बनारस में भस्म तो पहाड़ों पर मक्खन से खेलते हैं होली, जानें ऐसी ही अनोखी परंपराओं के बारे में
जितने त्योहार उतने रंग-रूप। जगह बदलते ही भाषा और कपड़े ही नहीं रीति-रिवाज और त्योहारों को मनाने का तरीका भी बदलते जाता है। तो आज हम कहां कैसे मनाते हैं होली इसके बारे में जानेंगे
अगर इस बार की आपकी यात्रा में रंगों की मस्ती हो तो क्या ही कहने। प्राकृतिक सुंदरता जरूर तरोताजा करती है लेकिन पारंपरिक उत्सव संस्कृति को जानने का अवसर देते हैं। तो इस रंगीली होली पर खुशियों के संग आप भी रंग जाएं रंगों के गुबार में, संजो लें स्मृतियां इस त्योहार में और फाग के गीत गुनगुना लें मदमस्त बयार में..जानेंगे अलग-अलग जगहों पर मनाई जाने वाली होली और इसकी खासियत के बारे में।
1. कुमाऊं की खड़ी होली
उत्तराखंड के कुमाऊं की गीत बैठकी में शास्त्रीय संगीत की गोष्ठियां आयोजित की जाती हैं। शाम के समय कुमाऊं के घर-घर में बैठक होली की सुरीली महफिलें जमने लगती हैं। इस रंग में सिर्फ अबीर-गुलाल का टीका ही नहीं होता, बल्कि बैठकी होली और खड़ी होली गायन की शास्त्रीय परंपरा भी शामिल होती है।
2. गोवा का शिमगोत्सव
गोवा में पुर्तगालियों के शासन से प्रभावित है होली की परंपरा। गोवा के निवासी होली को कोंकणी में शिमगो या शिमगोत्सव कहते हैं। होली के दिन पंजिम से जलूस निकाला जाता है जो मंजिल पर जाकर सांस्कृतिक कार्यक्रम में बदल जाता है।
3. जीवनसाथी को ढूंढ़ते हैं युवा
भगोरिया मध्य प्रदेश के मालवा अंचल के आदिवासी इलाकों में होली का उत्सव बेहद धूमधाम से मनाया जाता है। भगोरिया हाट-बाजारों में भील समाज के युवक-युवती बेहद सज-धज कर अपने भावी जीवनसाथी को ढूंढऩे आते हैं। एक-दूसरे को पान खिलाना या गाल पर गुलाबी रंग लगाना हां समझी जाती है। इसके बाद लड़का-लड़की विवाह कर लेते हैं।
4. फाग के गीतों से सजी होली
छत्तीसगढ़ में इस पर्व पर लोक गीतों की परंपरा है। वसंत के आते ही छत्तीसगढ़ की गली-गली में नगाड़े की थाप के साथ राधा-कृष्ण के प्रेम प्रसंग भरे गीत जन-जन के मुंह से बरबस फूटने लगते हैं। फाग के गीत होली के दिन सुबह से देर शाम तक गूंजते हैं। लड़कियां शादी के बाद पहली होली अपने मायके में ही मनाती हैं।
5. पहाड़ों में मक्खन की होली
दयारा बुग्याल में प्रसिद्ध अंढूड़ी उत्सव में मक्खन की होली खेल कर प्रकृति की पूजा की जाती है। इस खास तरह के उत्सव में भाग लेने वाले पर्यटक मखमली बुग्यालों में मक्खन की होली खेलने आते हैं। मक्खन की होली खेलने के कारण अंढूड़ी उत्सव को 'बटर फेस्टिवल' के रूप में भी जाना जाता है।
6. बनारस की भस्म होली
बनारस में गंगा किनारे होली पर खूब अबीर और गुलाल उड़ता है। ढोल नगाड़ों के साथ लोग अपने-अपने घरों से निकल पड़ते हैं। बनारस दुनिया का एकमात्र शहर, है जहां अबीर-गुलाल-रंग के अलावा चिता की भस्म से भी होली खेली जाती है।
7. श्री आनंदपुर साहिब में होला मोहल्ला
सिक्खों के पवित्र धर्मस्थान श्री आनंदपुर साहिब में होली के अगले दिन से लगने वाले मेले को होला मोहल्ला कहते हैं। होला मोहल्ला का उत्सव आनंदपुर साहिब में छह दिन तक चलता है। इस अवसर पर मस्त घोड़ों पर सवार निहंग, हाथ में निशान साहब उठाए तलवारों के करतब दिखा कर साहस, पौरुष और उल्लास का प्रदर्शन करते हैं। पंज प्यारे जुलूस का नेतृत्व करते हुए रंगों की बरसात करते हैं। कहते हैं कि गुरु गोविंद सिंह ने स्वयं इस मेले की शुरुआत की थी।
8. मणिपुर में यशांग
रंगों का त्योहार मणिपुर में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है जिसे स्थानीय रूप से 'याओसांग' नाम दिया गया है और इसे पांच दिनों के लिए मनाया जाता है। इस त्योहार पर पारंपरिक नृत्य 'थाबल चोंगबा' किया जाता है, जिसमें युवा लड़के-लड़कियां हाथ पकड़कर नृत्य करते हैं। पारंपरिक वेशभूषा में घर-घर जाते हैं, और पैसे की मांग करते हैं। इससे वे उत्सव मनाते हैं।
यशा माथुर