एक बार खाने के बाद भूल नहीं पाएंगे आप वर्धा के झुणका भाकर और गोरसपाक का स्वाद
महाराष्ट्र में घूमने-फिरने वाली जगहों की जितनी भरमार है उतनी है खाने-पीने की भी वैराइटी। वर्धा आकर आप यहां के जायकों को जरूर चखें। चीखे चटपटे ये स्वाद होते हैं बहुत ही लाजवाब।
वर्धा को इंद्रपुरी भी कहते हैं। साल 1866 में निर्माण हुआ इस शहर का जो कि वर्तमान में मध्य भारत में एक पर्यटन स्थल होने के साथ-साथ कपास व्यापार का एक महत्वपूर्ण केंद्र भी है। यहां आप देसी मराठी संस्कृति को देख और महसूस सकते हैं। दरअसल, यहां मराठी भाषी ज्यादा हैं पर सिंधी और गुजराती भाषियों से भी आप अपनी वर्धा यात्रा में कहीं न कहीं टकरा जाएंगे। घूमने वाली जगहों के साथ वर्धा का खानपान भी लोगों को अपनी ओर करता है आकर्षित। यहां आकर कुछ चीज़ों का स्वाद लेना बिल्कुल न मिस करें क्योंकि ये शायद ही कहीं और चखने को मिलेंगे आपको।
झुणका भाकर और गोरसपाक का स्वाद
वर्धा शहर नमकीन और मीठा पसंद करने वाले दोनों का ख्याल रखता है। जो सबसे देसी चीज मिलती है वह है-च्पूरन-पोलीच् और च्झुणका भाकरच्। नमकीन खाने वाले के लिए झुणका भाकर खास है। झुणका, राई-जीरा के फोरन के साथ लहसुन-मिर्च के पेस्ट से तैयार गीली सी बेसन की भुजिया होता है जो बाजरा, ज्वार या मक्के की भाकर (रोटी) के साथ खाई जाती है। पूरन पोली के अंदर चने की दाल और गुड़ से तैयार खाद्य-पदार्थ भरा जाता है। फिर घी दे देकर धीमी आंच पर उसे पकाया जाता है। यदि एक खा लें तो लंबे समय तक भूख नहीं लगती। पूरन पोली को वर्धा से लौटते समय पैक भी करा सकते हैं क्योंकि यह 2-3 दिन तक खराब नहीं होता है। और हां अपने साथ गोरसपाक भी जरूर ले जाएं। यह एक ऐसा बिस्किट है जो सिर्फ वर्धा में ही मिलता है। शुद्ध घी से कुटीर उद्योग में तैयार होता है।
कैसे पहुंचे?
वर्धा भारत के सभी प्रमुख शहरों से सड़क, रेल एवं हवाई यात्रा (वाया-नागपुर) से जुड़ा हुआ है। हवाई मार्ग से जाने के लिए नागपुर उतरना होगा। नागपुर से 70 किलोमीटर दूरी पर बसे वर्धा तक बस/कार द्वारा लगभग डेढ़ घंटे में पहुँचा जा सकता है। वर्धा में दो रेलवे स्टेशन है। एक वर्धा और दूसरा सेवाग्राम। दोनों ही स्टेशनों से कैब और ऑटो आसानी से मिल जाते हैं।