Navratri 2020: चैत्र हो या शारदीय, मैहर में देखने को मिलती है नवरात्रि की अलग ही रौनक
मध्य प्रदेश के पूर्वोत्तर भाग में सतना जिले में मैहर माता शारदा का मंदिर दुनियाभर में है प्रसिद्ध। जहां चैत्र और शारदीय नवरात्रि के दौरान अलग ही रौनक देखने को मिलती है।
टमस नदी के किनारे बसे आज के औद्योगिक शहर सतना आने का एक बड़ा उद्देश्य यहां से करीब 44 किमी की दूरी पर स्थित मैहर माता शारदा के दर्शन है। इन दिनों मैहर देवी यानि शारदा मंदिर में चैत्र नवरात्र की तैयारियां जोर-शोर से चल रही है। जानेंगे इस जगह से जुड़ी रोचक और जरूरी बातें।
नवरात्रि की रौनक
मैहर स्थित मां शारदा मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह मानी जाती है कि जब से देवी त्रिकूट पर्वत पर विराजमान हैं, तब से यहां अखंड ज्योति जल रही है। इस ज्योति के दर्शनार्थ यहां भक्तों की भीड़ जमा होती है। इसी पर्वत की चोटी पर माता के साथ ही काल भैरव, हनुमान, देवी काली, दुर्गा, गौरीशंकर, शेषनाग, फूलमति माता, ब्रम्हदेव और जालपा देवी की भी पूजा की जाती है। यह पूरा इलाका आध्यात्मिक शांति की चाह रखने वालों के लिए उपयुक्त है। इस जगह पर आना आत्मिक सुख दे सकता है।
मंदिर की ऐतिहासिकता
माना जाता है कि माता शारदा की मूर्ति की स्थापना विक्रम संवत 559 में की गई थी। मूर्ति पर देवनागरी लिपि में शिलालेख भी अंकित है। इसमें बताया गया है सरस्वती के पुत्र दामोदर ही कलयुग के व्यास मुनि कहे जाएंगे। दुनिया के जाने-माने इतिहासकार ए कनिंघम ने इस मंदिर पर विस्तार से शोध किया है। यहां प्राचीनकाल से ही बलि देने की प्रथा चलीआ रही थी, लेकिन 1922 में सतना के तत्कालीन राजा ब्रजनाथ जूदेव ने पशुबलि पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया। चैत्र नवरात्र में यहां पूरे 9 दिन औसतन करीब 20 लाख और शारदीय नवरात्र के दिनों में तकरीबन 25 लाख श्रद्धालु दर्शन-पूजन करते हैं।आल्हा-ऊदल भी थे माता के भक्त
स्थानीय किंवदंती के अनुसार, मैहर देवी देश का इकलौता शारदा मंदिर है। कहा जाता है कि बुंदलेखंड के वीर योद्धा आल्हा को यहीं से अमरत्व का वरदान मिला था। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध करने वाले आल्हा और ऊदल भी शारदा माता के भक्त थे। इन दोनों ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर को खोजा था। इसके बाद आल्हा ने इस मंदिर में 12 साल तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था और माता ने उन्हें आशीर्वाद दिया था। यहां मंदिर के पास आल्हा-ऊदल तालाब भी है।