Move to Jagran APP

कुदरत का अनमोल खजाना छिपा है आंध्र प्रदेश की अरकू वैली में

आंध्र प्रदेश स्थित अरकू वैली जो किसी छिपे हुए खजाने से कम नहीं। अगर आप कुदरती सुंदरता के कायल हैं और रोमांच भी भाता है तो अरकू वैली आपके इंतजार में है। चलते हैं इसके शानदार सफर पर।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Fri, 22 Feb 2019 01:18 PM (IST)Updated: Sun, 24 Feb 2019 08:00 AM (IST)
कुदरत का अनमोल खजाना छिपा है आंध्र प्रदेश की अरकू वैली में
कुदरत का अनमोल खजाना छिपा है आंध्र प्रदेश की अरकू वैली में

गलिकोंडा हिल्स में समुद्र तल से 3000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है यह खजाना यानी अरकू वैली। इस जगह को खूबसूरत बनाने में इस्टर्न घाट का बड़ा रोल है। अरकू वैली को सुंकारमेट्टा रिजर्व फॉरेस्ट का कुछ भाग भी छूता है, इससे इस जगह की सुंदरता और बढ़ जाती है। कह सकते हैं कि इस वैली की सुंदरता इसकी शुद्धता में है यानी यह जगह अभी बहुत व्यावसायिक नहीं हुई है। यहां बड़े-बड़े होटल नहीं हैं। आप यहां आकर तभी आनंद उठा पाएंगे, जब प्रकृति के साथ खुद को लय कर लें। जाहिर है, जब इतनी हसीन वादी सामने हो तो कोई होटल के बंद कमरे में क्यों रहना चाहेगा। यकीन मानिए, अरकू वैली का सबसे अधिक आनंद यहां खुले आकाश तले कैंप लगाकर तारों की छांव में रात गुजारने में है। यह वैली किसी कटोरे के समान है, जिसकी हिफाजत चारों ओर फैली गलिकोंडा हिल्स करती हैं। दरअसल, अरकू वैली ईको टूरिज्म के लिए देश और दुनिया में जानी जाती है। यहां हॉट एयर बैलून राइड पूरी तरह से इको फ्रेंडली एक्टिविटी है। कैंप लगाकर सैलानियों के ठहरने के बंदोबस्त से लेकर जंगल में ट्रैकिंग करने तक सभी कुछ ईको टूरिज्म का हिस्सा है। स्थानीय जनजातीय समुदाय को साथ लेकर चलना भी ईको टूरिज्म का ही हिस्सा है।

loksabha election banner

दिलफरेब है यह रास्ता

विशाखापट्टनम से अरकू वैली पहुंचने का रास्ता बड़ा दिलफरेब है। जैसे-जैसे आप विशाखापट्टनम की शहरी हलचल को पीछे छोड़ते जाते हैं, वैसे-वैसे प्रकृति अपने मोहक रूप में सामने आने लगती है। नारियल के ऊंचे-ऊंचे पेड़ों के साथ मंजर बदलने लगता है। विशाखापट्टनम से अरकू वैली की दूरी 114 किलोमीटर है। इसे तय करने में 3 घंटे का समय लगता है। विशाखापट्टनम से निकलकर लगभग एक घंटे बाद ही पहाड़ शुरू होने लगते हैं। पूर्वी घाट पर गाड़ी की रफ्तार धीमी हो जाती है। आप कार के शीशे नीचे कर इस जंगल की भीनी-भीनी महक का आनंद लें और इस सुकून को आंखों के रास्ते दिल में उतार लें। इस तरह, जंगल के साथ पहाड़ी के घुमावदार रास्तों को तय करते हुए आप कब अरकू वैली पहुंच जाएंगे, आपको पता ही नहीं लगेगा। और हां, यही कोई करीब दौ सौ पहाड़ी मोड़ पड़ते हैं इन रास्तों पर। जानकर अचरज हुआ न, पर यही तो है इस जगह की सुंदरता। जब आप अरकू वैली में प्रवेश करेंगे तो ऐसा अनुभव होगा जैसे जाने कितने ऊंचे पहाड़ लांघ कर आए हों। इन रास्तों पर यहां के आदिवासी लोग विश्वप्रसिद्ध बैम्बू चिकन बेच रहे होते हैं, इसे जरूर ट्राई कीजिएगा।

रेल से सुंदरता का नजारा

अगर आपके पास थोड़ा वक्त है, तो आप इस सफर को रेलयात्रा के जरिए और शानदार बना सकते हैं। विशाखापट्टनम-अरकू वैली एसी टूरिस्ट पैसेंजर ट्रेन खास तौर पर अराकू वैली के दर्शन करने वालों के लिए भारतीय रेल का तोहफा है। इस ट्रेन को खासतौर पर अराकू वैली की खूबसूरती दिखाने के लए बनवाया गया है। इसकी विंडो की साइज 2200 और 1250 एमएम है। इससे वैली का नजारा बड़ा शानदार नजर आता है। खास बात यह है कि इस कोच के छत पर भी पारदर्शी शीशे लगे हैं, ताकि आप सुंदर नीला आकाश भी देख सकें। आप मात्र 650 रुपये में इस लग्जरी रेलयात्रा का आनंद उठा सकते हैं। इस कोच को ग्लासरूफ कोच भी कहते हैं। इस कोच के आखिर में एक सेक्शन है, जिसे 'व्यू पॉइंट' भी कह सकते हैं। आप अपनी सीट पर बैठे-बैठे जब थक जाएं तो वहां जाकर खड़े-खड़े जंगल की खूबसूरती निहार सकते हैं। यह ट्रेन हर दिन विशाखापट्टनम से सुबह 7 बजे चल कर 11 बजे अराकू वैली पहुंचती है।

कहीं और नहीं ऐसी कॉफी

अरकू वैली पहुंचने से पहले कई स्थानों पर आपको कॉफी प्लांटेशन देखने को मिलेगा। आपको वहां रुकना चाहिए। थोड़ा ठहरकर आसपास नजर दौड़ाना चाहिए। आप देखेंगे कि छोटी-छोटी टेपरियों पर स्थानीय लोग अरकू वैली की कॉफी बेच रहे हैं। इस कॉफी की महक आपको वहीं रोक लेगी। आप भी उन्हें होंठों से लगाएं और फिर आगे बढ़ें। वैसे, अराकू वैली में एक और चीज दर्शनीय है। यह है कॉफी प्लांटेशन। इन जंगलों में कॉफी की खेती की संभावना को सबसे पहले साल 1956 में पहचाना था आंध्र प्रदेश वन विभाग ने। यह जानना रोचक है कि कॉफी के मामले में भले ही हम इथोपिया और यमन के बाद आते हैं, लेकिन टेस्ट के मामले में अरकू वैली की कॉफी इन सब से आगे है। यहां ईस्टर्न घाट के ढलानों पर शुद्ध प्राकृतिक रूप में उगने वाली कॉफी ऑर्गेनिक है। इसकी देखभाल आदिवासी लोग अपने बच्चों की तरह करते हैं। कॉफी प्लांटेशन से जुड़ा हर काम ये अपने हाथों से करते हैं।

कॉफी अराकू वैली कैसे पहुंची?

इसके पीछे एक कहानी है। जयपुर के महाराजा ने अपने ओडिशा प्रवास के दौरान साल 1890 में कॉफी को अरकू वैली से मिलवाया। तभी से यहां के आदिवासी लोगों ने घूम कृषि के साथ कॉफी प्लांटेशन शुरू किया। आगे चल कर सन् 1970 में व्यावसायिक रूप में कॉफी कल्टिवेशन इंटीग्रेटेड ट्राइबल डेवलपमेंट एजेंसी, कॉफी बोर्ड और फॉरेस्ट डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड द्वारा शुरू किया गया।

छह दशक पुराना कॉफी म्यूजियम

इस म्यूजियम में कॉफी के इतिहास से लेकर अच्छी कॉफी के मापदंडों को भी कई माध्यमों से दर्शाया गया है। यहां चार्ट, फोटोग्राफ्स, मॉडल और गुजरे जमाने में प्रयोग में लाई जाने वाली कॉफी बनाने के बर्तनों का दुर्लभ संग्रह है। यहां एक कॉफी शॉप भी है, जहां आप गरमागरम कॉफी की चुस्कियां ले सकते हैं। एक अन्य शॉप में कॉफी से निर्मित कन्फेक्शनरी आइटम भी मिलते हैं। इस संग्रहालय को 6 दशक से भी ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन इस जगह की प्रासंगिकता आज भी बरकरार है।

 

स्ट्रॉबेरी की खेती

चितपाले और अनंतागिरि क्षेत्र के किसानों ने एक और कारनामा कर डाला है। क्योंकि यहां का मौसम स्ट्रॉबेरी फार्मिंग के लिए बहुत मुफीद है, अत: अब यहां के किसान स्ट्रॉबेरी फार्मिंग भी करने लगे हैं। यहां आने पर किसी भी स्ट्रॉबरी फॉर्म पर घूम सकते हैं और वहां अपने हाथों से पकी लाल स्ट्रॉबेरी तोड़ सकते हैं।

हजारों साल पुरानी बोरा केव्स

अनंतगिरि की पहाड़ियों में एक अद्भुत गुफा है, जिसका नाम बोरा केव है। इन गुफाओं में नमक और अन्य लवणों के मिश्रण से बड़ी ही रोचक संरचनाएं निर्मित की गई हैं। सन् 1807 में एक अंग्रेज भूवैज्ञानिक विलियम किंग ने इस जगह को ढूंढ निकाला था। ये गुफाएं अनुमान के आधार पर तीस हजार से पचास हजार साल पुरानी मानी जाती हैं।

कातीकी वाटरफॉल

कातीकी बोरा केव के नज़दीक एक सुंदर वाटरफॉल है। यह वॉटरफॉल गोस्तानी नदी से निकलता है। अगर आप ट्रेकिंग की दुनिया में नए-नए दाखिल हो रहे हैं तो यहां से शुरू करें। इस वाटरफॉल तक पहुंचने के लिए आपको थोड़ा-सा ट्रेक करना पड़ेगा। रास्ते में आपके खाने-पीने के लिए ट्राइबल खाना मौजूद है, जिसमें नारियल पानी से लेकर अंगारों पर सिकने वाला लजीज बारबेक्यू चिकन शामिल है।

गलिकोंडा व्यू प्वॉइंट

गलिकोंडा व्यू प्वॉइंट विशाखापट्टनम की सबसे ऊंची चोटी है। यहां से वैली का नजारा बहुत खूबसूरत नजर आता है। यह ईस्टर्न घाट की दूसरी सबसे ऊंची जगह है, जिसकी ऊंचाई समुद्र तल से 4320 फीट है। सैलानियों की सुविधा के लिए सड़क के किनारे एक ऊंचा प्लेटफॉर्म बनाकर इस व्यू प्वॉइंट को खास बनाया गया है।

अराकू वैली के आसपास का आकर्षण

ट्राइबल कॉटेज

आप अरकू वैली के जनजातीय जीवन को महसूस करना चाहते हैं तो यहां ट्राइबल कॉटेज में ठहरें। यह कॉटेज देखने में गुजरात के कच्छ में बने गोलघर (जिन्हें 'भूंगा' कहते हैं) जैसे लगते हैं। यहां रह कर आपको अराकू वैली के आदिवासी जीवन की एक झलक मिलेगी। ट्राइबल कॉटेज अराकू वैली रेलवे स्टेशन से मात्र 3 किलोमीटर दूर पड़ता है।

छपराई वाटरफॉल

इस झरने की दूरी अरकू वैली रेलवे स्टेशन से मात्र 15 किलोमीटर है। जो भी अरकू वैली जाता है, इस वाटरफॉल पर जरूर जाता है। यहां पानी स्लाइडिंग पूल के रूप में दिखाई देता है। लोग यहां स्वीमिंग करना पसंद करते हैं। यह स्थान एक टूरिस्ट स्पॉट के तौर पर स्थानीय लोगों में बहुत लोकप्रिय है।

लंबासिंगी

लंबासिंगी ईस्टर्न घाट में बसा एक ऐसा छोटा-सा डेस्टिनेशन है, जहां स्नो फॉल भी देखने को मिलता है। यह दक्षिण भारत का एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां बर्फ पड़ती है। हरे-भरे जंगलों और पहाड़ों के बीच बसा लंबासिंगी विशाखापट्टनम से 101 किलोमीटर और अराकू वैली से 90 किलोमीटर दूर बसा है। यह जगह समुद्र तल से एक हजार मीटर ऊंचाई पर स्थित है। यहां की जलवायु स्ट्रॉबरी की खेती के अनुकूल है। अगर आप इस जगह को एंज्वॉय करना चाहते हैं तो यहां पर स्थानीय गांववालों के घर में रुककर प्रकृति का आनंद उठा सकते हैं।

 

कोतापल्ली वाटरफॉल

लंबासिंगी से मात्र 32 किलोमीटर की दूरी पर एक नयनाभिराम झरना है, जिसका नाम कोतापल्ली वाटरफॉल है। इस वाटरफॉल को जंगल में घूमते हुए किसी लड़के ने खोज निकाला था। इस जगह को आज से पांच साल पहले कोई जानता तक नहीं था। लंबासिंगी के आसपास ऐसी कई जगहें हैं, जो कुदरत के छिपे हुए नमूने हैं। यह जगह टूरिस्ट डेस्टिनेशन वाली भीड़भाड़ से बिल्कुल अनछुई है, पर इस जगह तक पहुंचना आसान है। सड़कें अच्छी हैं और पार्किंग के लिए भी जगह मौजूद है। लोग यहां वीकेंड पर पिकनिक मनाने आते हैं।

कॉफी, मसाले और शहद की खरीदारी

यहां के आदिवासी समाज का यहां के जंगलों से बड़ा अटूट रिश्ता है। यह कई रूपों में सामने आता है। आप यहां से कॉफी, मसाले और शहद ले जाना न भूलें। अरकू वैली में आदिवासी लोग जगह-जगह शहद बेचते हुए मिल जाते हैं।

कैसे और कब पहुंचें?

अरकू के लिए नजदीकी एयरपोर्ट विशाखापट्टनम है, जो सभी बड़े शहरों से जुड़ा है। विशाखापट्टनम से रेल और सड़क मार्ग से अरकू वैली पहुंचा जा सकता है। विशाखापट्टनम से अराकू वैली की दूरी 114 किलोमीटर है। यहां वर्ष भर आ सकते हैं पर सर्दियों का मौसम यहां आने के लिहाज से आनंददायक होता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.