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वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल है कुमांऊ की रामलीला, जहां नायक नहीं गायकों के कंधों पर होती है पूरी जिम्मेदारी

कुमांऊ की रामलीला को यूनेस्को ने दुनिया का सबसे लंबा ऑपेरा घोषित किया और अब यहां की रामलीला वर्ल्ड कल्चरल हेरिटेज लिस्ट में शामिल हो चुकी है। जानेंगे इसके बारे में और खास बातें।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Thu, 03 Oct 2019 03:32 PM (IST)Updated: Thu, 03 Oct 2019 03:32 PM (IST)
वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल है कुमांऊ की रामलीला, जहां नायक नहीं गायकों के कंधों पर होती है पूरी जिम्मेदारी
वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल है कुमांऊ की रामलीला, जहां नायक नहीं गायकों के कंधों पर होती है पूरी जिम्मेदारी

कुंमाऊ की रामलीला का इतिहास एक या दो नहीं कम से कम डेढ़ सौ साल पुराना है। जो इतना खास होता है कि यूनेस्को ने इसे दुनिया का सबसे लंबा ऑपेरा घोषित किया और अब यहां की रामलीला वर्ल्ड कल्चरल हेरिटेज लिस्ट में शामिल हो चुकी है। जैसे-जैसे पीढ़ियां बढ़ती गई लोगों ने इसमें आवश्यकतानुसार नए-नए प्रयोग करते गए। जो नहीं बदला वो है मौखिक परंपरा। कहने का मतलब है कि यहां की रामलीला मंच पर नाटक द्वारा प्रस्तुत नहीं की जाती, बल्कि गाकर सुनाई जाती है। जो इसे बनाता है सबसे खास। गायन को रोचक बनाने के लिए हारमोनियम, ढोलक और तबले का इस्तेमाल किया जाता है। रामलीला में अभिनय से ज्यादा जोर गायन पर रहता है।

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गायकों के हाथ होती है रामलीला की जिम्मेदारी

कुमांऊ की रामलीला में उन कलाकारों को वरीयता दी जाती है जिन्हें संगीत और गायन का अच्छा ज्ञान हो। ज्यादातर जगहों की ही तरह यहां भी रामलीला में पुरुष ही स्त्री का भी किरदार निभाते हैं। रात की खामोशी में पहाड़ों पर गूंजते राम के भजन और गुणगान तन और मन को पावन कर देते हैं। जिसे सुनने के लिए दूर-दूर से लोगों की भीड़ उमड़ती है। राम की कथा कहने वाली इस रामलीला की एक दिलचस्प बात यह है कि इसकी शुरुआत हर रोज श्रीकृष्ण की रासलीला से होती है।

आवाज से समां बांधते कलाकार 

यहां की रामलीला का असली आकर्षण और आनंद अभिनेताओं की गायिकी से जुड़ा है। नौटंकी, नाच, जात्रा, रासलीला सारी चीज़ें इसमें शामिल हैं। एक लोकविधा होने की वजह से हर साल हर एक जगह पर रामलीला में मेकअप, मंच सज्जा, साउंड आदि में नए-नए एक्सपेरिमेंट्स होते ही रहते हैं, जो दर्शकों को हर बार कुछ नया परोसते है। एक बात जो गौर करने वाली है वो यह कि अच्छे गायकों के साथ से कम साज-सज्जा के बाद भी रामलीला की लोकप्रियता कहीं से भी कम नहीं होती। विभिन्न रसों में डूबे गीतों को जब कलाकार अपनी भरपूर भावप्रवण आवाज़ में गाते हैं, तो श्रोता-दर्शक भावविभोर हुए बिना नहीं रह पाते। प्रमुखत: भीमताली तर्ज में गाई जाने वाली यह रामलीला जहां एक ओर हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत पर आधारित है, वहीं दूसरी ओर इसमें राजस्थान की मांड जैसी लोकगायन शैली के भी तत्व शामिल हैं। 

कुमाऊं क्षेत्र में इस रामलीला में 'स्वरूप' अर्थात प्रमुख पात्र और अन्य भूमिकाएं छोटी उम्र के लोगों द्वारा ही निभाई जाती हैं, हालांकि दिल्ली, लखनऊ, मुरादाबाद, झांसी आदि जगहों पर बड़ी आयु के लोगों के सिर पर इसे सफलता पूर्वक निभाने की जिम्मेदारी होती है। वर्तमान में कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र में इस रामलीला के खेले जाने के प्रमुख स्थान अल्मोड़ा, बागेश्र्वर, नैनीताल, कालाढूंगी, पिथौरागढ़, देहरादून इत्यादि हैं। 


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