भारत-चीन-तिब्बत सीमा पर स्थित गर्तांग गली 56 साल बाद खुलेगी, जानें क्या है खास
अब भी 140 साल पुरानी खड़ी चट्टान में लगा लकड़ी का सीढ़ीनुमा रास्ता जो 150 मीटर लंबा है, अब भी मौजूद है।
दुनिया में ऐसे कई पर्यटक स्थल हैं, जो टॉप डेस्टिनेशन्स में शामिल हैं। यहां पर दुनिया भर से आने वाले लोगों की तादाद बहुत ज्यादा होती है। पर्यटकों की संख्या ज्यादा होने की वजह से सुरक्षा का भी खास ध्यान रखा जाता है। वहीं, सुरक्षा सुनिश्चित करने के बाद ही किसी टूरिस्ट डेस्टिनेशन को टूरिस्ट के लिए खोला जाता है।
ऐसी ही जगह है, भारत-चीन-तिब्बत सीमा पर स्थित गर्तांग गली सुरक्षा कारणों के चलते बंद कर दी गई थी। अब 56 सालों बाद इसे फिर से खोला जा रहा है।
1962 से पहले कभी भारत और तिब्बत के बीच इसी गली से व्यापार हुआ करता था। लेकिन, 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद इस गली को सामरिक दृष्टि और सुरक्षा के लिहाज से बंद कर दिया गया था। उत्तरकाशी के नजदीकी गांव जादुंग, पीड़िया और निलांग को खाली कराकर उन्हें तब हर्षिल और बगोरी में बसाया गया था। गंगोत्री धाम से 11 किमी पूर्व भैरोघाटी से जाड़ गंगा के किनारे से होकर गर्तांग गली का रास्ता निकलता है। जहां से तिब्बत की दूरी कम है।
इस वजह से रहा खास
अब भी 140 साल पुरानी खड़ी चट्टान में लगा लकड़ी का सीढ़ीनुमा रास्ता जो 150 मीटर लंबा है, अब भी मौजूद है। उस पर घोड़े व खच्चर नहीं चल सकते थे। इसलिए तब उस वक्त यहां पत्थर की चट्टान को काटकर दर्रा पार करने के लिए गली बनाई गई थी। जो भारत और तिब्बत के सीमावर्ती क्षेत्रों में व्यापार के काम आई। उत्तरकाशी में हर साल जनवरी में माघ पर्व मनाया जाता है। बताते हैं कि तब तिब्बत के लोग इस पर्व में आकर गर्म ऊनी कपड़ों के बदले तेल, नमक, चीनी व गुड़ ले जाया करते थे जो 1962 के बाद बंद हो गया।
कभी था एडवेंचर टूरिस्ट स्पोर्ट
समुद्रतल से 11000 फीट ऊपर स्थित इस जगह पर लोग एडवेंचर स्पोर्ट्स का लुफ्त उठाने आते थे। वहीं अतीत के झरोखे से देखें तो कहा जाता है कि इसे पेशावरी पठानों से बनवाया था। दशकों पहले अफगानिस्तान, पाकिस्तान और तिब्बत के लोग यहां व्यापार की दृष्टि से आते थे।