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मीठा खाने का रिवाज़ किसकी देन!

खाने के बाद मीठा खाना जरूरी सिर्फ भारत ही नहीं विदेशों में भी होता है। यहां खीर, हलवा और मीठाईयां खाई जाती हैं वहीं विदेशों में पेस्ट्री, कुकीज़ । तो जानते हैं कहां से हुई इसकी शुरूआत

By Priyanka SinghEdited By: Published: Thu, 20 Dec 2018 12:59 PM (IST)Updated: Fri, 21 Dec 2018 10:23 AM (IST)
मीठा खाने का रिवाज़ किसकी देन!
मीठा खाने का रिवाज़ किसकी देन!

खाने के बाद मुंह मीठा करने का दस्तूर हिंदुस्तान में ही नहीं दुनिया के दूसरे देशों में भी है। जहां भोजन एक साथ थाली में नहीं, किस्तों में परोसा जाता है, वहां इसे डेजर्ट कोर्स का नाम दिया जाता है। अधिकतर बेकरी में तैयार व्यंजन ही पेश किए जाते हैं। अमेरिका का 'एप्पल पाय' हो या विलायती भाप से पका 'जिंजर पुडिंग' यही भूमिका निबाहते हैं। हालांकि भारत के विभिन्न हिस्सों में पत्तल के कोने में या थाली की बहुत सारी कटोरियों में एक में खीर या हलवे की जगह सुनिश्चित मानी जाने लगी है। अपने यहां आप मिठाई का अल्पाहार कभी भी कर सकते हैं। ठंडी आबोहवा वाले मुल्क में मीठा गरम सोहता है तो इटली में आइसक्रीम को मात देता ठंडा 'जिलातो' लोकप्रिय है। एक दिलचस्प बात यह है कि जहां चीनी खाने में माथा चकरा देने वाली विविधता के दर्शन होते हैं, वहीं मिठास वाला महकमा उपेक्षित लगता है। 'हनी नूडल्स', 'डेट पैनकेक' और 'टॉफी बनाना' गिनती की तीन-चार चीजें ही पारंपरिक खानपान की सूची में शामिल की जाती हैं। जापान, कोरिया, थाईलैंड तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में भी मिठाइयों का शौक, हमारे उपमहाद्वीप जैसा नहीं नजर आता।

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हां, तुर्की में भारत की मिठाइयों से भी अधिक मीठा खाने का चलन है। यूरोप के कई देशों में मौसमी फलों को चीनी की पतली हल्की मीठी चाशनी में पकाकर स्टू या कंपोट की शक्ल में भी खाते हैं। 'फ्रूट सलाद'(कस्टर्ड के साथ) भारत में अधिक विदेश में कम दिखता है। केक पेस्ट्री की दर्जनों किस्में हैं, जिन्हें किसी फल (संतरे, प्लम या खूबानी) के सॉस से अधिक आकर्षक बनाया जाता है। बर्तानवी साम्राज्यवाद के युग में साहब लोगों का खाना बनाना उनके बंगलों में नौकरी करने वाले पेशेवर बावर्ची और डाक बंगलों में नियुक्त चौकीदार-खानसामा भी सीख गए।

अंग्रेजी माध्यम बोर्डिंग स्कूलों के होस्टलों, फौजी मैसों, क्लबों में डेजर्ट के नाम पर अंग्रेजी मिठास का ही बोलबाला था। विजेता शासक के पहनावे और खानपान को आदर्श और अनुकरणीय मानने की मानसिकता ने केक, पेस्ट्री, जैम-जेली, चॉकलेट आदि को आम लोगों की जुबान पर चढ़ा दिया। जो लोग अंडे से परहेज करते हैं, उन्होंने इन चीजों के 'एगलेस' अवतार तलाश लिए हैं। एक बात जो हमें समझ नहीं आ सकी है वह यह है कि बड़े आकार की पेसट्री और क्रीम रोल वगैरह तो हमने अपना लिए पर नन्हे टार्टलैट हमारी जीभ पर जादू नहीं जगा सके?

बेकरी का काम विज्ञान और कला का संगम है। मापतौल में गलती सुधारी नहीं जा सकती और न ही हर घर ओवन खरीदा जा सकता है, इसीलिए भारत और दूसरे देशों में भी यह आइटम हलवाईनुमा कन्फेक्शनर या पातिसरी से ही खरीदे जाते हैं। 'कैरमल कस्टर्ड' से लेकर 'ट्रिफल पुडिंग' आप आसानी से घर पर बना सकते हैं। पनीर और मेरी या डाइजेस्टिव बिस्कुटों से उम्दा चीज-केक खा-खिला सकते हैं। 


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