Move to Jagran APP

आइए आज चलें, समुद्र तट पर स्थित ऐतिहासिक प्रभास तीर्थ की और

सावन में ज्योतिर्लिगों का खास महत्‍व है, तो आज हम चलते हैं धार्मिक यात्रा पर । सोमनाथ का बारह ज्योतिर्लिगों में सबसे प्रमुख स्थान है। भारत के पश्चिम में सौराष्ट्र (गुजरात) के समुद्र तट पर ऐतिहासिक प्रभास तीर्थ स्थित है। यहीं प्रसिद्ध व दर्शनीय सोमनाथ मंदिर है। इस मंदिर की

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 24 Aug 2015 02:56 PM (IST)Updated: Mon, 24 Aug 2015 03:41 PM (IST)
आइए आज चलें,  समुद्र तट पर स्थित ऐतिहासिक प्रभास तीर्थ की और
आइए आज चलें, समुद्र तट पर स्थित ऐतिहासिक प्रभास तीर्थ की और

सावन में ज्योतिर्लिगों का खास महत्‍व है, तो आज हम चलते हैं धार्मिक यात्रा पर । सोमनाथ का बारह ज्योतिर्लिगों में सबसे प्रमुख स्थान है। भारत के पश्चिम में सौराष्ट्र (गुजरात) के समुद्र तट पर ऐतिहासिक प्रभास तीर्थ स्थित है। यहीं प्रसिद्ध व दर्शनीय सोमनाथ मंदिर है। इस मंदिर की छटा देखते ही बनती है। यहां सुबह और शाम अलग-अलग रूपों में सोमनाथ के भाव, भक्ति और श्रद्धापूर्वक दर्शन होते हैं।

यहां समुद्र अपनी गूंज और ऊंची-ऊंची लहरों के साथ सदैव शिव के चरण वंदन करता प्रतीत होता है। समुद्र तट पर लोग फोटो खिंचवाने के अलावा ऊंट, घोड़ा आदि की सवारी करते और लहरों के बीच स्नान का लुत्फ उठाते हैं। यहां मोतियों की तरह-तरह की मालाएं, अनेक प्रकार के रत्नों की अंगूठी, सभी तरह के नग के अलावा नारियल पानी की सर्वाधिक बिक्री होती है। यहां सदैव मेले का सा माहौल रहता है।

loksabha election banner

विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल

सोमनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है। मंदिर प्रांगण में रात साढ़े सात से साढ़े आठ बजे तक एक घंटे का साउंड एंड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मंदिर इतिहास का बड़ा ही सुंदर सचित्र वर्णन किया जाता है।

लोककथाओं के अनुसार यहीं श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्व बढ़ गया। ऐसी मान्यता है कि श्रीकृष्ण भालुका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे। तब ही शिकारी ने उनके पैर के तलुए में पद्मचिन्ह को हिरण की आंख जानकर धोखे में तीर मारा था। तब ही कृष्ण ने देह त्यागकर यहीं से वैकुंठ गमन किया। इस स्थान पर बड़ा ही सुन्दर कृष्ण मंदिर बना हुआ है।

ग्रीष्म ऋतु में शीतलता

समुद्र तट पर होने के कारण ग्रीष्म ऋतु में यहां शीतलता रहती है। तीन माह पहले ही यहां रेलवे स्टेशन बनकर तैयार हुआ है। अभी यहां मध्य प्रदेश से चलने वाली जबलपुर वेरावल एक्सप्रेस ही सीधी सोमनाथ तक शुरू हुई है। आगामी दिनों में मुंबई और पूना से भी यहां के लिए सीधी ट्रेन सुविधा हो जाने की संभावना है। विश्व प्रसिद्ध होने के बाद भी यह क्षेत्र अभी तक अविकसित है। मंदिर परिसर में तो भव्य निर्माण हुआ है । बिजली, पानी और सफाई व्यवस्था बदहाल है। बावजूद इसके यहां देश-विदेश के लाखों लोगों का तांता लगा रहता है। इसकी दुर्दशा और बदहाली पर सभी दुखी है। चूंकि अब सोमनाथ में ही सीधे रेल सुविधा शुरू हो गई है, तो लोगों को इस क्षेत्र के विकास की आस भी जागी है। 1948 में प्रभासतीर्थ प्रभास पाटण के नाम से जाना जाता था। इसी नाम से इसकी तहसील और नगर पालिका थी। यह जूनागढ़ रियासत का मुख्य नगर था। लेकिन 1948 के बाद इसकी तहसील, नगर पालिका और तहसील कचहरी का वेरावल में विलय हो गया।

मंदिर का इतिहास

मंदिर का बार-बार खंडन और जीर्णोद्धार होता रहा पर शिवलिंग यथावत रहा। लेकिन सन 1026 में महमूद गजनी ने जो शिवलिंग खंडित किया, वह यही आदि शिवलिंग था। इसके बाद प्रतिष्ठित किए गए शिवलिंग को 1300 में अलाउद्दीन की सेना ने खंडित किया। इसके बाद कई बार मंदिर और शिवलिंग खंडित किया गया। बताया जाता है आगरा के किले में रखे देवद्वार सोमनाथ मंदिर के हैं। महमूद गजनी सन 1026 में लूटपाट के दौरान इन द्वारों को अपने साथ ले गया था। सोमनाथ मंदिर के मूल मंदिर स्थल पर मंदिर ट्रस्ट द्वारा निर्मित नवीन मंदिर स्थापित है। राजा कुमार पाल द्वारा इसी स्थान पर अंतिम मंदिर बनवाया गया था।

सौराष्ट्र के मुख्यमंत्री उच्छंगराय नवल शंकर ढेबर ने 19 अप्रैल 1940 को यहां उत्खनन कराया था। इसके बाद भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने उत्खनन द्वारा प्राप्त ब्रह्माशिला पर शिव का ज्योतिर्लिग स्थापित किया है। सौराष्ट्र के पूर्व राजा दिग्विजय सिंह ने 8 मई 1950 को मंदिर की आधार शिला रखी तथा 11 मई 1951 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर में ज्योतिर्लिग स्थापित किया। नवीन सोमनाथ मंदिर 1962 में पूर्ण निर्मित हो गया। 1970 में जामनगर की राजमाता ने अपने स्वर्गीय पति की स्मृति में उनके नाम से दिग्विजय द्वार बनवाया। इस द्वार के पास राजमार्ग है और पूर्व गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा है। सोमनाथ मंदिर निर्माण में पटेल का बड़ा योगदान रहा।

मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे एक स्तंभ है। उसके ऊपर एक तीर रखकर संकेत किया गया है कि सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच में पृथ्वी का कोई भूभाग नहीं है। मंदिर के पृष्ठ भाग में स्थित प्राचीन मंदिर के विषय में मान्यता है कि यह पार्वती जी का मंदिर है। सोमनाथजी के मंदिर की व्यवस्था और संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट के अधीन है। सरकार ने ट्रस्ट को जमीन, बाग-बगीचे देकर आय का प्रबंध किया है। यह तीर्थ पितृगणों के श्राद्ध, नारायण बलि आदि कर्मो के लिए भी प्रसिद्ध है। चैत्र, भाद्र, कार्तिक माह में यहां श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है। इन तीन महीनों में यहां श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ लगती है। इसके अलावा यहां तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है। इस त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व है।

तीर्थ स्थान और मंदिर

मंदिर नं.1 के प्रांगण में हनुमानजी का मंदिर, पर्दी विनायक, नवदुर्गा खोडीयार, महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा स्थापित सोमनाथ ज्योतिर्लिग, अहिल्येश्वर, अन्नपूर्णा, गणपति और काशी विश्वनाथ के मंदिर हैं। अघोरेश्वर मंदिर नं. 6 के समीप भैरवेश्र्वर मंदिर, महाकाली मंदिर, दुखहरण जी की जल समाधि स्थित है। पंचमुखी महादेव मंदिर कुमार वाड़ा में, विलेश्वर मंदिर नं. 12 के नजदीक और नं. 15 के समीप राममंदिर स्थित है। नागरों के इष्टदेव हाटकेश्र्वर मंदिर, देवी हिंगलाज का मंदिर, कालिका मंदिर, बालाजी मंदिर, नरसिंह मंदिर, नागनाथ मंदिर समेत कुल 42 मंदिर नगर के लगभग दस किलो मीटर क्षेत्र में स्थापित हैं।

बाहरी क्षेत्र के प्रमुख मंदिर

वेरावल प्रभास क्षेत्र के मध्य में समुद्र के किनारे शशिभूषण मंदिर, भीड़भंजन गणपति, बाणेश्वर, चंद्रेश्वर-रत्नेश्वर, कपिलेश्वर, रोटलेश्वर, भालुका तीर्थ है। भालकेश्वर, प्रागटेश्वर, पद्म कुंड, पांडव कूप, द्वारिकानाथ मंदिर, बालाजी मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, रूदे्रश्वर मंदिर, सूर्य मंदिर, हिंगलाज गुफा, गीता मंदिर, बल्लभाचार्य महाप्रभु की 65वीं बैठक के अलावा कई अन्य प्रमुख मंदिर है। प्रभास खंड में विवरण है कि सोमनाथ मंदिर के समयकाल में अन्य देव मंदिर भी थे। इनमें शिवजी के 135, विष्णु भगवान के 5, देवी के 25, सूर्यदेव के 16, गणेशजी के 5, नाग मंदिर 1, क्षेत्रपाल मंदिर 1, कुंड 19 और नदियां 9 बताई जाती हैं। एक शिलालेख में विवरण है कि महमूद के हमले के बाद इक्कीस मंदिरों का निर्माण किया गया। संभवत: इसके पश्चात भी अनेक मंदिर बने होंगे।

प्रमुख तीर्थ द्वारिका

सोमनाथ से करीब दो सौ किलोमीटर दूरी पर प्रमुख तीर्थ श्रीकृष्ण की द्वारिका है। यहां भी प्रतिदिन द्वारिकाधीश के दर्शन के लिए देश-विदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते है। यहां गोमती नदी है। इसके स्नान का विशेष महत्व बताया गया है। इस नदी का जल सूर्योदय पर बढ़ता जाता है और सूर्यास्त पर घटता जाता है, जो सुबह सूरज निकलने से पहले मात्र एक डेढ़ फीट ही रह जाता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.