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चलें गांव की ओर

कुछ समय पहले यह बात कहना मुनासिब रहा हो लेकिन अब जब कोई गांव से आए, तब ही बचपन को याद करने की जरूरत नहीं रह गई है। आज के बदलते परिवेश में आधुनिक चकाचौंध से ऊबकर मनुष्य फिर से प्राकृतिक नीड़ की शरण में जाने को उतावला है। समय

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 23 Oct 2015 02:38 PM (IST)Updated: Fri, 23 Oct 2015 03:29 PM (IST)
चलें गांव की ओर
चलें गांव की ओर

कुछ समय पहले यह बात कहना मुनासिब रहा हो लेकिन अब जब कोई गांव से आए, तब ही बचपन को याद करने की जरूरत नहीं रह गई है। आज के बदलते परिवेश में आधुनिक चकाचौंध से ऊबकर मनुष्य फिर से प्राकृतिक नीड़ की शरण में जाने को उतावला है। समय की बदलती रफ्तार के साथ-साथ हमारे जीवन में भी बहुत कुछ बदला है। घूमने-फिरने का शौक मनुष्य को अपनी सभ्यता के आरंभिक दौर से रहा है। विज्ञान की मौजूदा उपलब्धियों से पहले भी मनुष्य पर्यटन के लिए बहुत से परंपरागत तौर-तरीकों को अपनाता रहा है। नित नए परिवर्तन व बदलाव की बहती नई बयार के चलते आज मनुष्य के सैर-सपाटे के गंतव्य ही नहीं बदले, उसके अंदाज भी बदल गए है। बदलते दौर का ऐसा ही एक नया और पसंदीदा शगल है-’फार्म टूरिज्म’। इस समय पर्यटन के लिए लोग ऐसे वैकल्पिक स्थानों को चुन रहे हैं, जहां उन्हें तन-मन का सुकून भी प्राप्त हो सके और वे अपनी पुरानी विरासत और भारतीय सभ्यता की जड़ों को भी नजदीक से निहार सकें।

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फार्म टूरिज्म के क्षेत्र में तेजी से प्रगति हो रही है। पहले सिर्फ निजी क्षेत्रों, या यूं कहें कि संपन्न वर्ग का ही यह एक प्रिय शगल हुआ करता था, लेकिन आज भारत का एक बड़ा वर्ग, जिसमें मध्यम वर्गीय समाज भी शामिल है, फार्म टूरिज्म में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी कर रहा है। सिर्फ निजी क्षेत्र ही नहीं, भारत सरकार ने पर्यटन मंत्रालय के सहयोग से भी ऐसे स्थानों को विशेष रूप से चिह्नित करना शुरू किया है, जो बदलते परिदृश्य में फार्म टूरिज्म के लिए सर्वाधिक संभावना वाले क्षेत्र हो सकते हैं।

हमारा देश विविध परंपराओं की इंद्रधनुषी छटाओं व सांस्कृतिक विविधताओं से भरा-पूरा देश है। इसकी यह विशेषता ही दुनिया भर के पर्यटकों को भारत खींच लेती है। हीरे-जवाहरात और रेडिमेड गारमेंट्स के बाद पर्यटन भारत में विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाला तीसरा बड़ा उद्योग है। आज के दौर में पर्यटन रोजगार के अवसर पैदा करने, गरीबी दूर करने और निरंतर मानव विकास का महत्वपूर्ण जरिया बन गया है। भारत ही नहीं पूरी दुनिया में पर्यटन के दिन फिरे हैं। पर्यटकों के चलते स्थानीय दस्तकारी जैसी लोक-कलाएं विकसित होती हैं और सांस्कृतिक गतिविधियों में इजाफा होता है।

सांस्कृतिक विरासतें, तीर्थ पर्यटन और परंपरागत संस्कृति से जुड़े उत्सवों को भी फार्म टूरिज्म का एक हिस्सा बनाया गया है। गर्मी व वर्षा के मौसम में विभिन्न पर्यटन स्थलों की सूचना देने के काम पर बल दिया जा रहा है। नैचुरल फूड, ट्रेडिशनल फूड, क्षेत्रीय आधार पर विविधता भरे भारतीय व्यंजनों के साथ-साथ पर्यटक भारतीय प्राचीन पद्धतियों, ध्यान, योग और आयुर्वेद का भी लाभ ले रहे हैं। भारत के निकटवर्ती देशों जिनमें श्रीलंका, थाइलैंड, इंडोनेशिया, चीन, जकार्ता, म्यांमार आदि प्रमुख हैं, में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से फार्म टूरिज्म फल-फूल रहा है। पश्चिम के देशों में भी फार्म टूरिज्म के प्रति लोगों में रुचि बढ़ी है। थाइलैंड के ग्रामीण इलाकों में फार्म टूरिज्म के अंतर्गत पर्यटकों को जो पैकेज मुहैया कराया जाता है, उसमें बाकायदा उसकी विशेषताओं का उल्लेख है। सौंदर्यव‌र्द्धक उपायों के साथ-साथ वन्यजीवों व प्रकृति जन्य विषयों को भी पर्यटकों की रुचि का केंद्र बनाया जाता है। वहां के सुदूरवर्ती ग्रामों में आयोजित होने वाली हाथियों की प्रतियोगिताएं देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक उमड़ते हैं।

उत्तर भारत के 12 राज्यों-जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हिमाचल, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, उत्तरांचल, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान और दिल्ली में फार्म टूरिज्म के लिए गतिविधियां तेज हुई हैं। फार्म टूरिज्म के भविष्य की तरफ इशारा करते हुए प्रसिद्ध फिल्मकार मुजफ्फर अली कहते हैं-इससे एक ओर जहां हमारी प्राचीन विरासत को लोग पहचानेंगे, वहीं उन लोगों का स्वास्थ्य भी ठीक होगा, जिन्होंने पश्चिमी देशों की तर्ज पर पता नहीं क्या-क्या खा-खाकर अपने पेट का डस्टबीन बना लिया है। हमारे भारत की संस्कृति में भोजन और भजन दोनों का अपना-अपना महत्व है। फार्म टूरिज्म के माध्यम से इन मूल्यों की तरफ फिर से लौटा जा सकेगा।’

उत्तर भारत ही नहीं दक्षिण भारत में भी फार्म टूरिज्म के क्षेत्र में नई संभावनाएं उदित हुई हैं। केरल के कीलोन से एलप्पी के बीच बैक वॉटर्स में तैरते असंख्य हाउस बोट पर्यटन के नए मिजाज के प्रतीक हैं। कुछ समय पहले तक नारियल और बांस के घने जंगलों के मध्य जल-क्रीड़ा करते हुए बीच पानी में केटुवेलन नाव से सवारी करना अपने आप में एक सुखद अनुभव था, लेकिन जो लोग इसका लुत्फ उठा चुके हैं, अगर अब वे केरल आते हैं तो वे यह देखकर चौंक जाएंगे कि पर्यटन एजेसियों ने यहां बड़े-बड़े फार्म हाउसों को अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित करके पर्यटकों के लिए शांतिपूर्ण छुट्टियां व्यतीत करने का एक बेहतरीन विकल्प खोज निकाला है। पंजाब के सुदूरवर्ती ग्रामों में भी बड़े-बड़े फार्महाउसों में पौन फुट साइज के गिलासों में मलाईमार लस्सी और सामने ही तैयार किया जा रहा रोस्टेड पनीर टिक्का पर्यटकों के मुंह में पानी लाने के लिए पर्याप्त है।

परंपरागत चारपाई पर पालथी मारकर गप्पे हांकना और हुक्के की दुम से धुएं के छल्ले उड़ाकर बच्चों को लुभाना पर्यटकों को खासा रास आ रहा है। यही नहीं भारतीय ग्रामीण जन-जीवन से जुड़े खेलों व रोचक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी भी पर्यटकों का मनपसंद शगल है। ऐसे खेलों में खो-खो, कबड्डी और घुड़सवारी प्रमुख हैं।

सरसों का साग, मक्के की रोटी, हाथ का निकला मक्खन, करसी पर भूने गए भुट्टे, गुड़ व ताजा बिलौया गया मट्ठा कुछ ऐसी चीजें हैं, जो शायद ही किसी फाइव स्टार होटल में अपना वो आनंद दे सकें, जो अपने स्वाभाविक परिवेश ग्रामीण अंचल में देती हैं। सुदूरवर्ती गांव ही नहीं महानगरों से सटे फार्म हाउसों को भी अब इस तर्ज पर विकसित किया जा रह है कि वहां पर्यटकों को लुभाया जा सके और वे वहां पर्यटन के आनंद के साथ वास्तविक भारत के प्रत्यक्ष दर्शन कर सकें। कहना न होगा इस पूरी कवायद में क्वालिटी और स्वच्छता को सर्वोपरि रखा गया है।

नई उम्र के उन युवक-युवतियों को भी इस पर्यटन में खासी दिलचस्पी पैदा हो रही है, जिनमें से काफी यह मानकर चलते थे कि गन्ना पेड़ पर उगता है। अब वे अपने जीवन में उपयोग आने वाली बहुत सी वस्तुओं को उनके मौलिक और प्राकृतिक स्वरूप में निहार सकेंगे।

यही नहीं प्रकृति अपने मूल-भूत गुणों के साथ एक ऐसा नैसर्गिक आकर्षण रखती हे कि जिसकी तुलना कितनी ही खूबसूरत कांच से चमचमाती गगनचुंबी इमारतों से नहीं की जा सकती। पानी के हाथ लगी चूल्हे पर बनी ताजी-ताजी रोटी जब चूल्हे से सीधे थाली का सफर तय करती है, तो उसके स्वाद के सामने घंटों के बासी बर्गर और पिज्जा को अपना मन मसोस कर ही रह जाना पड़ेगा। यही नहीं लग्जरी गाडि़यों में बैठे-बैठे जिन बालाओं की कमर में लोच आ चुकी हैं, अब जब वे बैलों के गले में बंधी टन-टन करती घंटियों की आवाज के साथ बैलगाड़ी में बैठकर गांव की पगडंडियों से फार्म टूरिज्म का आनंद लेती हैं, तो यह अनुभव उन्हें जल्दी भुलाए नहीं भूलता।

इंस्टीट्यूट ऑफ व‌र्ल्ड टूरिज्म के अनुसार इस तरह के नए परिवर्तनों को पर्यटक अत्यंत उत्साह के साथ पसंद कर रहे हैं। यही नहीं इन नए बदलावों से इस उद्योग के राजस्व में अभूतपूर्व रूप से बढ़ोत्तरी हुई है। इसका एक प्रमाण यह भी है कि मार्च 2006 तक दुनिया भर के कुल सैलानियों में से लगभग 27 प्रतिशत व्यक्तियों ने प्राकृतिक स्थलों को सर्वाधिक प्राथमिकता के साथ चुना। भारत में आज अनेक छोटी-बड़ी पर्यटन एजेसिंया फार्म टूरिज्म पैकेज उपलब्ध कराने में जुटी हैं।

फार्म टूरिज्म को हम प्राकृतिक पर्यटन की श्रेणी में भी रख सकते हैं। विज्ञान की अंधाधुंध प्रगति, प्रदूषण के चौतरफा विस्तार तथा आपा-धापी से भरी आज की जिंदगी ने स्वत: ही प्राकृतिक विकल्पों की तरफ मनुष्य का मन आकर्षित किया है। ऐसे में प्राकृतिक स्थलों व प्राकृतिक विकल्पों को अपनाने के लिए एक होड़ सी छिड़ी हुई है। फार्म टूरिज्म में उन स्थानों को चुना जा रहा है, जहां इंसान व इंसान की साइंस अपना कम दखल रखती हो। आदमी की कारीगरी ने जिन स्थानों को छेड़-छाड़ करके विकृत नहीं किया है, फार्म टूरिज्म के लिए वे आदर्श स्थल हो सकते हैं।

फार्म टूरिज्म के रूप में जो केंद्र विकसित हो रहे हैं, उनमें पर्यटकों की सुविधा एवं उनके स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर ही पैकेज तैयार किए गए हैं। साथ ही इस बात को भी ध्यान में रखा गया है कि पर्यटकों की सुरक्षा और उनके सामान की हिफाजत भी भली प्रकार से हो सके। फार्म टूरिज्म के विकास की संभावनाएं सीधे-सीधे ग्रामीण अंचलों में निहित रोजगार से भी जुड़ी हैं।

जैसे-जैसे पर्यटन का यह अंदाज विकसित होगा, वैसे-वैसे शहरी पर्यटक जहां हमारी भारतीय परंपरा की बारीकियों से अवगत होंगे, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण अंचल में रहने वाले महिला-पुरुष भी परोक्ष रूप से बहुत से मामलों में शिक्षित होंगे। बहुत से क्षेत्रों में सड़कों की दयनीय स्थिति, सुरक्षा व्यवस्था, सुविधाओं का अभाव और लोगों के व्यवहार में भदेसपन इस क्षेत्र के विकास की बाधाएं हैं, जिन्हें दूर करके ही फार्म टूरिज्म को आगे बढ़ाया जा सकेगा। कुल मिलाकर पर्यटन के क्षेत्र में होने वाले नए परिवर्तनों में ‘फार्म टूरिज्म’ एक ऐसा ही सुखद परिवर्तन है, जिसके भविष्य को लेकर बहुत सारी संभावनाएं उभर रही हैं।


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