अगर आपको पहाड़ों से प्यार है, तो ये जगह आपको पूरी तरह तरोताजा कर देगा
अगर आपको पहाड़ों से प्यार है और आप किसी पहाड़ी इलाके की सैर पर जाने की सोच रहे हैं, तो आप हिमाचल प्रदेश में डलहौजी जा सकते हैं। ये जगह आपको न सिर्फ तरो ताजा कर देगा, बल्कि आपको कुदरत के काफी करीब ले आएगा। डलहौजी उत्तर भारत का मशहूर
अगर आपको पहाड़ों से प्यार है और आप किसी पहाड़ी इलाके की सैर पर जाने की सोच रहे हैं, तो आप हिमाचल प्रदेश में डलहौजी जा सकते हैं। ये जगह आपको न सिर्फ तरो ताजा कर देगा, बल्कि आपको कुदरत के काफी करीब ले आएगा। डलहौजी उत्तर भारत का मशहूर हिल स्टेशन है। हिमाचल प्रदेश का छोटा सा शहर डलहौजी कुदरत के खूबसूरत नजारों के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। घास के मैदान के रूप में जाना जाने वाला खजियार प्राकृतिक सौंदर्य के साथ ही धार्मिक आस्था की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। जबकि धार्मिक आस्था, कला, शिल्प, परंपराओं और प्राकृतिक सौंदर्य को अपने आंचल में समेटे चंबा हिमाचल की सभ्यता और संस्कृति का जीवंत प्रतीक है।
गर्मी के मौसम में दैनिक जीवन की भागमभाग और प्रदूषण से जब ज्यादा ही उकताहट और बेचैनी होने लगती है तो पर्वतों की हसीन वादियां पुकारने लगती हैं। मन ऐसी जगह पहुंचने को करता है जहां जीवन के लिए नयी ऊर्जा हासिल की जा सके। कुछ ऐसे ही इरादे से इस बार हिमाचल प्रदेश की यात्रा पर निकले । डलहौजी, खजियार और चंबा की वादियां।
इन तीनों जगहों की अपनी अलग-अलग विशेषताएं हैं। डलहौजी की गिनती अंग्रेजों के समय से ही एक शांत सैरगाह के रूप में होती है। खजियार हरे-भरे जंगल के मध्य फैले घास के मैदान के लिए प्रसिद्ध है और चंबा ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व वाला पर्वतीय नगर है। दिल्ली-जम्मू रेलमार्ग पर स्थित पठानकोट स्टेशन पर उतर कर डलहौजी के लिए टैक्सी ले सकते हैं। पहाड़ी मार्ग शुरू होते ही सर्पाकार सड़कों का सिलसिला शुरू हो जाता है । कुछ देर बाद ही मार्ग में अनोखी सी पहाडि़यां नजर आती है । जैसे विशाल पहाडि़यों को किसी संगतराश ने एक खास आकार देने का प्रयास किया हो। इन्हें देखकर अमेरिका के ग्रैंड केनयन का खयाल आता है, जिसे एक नदी के प्रवाह ने कुछ अलग ही आकार दे दिया है। ऐसा ही कुछ यहां भी लगता है। यहां के सूखे से पहाड़ ऐसे लगते हैं जैसे किसी नदी घाटी से उभर कर बने हों। इन पहाड़ों की मिट्टी में बहाव से घिसकर गोल हुए पत्थरों की भरमार है। ढाई घंटे बाद हम बनीखेत पहुंचे। यहीं से एक रास्ता चंबा के लिए जाता है। डलहौजी यहां से मात्र छह किलोमीटर दूर है। डलहौजी पहुंचकर ठहरने की व्यवस्था ऐसे होटल में करें जहां प्रकृति से सीधा साक्षात्कार हो सके।
पांच पहाडि़यों पर बसा शहर
प्रकृति के जिस अनूठे सौंदर्य ने अंग्रेज वायसराय लॉर्ड डलहौजी को प्रभावित किया था, वही सौंदर्य आज भी सैलानियों को लुभाता है। धौलाधार पर्वत श्रृंखला के साये में पांच पहाडि़यों पर बसा है यह शहर। चीड़ और देवदार के ऊंचे वृक्ष हरे रंग के अलग-अलग शेड दर्शाते हैं। जिन्हें छू कर आती सुहानी हवा यहां की जलवायु को स्वास्थ्यवर्द्धक बनाती है। यही शीतल जलवायु गर्मियों में सैलानियों को अपनी ओर खींचती है तो सर्दियों में चारों ओर फैली हिम चादर उन्हें मोहित करती है। उस समय घरों की छत पर पेड़ों की टहनियों पर लदी बर्फ एक अलग ही मंजर पेश करती है।
1853 में अंग्रेजों ने यहां की जलवायु से प्रभावित होकर पोर्टि्रन, कठलोश, टेहरा, बकरोटा और बलून पहाडि़यों को चंबा के राजाओं से खरीद लिया था। इसके बाद इस स्थान का नाम लॉर्ड डलहौजी के नाम पर डलहौजी रख दिया गया। बलून पहाड़ी पर उन्होंने छावनी बसाई, जहां आज भी छावनी क्षेत्र है। शहर मुख्यत: पौर्टि्रन पहाड़ी के आसपास बसा है।
धौलाधार के धवल शिखरों की अटूट श्रृंखला। ऐसा लगता जैसे गोया नीले आकाश के कागज पर प्रकृति ने हिम लिपि से कोई महाकाव्य रच दिया हो। हिम शिखरों के सामने फैली हरी-भरी पहाडि़यां उस महाकाव्य की व्याख्या करती हुई सी लगती। उन्मुक्त पर्वतीय वातावरण में बहता मंद मादक पवन जाने पर्यटक को किस दुनिया में ले जाता कि कुछ ही घंटों में शहर की तपती गरमी और नीरस दिनचर्या को लोग भूल जाते।
किसी ने कहा था कि डलहौजी की खूबसूरती को आत्मसात करना हो तो किसी यायावर की तरह यहां की सड़कों पर भटक जाएं। आप अपने को किसी अनूठे लोक में पाएंगे। हरे-भरे वृक्षों से घिरी घुमावदार साफ-सुथरी सड़कें यूं भी सैलानियों को चहलकदमी के लिए आमंत्रित करती हैं। यहां खड़े सैलानी सर्द मौसम की खिली धूप का आनंद लेते हैं। यहां एक चर्च भी है। डलहौजी का ऐसा ही दूसरा प्वाइंट है गांधी चौक। सुभाष चौक से गांधी चौक जाने के लिए दो मार्ग हैं। इनमें एक गर्म सड़क कहलाता है और दूसरा ठंडी सड़क।गर्म सड़क सन फेसिंग है। वहां अधिकांश समय धूप रहती है। जबकि ठंडी सड़क पर सूर्य के दर्शन कम ही होते हैं। हिमपात के दिनों में इधर बर्फ भी देर से पिघलती है। ठंडी सड़क को माल रोड भी कहते हैं। हम वहीं से गांधी चौक के लिए चल दिए। प्राकृतिक दृश्यों की कड़ी में, पूरे रास्ते हिम से ढके शिखरों का सिलसिला साथ चलता । पर्वत की गोद में बसे गांव, घाटियां सुंदर नजर आती। बलून पहाड़ी पर बसा छावनी क्षेत्र सबसे निकट दिखता । मार्ग में पर्यटकों के विश्राम के लिए कुछ शेल्टर भी बने हैं। यहां से मनमोहक दृश्य दिखते हैं।
गांधी चौक पर तो घुमक्कड़ लोगों का जमघट ही लगा रहता है। यहां डलहौजी का मुख्य डाकघर होने के कारण इसे पहले जीपीओ स्क्वेयर कहते थे। डाकघर के सामने ही गांधी जी की प्रतिमा है। इसके पीछे एक चर्च है। गांधी चौक पर भी छोटा सा बाजार, कुछ रेस्टोरेंट और फास्ट फूड पार्लर आदि हैं। यहीं एक ओर कतार में कुछ घोड़े भी खड़े रहते हैं, जो लोगों की घुड़सवारी का शौक पूरा करते हैं। चौक से थोड़ा आगे तिब्बती बाजार है। यहां एक टैक्सी स्टैंड है, जहां आसपास की घुमक्कड़ी के लिए टैक्सियां मिल जाती हैं। दो-चार किलोमीटर पैदल चलने की क्षमता है तो कुछ स्थान पैदल ही देखे जा सकते हैं। सतधारा, पंजपुला, सुभाष बाओली और जंदरी घाट जैसे दर्शनीय स्थल निकट ही हैं।
स्थानीय लोग बताते हैं कि सतधारा में पहले कभी जल की सात धाराएं झरने के रूप में बहती थीं और इसका जल औषधीय गुणों से युक्त होता था। आज यहां साधारण सी एक जलधारा बहती है। सतधारा से एक किलोमीटर दूर पंजपुला है। यह एक छोटा सा पिकनिक स्पॉट है। यहां से एक पैदल मार्ग धर्मशाला की ओर जाता था। उस मार्ग पर पांच पुल थे। सैलानियों को यह मार्ग बहुत सुंदर लगता था। इसलिए उन्होंने इसे पंजपुला कहना शुरू कर दिया। पंजपुला में स्वतंत्रता सेनानी अजीत सिंह की समाधि भी है। सुभाष चंद्र बोस के सहयोगी रह चुके सरदार अजीत सिंह शहीद भगत सिंह के चाचा थे। जिस दिन देश स्वतंत्र हुआ उसी दिन यहां उनका देहांत हो गया था। यहां आने वाले पर्यटक उस महान सेनानी को श्रद्धासुमन अर्पित करना नहीं भूलते। गांधी चौक से एक मार्ग सुभाष बाओली और जंदरीघाट के लिए जाता है। सुभाष बाओली का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि डलहौजी प्रवास के दौरान नेताजी इस बाओली पर प्राय: आते थे। आज यहां एक छोटा सा जल स्त्रोत है, किंतु यहां से हिमाच्छादित पर्वतों के मनभावन दृश्य देखते ही बनते हैं। एक किलोमीटर दूर जंदरीघाट है। यहां की दृश्यावली में शामिल हैं छोटे-छोटे गांव, ढलानों पर बने सीढ़ीनुमा खेत, ऊंचे वृक्षों की लंबी कतारें। चंबा के राजाओं ने यहां एक छोटा सा महल भी बनवाया है। यह महल पर्वतीय वास्तु शैली में ढलवां छतों वाले विशाल घर के समान बना है। इसके सामने एक सुंदर उद्यान है। महल में ऐतिहासिक वस्तुओं और चित्रों का अच्छा संग्रह है। राजघराने की निजी संपत्ति होने के कारण पर्यटक इसे केवल बाहर से ही देख पाते हैं।
डलहौजी का सबसे ऊंचा स्थान दैनकुंड यहां से 10 किलोमीटर दूर है। यहां से आसपास का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। ऊंचे वृक्षों वाले वनों में जब हवा अपने वेग से चलती है तो वातावरण में संगीत सा बजता सुनाई देता है। इसलिए इसे संगीतमय पहाड़ी भी कहा जाता है। बताते हैं कि मौसम साफ हो तो यहां से व्यास, चिनाब और रावी नदी घाटियों का सुंदर दृश्य भी नजर आता है। इसके निकट ही कालाटोप नामक वन्य प्राणी संरक्षण वन है। यहां घूमने के लिए वन विभाग से अनुमति प्राप्त करके जाना चाहिए। यहां के सघन वनों में तमाम वन्य जीवों तथा पक्षियों को स्वच्छंद विचरण करते देखा जा सकता है।
एक दुनिया नयी सी
कांगड़ा से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं डलहौजी। जहां पहाड़ों का राजा कहे जाने वाले हिमाचल प्रदेश में कदम-कदम पर प्रकृति ने सुंदरता के एक से बढ़कर एक नमूने बिखरा दिए हैं। जहां जाएं बस मन मचलकर रह जाए। यहां की शीतल, मंद और महकती हवाएं हर किसी के मन को मोह लेती है। जब किसी ऐसी जगह पहुंच जाएं जहां बस पहाड़ हों, पेड़ हों और दूर-दूर तक फैली हरियाली हो तो यह नजारा और भी मन को मोहने वाला होता है। चंबा घाटी की यह अमूल्य धरोहर गर्मी में मन को असीम आनंद देने वाली साबित होती है। सर्दी के मौसम में यहां बर्फ का मजा लिया जा सकता है। तब यहां का तापमान शून्य से भी नीचे चला जाता है। जब मैदानी इलाकों में भयंकर गर्मी पड़ रही होती है तो यहां का तापमान भी 35 डिग्री तक पहुंच जाता है। इस जगह की खोज 19वीं शताब्दी के मध्य में ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने की थी। डलहौजी अपने आपमें ही बेहद खूबसूरत जगह है। कुदरत ने डलहौजी के आस-पास भी बेहद खूबसूरती बिखेर रखी है। दर्जनों ऐसे स्थल हैं जहां सुकून के साथ कुछ समय बिताया जा सकता है। आइए जानते हैं यहां के कुछ खास स्थल जिसे आप प्राथमिकता से देख सकते हैं।
बड़ा पत्थर- डलहौजी से चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित अहला गांव में भुलावनी माता का मंदिर है जिसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।
धाइनकुंड- यह स्थान डलहौजी से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां से व्यास, चिनाब और रावी नदियों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। यहां आने वाले सैलानियों के लिए यह मशहूर पर्यटक स्थल बन चुका है।
बकरोटा हिल्स- यहां घूमने आने वालों के लिए बकरोटा मॉल बेहद लोकप्रिय जगह है। यहां से पहाड़ी वादियों का खूबसूरत नजारा दिखाई देता है।
कालाटोप- लगभग साढ़े आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित कालाटोप में छोटी सी वाइल्ड लाइफ सेंचुरी है। यहां जंगली जानवरों को नजदीक से देखा जा सकता है।
सुभाष बावली- जीपीओ से लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है सुभाष बावली। यहां से बर्फ से ढंकी चोटियों को आसानी से देखा जा सकता है।
सतधारा- यहां के पानी को पवित्र माना जाता है। हालांकि इस पानी में कई तरह के खनिज पदार्थ होने की वजह से यह दवाई का काम करता है।
पंजपुला- यहां का नजारा देखने लायक होता है। यहां पानी की पांच छोटे-छोटे पुलों के नीचे से बहता है। यह स्थान दो किमी की दूरी पर स्थित है।
कैसे पहुंचें : सड़क मार्ग से आने वाले पर्यटकों को यहां पहुंचना बिलकुल भी मुश्किल नहीं है। दिल्ली-एनसीआर से चंडीगढ़ होते हुए डलहौजी आसानी से पहुंचा जा सकता है। कांगड़ा का रेलवे स्टेशन भी सबसे नजदीक पड़ता है जो यहां से 18 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। कांगड़ा में स्थित गागल हवाई अड्डा यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है। जो सैलानियों के लिए कांगड़ा के बाद ऐसा पहाड़ी स्थल, जो सिर्फ 12 किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है।
दिल्ली से 514 किलोमीटर की दूरी पर स्थित डलहौजी में आकर सभी का मन बागबाग हो जाता हैं। यहां की दूरी चंडीगढ़ से 239 किमी, कुल्लू से 214 किमी और शिमला से 332 किमी है। चंबा यहां से 192 किलोमीटर दूर है। यहां आने का सबसे अच्छा समय अप्रैल से जून और सितंबर-अक्टूबर का माह होता है। यहां का सुबह-शाम का मौसम तो मन मोहने वाला होता है, जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है।