अलीगढ़ में हर दुकान की कचौड़ी का अलग है स्वाद तो वहीं यहां के गजक ने की है विदेशों तक की सैर
अलीगढ़ आएं तो ऐतिहासिक इमारतों, मंदिरों को घूमने के अलावा यहां के जायके को चखना बिल्कुल न भूलें। सब्जी-कचौड़ी से लेकर गजक और निहारी का स्वाद एक बार खाने के बाद भूलना है नामुमकिन।
अलीगढ़ शहर आकर आप एक साथ कई सारे रंग देख सकते हैं। दूर-दूर देशों से यहां पढ़ने आए छात्रों की वजह से शहर ने अपने-आप को भी काफी हद तक बदला है। तालों की वजह से तो यह शहर मशहूर है ही यहां की ऐतिहासिक अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की साख की गूंज भी चारों ओर है। और तो और खान-पान की इतनी वैराइटी यहां मौजूद है कि इसे आप एक दिन में तो बिल्कुल एक्सप्लोर नहीं कर पाएंगे। लेकिन मिस भी नहीं किया जा सकता। तो आइए जानते हैं दूर तक फैले कचौड़ी और गजक के निराले स्वाद के बारे में।
अलीगढ़ की कचौड़ी
आप अलीगढ़ आएं और यहां की कचौड़ी न खाएं तो बात अधूरी रहेगी। अलीगढ़ जैसी करारी कचौड़ी आपको शायद कहीं नहीं मिलेगी। यह आम कचौड़ी की तरह मुलायम व फूली हुई नहीं, बल्कि कड़क, भुरभुरी व चपटी होती है। लोहे की कढ़ाही में हींग व तेज गरम मसाले से बनी आलू की तीखे स्वाद वाली गाढ़ी सब्जी के साथ जब यह कचौड़ी खाई जाती है तो मुंह से 'वाह' निकल जाना लाजिमी है। शहर के तमाम लोगों के दिन की शुरुआत कचौडि़यों से ही होती है। हां, रसेदार बनाने के लिए अलग से छोले की सब्जी या रायता मिलाना पड़ता है, जिससे इसका स्वाद और बढ़ जाता है। खास बात यह भी है कि हर दुकान पर कचौड़ी के स्वाद में अंतर आ जाता है।
दूर देश तक जाते हैं यहां के गजक
अभी गजक का मौसम है। यदि अलीगढ़ के गजक की बात करें तो देसी घी से बने यहां गजक की तकरीबन 20 तरह की वैराइटी मौजूद हैं। इनमें खस्ता गजक, तिलपट्टी, गजक मूंगफली, रेवड़ी सादा व मावा, गजक रोल, तीन तरह की तिल चिक्की, तिल व मावा के लड्डू-बर्फी आदि भी शामिल हैं। ये इतने मशहूर हैं कि इसके दीवाने सात समंदर पार भी मौजूद हैं। दुबई, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों में यहां से गजक भेजे जाते हैं।
नवाबों के समय से मशहूर है गुलाठी
गुलाठी देखने में काफी हद तक खीर जैसी ही होती है। जिसे यहां शादी-ब्याह में ज्यादातर परोसा जाता है और आज से नहीं बल्कि नवाबों के समय से। खीर में जहां चावल और दूध की मात्रा समान होती है वहीं गुलाठी में चावल कम और दूध ज्यादा होता है। इसे लजीज़ बनाने का काम करते हैं मावा और ड्रायफ्रूट्स।
लजीज़ निहारी
शाम ढ़लते ही लोग छोटे-छोटे ढ़ाबों को रुख करते हैं क्योंकि यहां मिलती है स्वादिष्ट नहारी। वसे तो हर एक जगह आप इसका स्वाद ले सकते हैं लेकिन कल्लू नहारी की बात ही अलग है। और हां, इसे शाम के वक्त ही चखा जा सकता है। सुबह होते ही दुकानों पर दाल गोस्त बनना शुरु हो जाता है क्योंकि 11 बजे से लोगों की भीड़ लगने लगती है।