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यहां की हर एक कशीदाकारी हैं अलग, बिना इनकी शॉपिंग किए आपकी कच्छ यात्रा है अधूरी

कच्छ के स्थानीय लोग कशीदाकारी में पारंगत है और इनकी कारीगरी देश-विदेश में मशहूर है। तो अगर आप यहां आएं तो इनकी शॉपिंग जरूर करें क्योंकि इसके बिना आपकी यात्रा है अधूरी।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Tue, 17 Mar 2020 10:25 AM (IST)Updated: Tue, 17 Mar 2020 10:25 AM (IST)
यहां की हर एक कशीदाकारी हैं अलग, बिना इनकी शॉपिंग किए आपकी कच्छ यात्रा है अधूरी
यहां की हर एक कशीदाकारी हैं अलग, बिना इनकी शॉपिंग किए आपकी कच्छ यात्रा है अधूरी

कच्छ के आदिम समाज और संस्कृति को गौर से समझें तो आप पाएंगे उनके हुनर बाहर से देखने पर एक जैसे दिखते हैं, लेकिन सबकी शैली अलग है। जैसे सिंध और कच्छ की सफ, खर्क, पारंपरिक रबारी, गार्सिया और मुतवा। दरअसल, कच्छ में प्रवेश करने के बाद आप देखेंगे कि यहां के स्थानीय लोग कशीदाकारी में पारंगत हैं। एक से बढ़कर एक कशीदाकारी, जो दिलों में उनके लिए सम्मान जगाती है और प्यार भी। 

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सफ कढ़ाई

'सफ' का अर्थ शाब्दिक रूप से पंक्ति होता है। एक पंक्ति में कपड़े पर बूटे उकेरने के कारण इस कला को सफ कहा जाता है। दरअसल, सफ त्रिकोण पर आधारित एक श्रमसाध्य कढ़ाई है। इसकी गिनती ताना पर की जाती है। इस कला में कपड़े पर मोटिफ कभी नहीं खींचा जाता है। दरअसल, खाका कारीगर के दिमाग में होता है। प्रत्येक कारीगर उसके डिजाइन की कल्पना करता है, फिर उसे पीछे से गिनता है- उल्टा! इस प्रकार कुशल काम के लिए ज्यामिति और गहरी दृष्टि की समझ की आवश्यकता होती है। 

खर्क कढ़ाई

वहीं, खर्क एक ज्यामितीय शैली है। इस शैली में कारीगर काले वर्गों की रूपरेखा के साथ ज्यामितीय पैटर्न की संरचना का काम करता है, फिर रिक्त स्थान में साटन सिलाई के बैंड के साथ भरता है जो सामने से ताने और बाने के साथ काम किया जाता है। खर्क कढ़ाई पूरे कपड़े को भरती है।

पाको कढ़ाई

एक अन्य शैली है पाको। पाको का अर्थ शाब्दिक रूप से ठोस होता है। यह एक तंग वर्ग श्रृंखला और डबल बटनहोल सिलाई-कढ़ाई है, जो अक्सर काले रंग के साटन सिलाई की रूपरेखा के साथ होती है। वहीं, खानाबदोश रबारियों द्वारा की जाने वाली रबारी कढ़ाई अद्वितीय कारागरी है। रबारी कढ़ाई में दर्पण का उपयोग किया जाता है।

एप्लीक और पैचवर्क

कच्छ में एप्लीक और पैचवर्क परंपराएं अधिकांश समुदायों में मौजूद हैं। यह काम छोटी लड़कियों और युवा महिलाओं द्वारा किया जाता है। जो महिलाएं बारीक कढ़ाई नहीं कर पातीं, अपने कौशल का उपयोग बचे हुए कपड़ों से एप्लीक और पैचवर्क के कपड़े तैयार करने में करती हैं। यह एक परंपरा है जो मूल रूप से पुराने कपड़ों का उपयोग करने के लिए तैयार की गई थी।

यह शॉपिंग खास है

कच्छ आने के बाद आप शॉपिंग न करें, तो यह यात्रा अधूरी रहेगी। इसके लिए आपको थोड़ी मशक्कत करनी होगी। भुज से सिर्फ 25 किमी. उत्तर में खवाड़ा हवाई अड्डे की सड़क से लगे सुमसर शेख गांव के बीचोंबीच कला रक्षा केंद्र स्थित है। यहां आप आदिवासी महिलाओं को न सिर्फ कशीदाकारी करते देख सकते हैं, बल्कि खरीदारी भी कर सकते हैं। कला रक्षा केंद्र एक नो प्रॉफिट आर्गेनाइजेशन है जो कि कच्छ के कलाकारों को उनकी मेहनत का सही मोल दिलवाने और कच्छ की पारंपरिक कलाओं को बचाने के लिए काम करता है।


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