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खूंखार जंगली जानवरों को देखना हो तो एक रात गुजारे कतर्नियाघाट के जंगलों में

बहराइच जिले में स्थित कतर्नियाघाट के जंगलों में घूमते हुए टाइगर और लेपर्ड को देखना बहुत ही आम होता है। यहां जानवरों और पक्षियों को कैमरे में कैद करना भी बहुत ही आसान है।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Mon, 25 Feb 2019 11:05 AM (IST)Updated: Tue, 26 Feb 2019 08:00 AM (IST)
खूंखार जंगली जानवरों को देखना हो तो एक रात गुजारे कतर्नियाघाट के जंगलों में
खूंखार जंगली जानवरों को देखना हो तो एक रात गुजारे कतर्नियाघाट के जंगलों में

इसे मेरा जंगलों के प्रति आकर्षण ही कहेंगे कि सर्दियों की छुट्टियां मनाने इस बार मैं अपने परिवार के साथ उत्तर प्रदेश के तराई के इलाकों की तरफ निकल पड़ा। क्रिसमस तो पीलीभीत जिले (उ.प्र.) के रमणीय स्थल 'चूका बीच' पर हाड़ जमा देने वाली ठंड के बीच बॉनफायर करते हुए मनाया। सफर का अगला पड़ाव था बहराइच जिले में कतर्नियाघाट, चूका से तकरीबन 200 किमी.। यहां आप लखीमपुर होकर भी पहुंच सकते हैं या फिर पलिया होकर, दूरी लगभग बराबर ही है। मैंने पलिया होकर जाना बेहतर समझा, क्योंकि इसी मार्ग से पहले भी मैं कतर्नियाघाट जा चुका हूं। सड़क अच्छी है, इसलिए 70-80 किमी. प्रति घंटे के औसत से भी चलें तो 3 घंटे में कतर्नियाघाट आराम से पहुंचा जा सकता है। सफर का आनंद तब और बढ़ जाता है, जब सड़क के दोनों ओर गन्ने और सरसों की फसल देखने को मिलती है। हवा में गुड़ बनने की सौंधी सुगंध घुली हुई थी और दूर तक फैली सरसों के पीले-पीले फूलों की चादर संदेश दे रही थी कि प्रकृति बसंत के स्वागत के लिए तैयार है। ऐसा आकर्षण कि मेरा मन मचल पड़ा और मैं अपनी गाड़ी सड़क किनारे उतार बासंती रंग की उस चादर के बीच खुद की तस्वीर खिंचवाने के लिए गाड़ी से उतर पड़ा। अद्भुत, कोई कितना भी अवसाद में हो, पीड़ा में हो प्रकृति के इस मंजर को देख मुस्कराए बिना नहीं रह सकता। साफ, नीले,गहरे पानी वाली शारदा नहर के किनारे-किनारे लगभग तीस किमी. का सफर मन को और प्रफुल्लित कर देता है।

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जब मन भरने लगा कुलांचे

मैं कतर्नियाघाट के जंगल के सामने पहुंच चुका था। जंगल के दूसरी तरफ शारदा नहर पर विशाल गिरिजापुरी बैराज बना हुआ है। यहां रुककर भी कुछ वक्त गुजारा जा सकता है। यहां से एक रास्ता बिछिया होकर कतर्नियाघाट पहुंचता है, जो लंबा है और सड़क भी जर्जर है। दूसरा, जंगल के अंदर से होकर, जो छोटा है और बेहतर है, लेकिन यह सार्वजनिक मार्ग नहीं है और हमेशा बैरीकेड से बंद रहता है। चौकीदार ऐसे तो खोलता नहीं, इसलिए मैंने रेंज ऑफिसर से बात कर इसी मार्ग से जाने का प्रयास किया। मन में लालच यही था कि जंगल के अंदर हो सकता है टाइगर या लेपर्ड देखने को मिल जाए। और जंगल का रोमांच तो अपनी जगह है ही। रेंजर ने बताया कि जंगल वाले मार्ग पर जंगली हाथियों का मूवमेंट है और उस मार्ग पर जाना मौत को बुलावा देने से कम नहीं है। इसलिए वह कतई इजाजत नहीं दे सकते। यह सुनकर मन का रोमांच और बढ़ गया, जान जाने का भय भी नहीं था, जबकि परिवार साथ था, लेकिन मन मसोसकर रह गया।

 

कतर्नियाघाट और गोल्फर रंधावा

टूटे-फूटे सार्वजनिक मार्ग से ही बिछिया होते हुए कतर्नियाघाट गेस्ट हाउस पहुंचा। शाम के करीब तीन बज रहे थे। गाड़ी से उतरते ही खबर मिली कि भारत के अंतरराष्ट्रीय गोल्फर ज्योति सिंह रंधावा को यहां अवैध शिकार मामले में गिरफ्तार किया गया है। लगभग 30 किमी. दूर कतर्नियाघाट क्षेत्र के ही मोतीपुर रेंज में रंधावा अपने साथी पूर्व आर्मी कैप्टन महेश विजदार के साथ शिकार कर रहे थे। इस प्रकरण से गेस्ट हाउस पर तैनात स्टाफ भी तनाव में था। तस्करों द्वारा जंगली जानवरों के शिकार की घटनाएं तो होती रहती हैं, लेकिन किसी सेलिब्रिटी के बारे में सुनकर मेरी जिज्ञासा बढ़ी। स्टाफ ने बताया कि रंधावा यदाकदा यहां के जंगलों में आते रहते थे और जंगल के स्टाफ व अधिकारियों के साथ उनका विश्वास का रिश्ता बन गया था। खैर, मेरी दिलचस्पी रंधावा की गिरफ्तारी से ज्यादा जंगल भ्रमण और टाइगर व लेपर्ड में थी। सो, मैंने व परिवार के अन्य सदस्यों ने कमरे में चेक-इन किया और चाय-नाश्ता करते हुए आगे की रणनीति पर सोचना शुरू किया। जंगलों में अब तक के भ्रमण का मेरा तजुर्बा यही रहा कि वन विभाग की सफारी पर टाइगर को तलाशने से वह कम ही मिलता है। ठंड के दिन और वह भी जंगल में, अंधेरा जल्दी घिरने लगता है। डिनर करके कमरे के सामने टहल रहा था। तभी वन दरोगा को वॉकी टाकी पर रात की गश्त पर जाने की बात सुनी। मन उछल पड़ा। टाइगर देखने की उत्कट इच्छा वन दरोगा को बताई और सारे जतन कर डाले कि अपनी जिप्सी में मुझे भी एडजस्ट करले। लेकिन विफल रहा। उनका तर्क भी सही था, शाम को ही रंधावा की गिरफ्तारी हुई थी और ऐसे मौके पर वह कोई जोखिम नहीं ले सकते। अपनी शॉल में खुद को समेटते हुए मैं रजाई में घुसकर सो गया।

 

वाइल्ड बोर से सामना

अगली सुबह धुंध में ही मैं सैर पर निकल गया। दूर-दूर तक कोई नहीं दिख रहा था। कोई 150-200 किमी. की जॉगिंग के बाद कुछ दूर पर मुझे तीन जंगली सुअर दिखे। मैं ठिठक गया और शरीर में सिहरन दौड़ गई। जानता था बहुत सख्त जान और बहुत ताकतवर जानवर होता है। थूथन से निकले दांतों से शरीर फाड़ सकता है। इसका शिकार करने में टाइगर को भी काफी वक्त लग जाता है। उनकी नजर भी मुझ पर पड़ गई थी। कुछ सेकंड के इंतजार के बाद उनमें से एक धमकी देने के अंदाज में मेरी तरफ बढ़ा। मैं भी जमीन से पत्थर उठाने के अंदाज में झुका और हाथ उसकी तरफ घुमा दिया। एक जोखिम लिया था और वह काम कर गया। तीनों घनी झाडि़यों में भाग गए। मैं फिर आगे नहीं गया। लौटकर यह घटना जंगल के स्टाफ को बताई। उन लोगों ने बताया कि अगर मैं डर कर पीछे भागता तो बहुत संभव है कि वे मुझ पर हमला करने के लिए दौड़ा लेते।

एमेजॉन के जंगलों का एहसास

कतर्नियाघाट के जंगल नेपाल से आने वाली गेरुआ नदी से सटे हैं। मोटरबोट की राइड के दौरान नदी के बीच बने टापुओं पर मगरमच्छ और घडि़याल धूप सेंकते दिख जाते हैं। इस विशाल नदी में डॉल्फिन भी दिख जाती है। इस नदी में एक नाला भी मिलता है। नाले के दोनों ओर ऊंचे-ऊंचे पेड़ आपको एमेजॉन के जंगलों का एहसास कराते हैं। अपनी पिछली यात्रा में मुझे इसके अंदर तक जाने का मौका मिला था। इस बार मोटरबोट चालक ने यह कहकर जाने से मना कर दिया कि नेपाल की तरफ से हाथियों का आना-जाना ज्यादा है, इसलिए वह खतरा मोल नहीं लेगा। दो हाथी तो नदी किनारे पानी पीते मुझे दिखे भी।

 

रोमांच की रात

मोटरबोट राइड से आकर बैठा ही था तभी लखनऊ से आए सैलानियों से मुलाकात हो गई। पता लगा वे लोग साल में तीन-चार बार आते हैं। उन्होंने ही बताया कि बहराइच-नानपारा को जाने वाली सड़क पर टाइगर नहीं, तो लेपर्ड दिखने की काफी उम्मीद रहती है। उन्होंने कई बार देखा भी है। शाम के 7 बज चुके थे और अंधेरा घना हो चुका था। अधिक समय गंवाए बिना हम अपने फोर व्हील ड्राइव वाहन में बहराइच की तरफ निकल पड़े। जंगल में होते हुए भी यह मार्ग जंगल की हद से बाहर है। दिन में आवाजाही रहती है, लेकिन रात में नहीं के बराबर। सड़क के दोनों तरफ पेड़। गाड़ी की रफ्तार कम ही रखी थी ताकि जंगली जानवरों को देखने की गुंजाइश बनी रहे। वाहन की हेडलाइट में दूर कहीं चीतल या सांभर भी टाइगर लगता था। अचानक कभी खरगोश या जंगली सुअर सड़क पारकर गुजर जाता। 25-30 किमी. के बाद एक पुलिया मिली, जहां से एक रास्ता बायीं तरफ जाता था। गाड़ी की हेडलाइट बंद कर हम इस उम्मीद में नीचे उतर आए कि शायद शांत वातावरण में टाइगर या लेपर्ड टहलता हुआ नजर आ जाए। सिर ऊपर उठाया तो गहरा नीला आसमान और उस पर टंके अनगिनत तारे। मन आह्लादित हो उठा। ऐसा साफ आसमान कभी नहीं देखा, पहाड़ पर भी नहीं। रात गहराती जा रही थी। हाथ को हाथ नहीं सूझने का अनुभव उसी दिन हुआ। तभी दूर से टॉर्च की रोशनी चमकी,कुछ देर बाद दो फॉरेस्ट गॉर्ड पास पहुंचे। उन्होंने ही बताया कि बायीं तरफ जाने वाले रास्ते पर दस किमी. दूर नेपाल सीमा है। गाड़ी पर बैठे और नेपाल सीमा पर पहुंच गए। सशस्त्र सीमा बल के जवानों की टॉर्च लेकर ही सीमा पर चहलकदमी की और वापस चल पड़े, लेकिन टाइगर नहीं मिला।

आशुतोष अग्निहोत्री


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