगत है बहुत मजेदार। 

यहां बैंजो बजाया नहीं खाया जाता है 
पूरी दुनिया में बैंजो बजाया जाता है पर इंदौर में खाया जाता है। जी हां यहां की 56 दुकान में मिलने वाली एक डिश का नाम है बैंजो। अंडे से बनी यह डिश आमलेट और बन का कॉम्बीनेशन है जिसे खास तरह की चटनी और बनाने के अनोखे अंदाज के कारण पसंद किया जाता है। नए इंदौर का यह बाजार पुराने इंदौर की तंग गलियों की तरह नहीं बल्कि चौड़ी सड़क पर सजता है। 

आलू और नारियल के पेटीस 
इसी तरह यहां मिलने वाली एक और डिश का नाम है पेटीस। यूं तो बिना तले समोसे की तरह चोकोर आकार के बनने वाले व्यंजन को पूरी दुनिया में पेटी कहा जाता है पर यह पेटीस आलू और सूखे नारियल का बनता है। यह पेटीस व्रत में भी खाया जा सकता है जिसे कई सालों से विजय ठक्कर अपने ग्राहकों को खिलाते आ रहे हैं। इसका स्वाद चटनी से और भी बढ़ जाता है। 

बाल्टी बनी कचौरी की पहचान 
इस शहर के जायके में गुजरात की मिठास भी है तो विदर्भ का तीखापन भी शामिल है। मुंबई की तरह अब यहां वड़ा पाव बेशक मिलने लगा है, लेकिन आज भी शहर के पोहे-जलेबी का जिक्र मुंबई वालों को भी अपनी ओर खींच ही लेता है। इसी तरह नेपाल और तिब्बत का लोकप्रिय व्यंजन मोमोज भी अब इंदौरियों के स्वाद के अनुरूप खुद को ढालते हुए पकने लगा है। यहां की दुकानें लखनऊ के हजरतगंज क्षेत्र में लगने वाली खाने की दुकानों से कम नहीं। वहां जहां एक ही जगह कई तरह के व्यंजन मिलते हैं पर यहां हर थोड़ी-थोड़ी दूर पर नया जायका आपका स्वागत करता है। यहां आलू की कचौरी के साथ दी जाने वाली तीखी चटनी के प्रति ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए लाल बाल्टी टांगी जाती है और यह कचौरी लाल बाल्टी की कचौरी के नाम से ही फेमस हो जाती है। इसी तरह उपवास में भी स्वाद के शौकीनों का ध्यान रखती साबुदाने की खिचड़ी शहर में जगह-जगह मिल जाती है। तारीफ की बात यह है कि कहीं भी खाएं स्वाद चोखा ही मिलेगा। इसी तरह गुजरात का कढ़ी-फाफड़ा, गोटे और खमण भी यहां है तो हैदराबादी बिरयानी और मूंग के बड़े भी शहर की हवा में अपने जायके की गंध शामिल कर ही देते हैं।

इंदौर से हर्षल सिंह राठौड़


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