मिनी इसराइल हिमाचल प्रदेश का कसोल, खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है
भारत अपनी विविधता में प्राकृतिक सौंदर्य को समेटे हुए है, इसका हर राज्य अपनी एक अलग खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है। पुरानी विरासतों और नए आर्किटेक्ट का संगम यहां के जैसा और कहीं नहीं मिल सकता। भौगोलिक सुंदरता की बात करें तो यहां एक ओर रेगिस्तान और दूसरी ओर बर्फ
भारत अपनी विविधता में प्राकृतिक सौंदर्य को समेटे हुए है, इसका हर राज्य अपनी एक अलग खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है। पुरानी विरासतों और नए आर्किटेक्ट का संगम यहां के जैसा और कहीं नहीं मिल सकता। भौगोलिक सुंदरता की बात करें तो यहां एक ओर रेगिस्तान और दूसरी ओर बर्फ ही बर्फ नजर आती है। कहीं मंदिरों की बहुलता है तो कहीं पैगोडा की अद्भुत बनावट।
हिमाचल में मनाली के पास कसोल क़स्बे में घुसते ही आपको तंबुओं की क़तारें और उनके सामने खड़ी मोटरसाइकिलें दिखती हैं। यहां के रेस्तरां में सारे मैन्यू हिब्रू भाषा में है। नमस्कार की जगह आपको 'शलोम' सुनाई पड़ेगा और यूं ही घूमते फिरते कई इसराइलियों से आपका सामना होगा। इसीलिए इस इलाक़े को मिनी इसराइल कहते हैं। यहां शाम की बयार में लहराते दिखते हैं तिब्बती या स्टार ऑफ़ डेविड वाले इसराइली झंडे।
एक खबद हाउस यानी यहूदियों का सांस्कृतिक स्थल भी दिखता है। इस ख़ूबसूरत इमारत में लकड़ी के फ़र्श और बेंच हैं। एक युवा रब्बी यहूदी पुजारी हैं। इन्हें ख़ासतौर पर इसराइल से भेजा गया है ताकि वे यहूदियों को पूजा करने में मदद करें और उनकी छुटिट्यों का ध्यान रखें। पूरे भारत में 23 खबद हाउस हैं। यहां बना खबद हाउस इस छोटे पहाड़ी गांव कसोल को सांस्कृतिक दिशा देता है।
इसराइलियों ने यहां क़रीब दो दशक पहले आना शुरू किया था। शुरुआत में पुराना मनाली उनका पसंदीदा ठिकाना हुआ करता था। अपने देश में अनिवार्य सैन्य प्रशिक्षण और सेवा के बाद वे यहां की पहाड़ियों में मौज मस्ती करने आया करते थे।
एक पर्यटक के अनुसार उस समय यह इलाक़ा अनछुआ सा और पूरी तरह प्राकृतिक रूप में था भारतीय पर्यटकों की बाढ़ आने के बाद जब छोटी कुटिया और घर कांच और चमकीले वॉलपेपरों वाले भद्दे कंक्रीट होटलों में बदलने लगे तो इसराइली सैलानी पार्वती नदी की घाटी में बसे कसोल की ओर बढ़ गए।
इस क्षेत्र के आस-पास के गांवों में इसराइली झंडे नज़र आते हैं और यहां बजने वाले संगीत में तेल अवीव की महक साफ़ महसूस की जा सकती है। लोग बताते हैं कि शुरुआत में इसराइली कसोल आए तो उन्होंने जगह किराए पर लीं। उन्होंने अपने गेस्ट हाउस, कैफ़े चलाए और ख़ुद में मस्त रहे। उन्होंने स्थानीय लोगों के साथ बातचीत की और लोगों ने उन्हें अपनी जगहें दे दीं क्योंकि उन्हें यक़ीन था कि इससे वहां व्यापार बढ़ेगा।
गांव के एक ट्रैवल ऑपरेटर राणा कहते हैं, "इसराइली ज़्यादा अंग्रेज़ी नहीं समझते। स्थानीय लोगइसराइलियों के लिए बने कैफ़े में नहीं जाते। उनका कहना है कि इसराइलियों का खाना अलग तरह का है। इसके अलावा वे बीफ़ भी खाते हैं। स्थानीय लोग इसराइलियों से होने वाले व्यवसाय से ही खुश हैं।पहले यहां एक भी गाड़ी नहीं थी, लेकिन अब यह छोटा सा गांव समृद्ध दिखता है। अब लोग अपने ख़ुद के कैफ़े, गेस्ट हाउस चलाने लगे हैं, लेकिन यह ख़्याल ज़रूर रखते हैं कि इसराइलियों को नाराज़ न करें।
स्थानीय लोगों के अनुसार, किसी भी समय इस घाटी में कम से कम एक हज़ार इसराइली मिल सकते हैं। रात में यहां बोनफ़ायर का इंतज़ाम होता है। तीन सौ रुपए रोज़ाना किराया के कमरे वाले छोटे होटलों में भी म्यूज़िक सिस्टम बाहर रखा मिल जाता है। यह जगह इतने समय से इसराइलियों का ठिकाना है कि स्थानीय लोगों ने उन्हें अपना लिया है। उन्होंने ख़ुद को इसराइलियों के मुताबिक़ ही ढाल लिया है। हम्मस, पिटा ब्रेड और फ़ालाफ़ेल लोगों के मुख्य भोजन बन गए हैं।
इसराइल से आए हुए रब्बी इस इलाक़े पर अधिकार को लेकर अलग अलग तरह के दावे भी किए जाने लगे हैं।भारतीय पर्यटक इस जगह को अपना मानते हैं।
इसके अलावा गांव में एक तरह की राष्ट्रवादी भावना भी उभरने लगी है। इसराइलियों का कहना है कि उन्होंने जंगल के बीच इस जगह को ढूंढ निकाला था। लिहाज़ा इस पर उनका पहला अधिकार है। यह इलाक़ा उन लोगों को ज़्यादा लुभाता है जो हर तरह की आज़ादी चाहते हैं और ख़ुद को विद्रोही समझते हैं।