देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है विंध्याचल, इस मंदिर आकर करें देवी के सारे विग्रह के दर्शन
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में मां विंध्यवासिनी के मंदिर में सालभर भक्तों की तादाद देखने को मिलती है। ऐसा माना जाात है कि सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद को मां पूरी करती हैं।
विंध्य पर्वत श्रृंखला के मध्य पतित पावनी गंगा के कंठ पर विराजमान मां विंध्यवासिनी देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केन्द्र है। देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है विंध्याचल। सबसे खास बात यह है कि यहां तीन किलोमीटर के दायरे में तीन प्रमुख देवियां विराजमान हैं। ऐसा माना जाता है कि तीनों देवियों के दर्शन किए बिना विंध्याचल की यात्रा अधूरी मानी जाती है। तीनों के केन्द्र में हैं मां विंध्यवासिनी। यहां निकट ही कालीखोह पहाड़ी पर महाकाली तथा अष्टभुजा पहाड़ी पर अष्टभुजी देवी विराजमान हैं।
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के मां विंध्यवासिनी के मंदिर में चैत्र नवरात्र के मौके पर यहां लगने वाले विश्व प्रसिद्ध मेले में लाखों श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर आते हैं और ऐसा कहा जाता है कि यहां आने वाला कोई भी व्यक्ति खाली हाथ लौटकर नहीं जाता और मां विंध्यवासिनी हर ज़ायज मनोकामना जरूर पूरी करती हैं।
त्रिकोण यंत्र पर स्थित विंध्याचल निवासिनी देवी लोकहिताय, महालक्ष्मी, महाकाली तथा महासरस्वती का रूप धारण करती हैं। विंध्यवासिनी देवी विंध्य पर्वत पर स्थित मधु तथा कैटभ नामक असुरों का नाश करने वाली भगवती यंत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं। कहा जाता है कि जो मनुष्य इस स्थान पर तप करता है, उसे जरूर सिद्धि प्राप्त होती है। विविध संप्रदाय के उपासकों को मनवांछित फल देने वाली मां विंध्यवासिनी देवी अपने अलौकिक प्रकाश के साथ यहां नित्य विराजमान रहती हैं। ऐसी मान्यता है कि सृष्टि आरंभ होने से पूर्व और प्रलय के बाद भी इस क्षेत्र का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हो सकता। यहां पर संकल्प मात्र से उपासकों को सिद्धि प्राप्त होती है। इस कारण यह क्षेत्र सिद्ध पीठ के रूप में जाना जाता है। आदि शक्ति की शाश्वत लीला भूमि मां विंध्यवासिनी के धाम में पूरे साल दर्शनार्थियों का आना-जाना लगा रहता है। चैत्र व शारदीय नवरात्र के अवसर पर यहां देश के कोने-कोने से लोगों की भीड़ जुटती है।
देवी के सारे विग्रह के यहां कर सकते हैं दर्शन
इस महाशक्तिपीठ में वैदिक तथा वाम मार्ग विधि से पूजन होता है। शास्त्रों में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि आदिशक्ति देवी कहीं भी पूर्णरूप में विराजमान नहीं हैं, विंध्याचल ही ऐसा स्थान है जहां देवी के पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं। शास्त्रों के अनुसार, अन्य शक्तिपीठों में देवी के अलग-अलग अंगों की प्रतीक रूप में पूजा होती है। लगभग सभी पुराणों के विंध्य महात्म्य में इस बात का उल्लेख है कि 51 शक्तिपीठों में मां विंध्यवासिनी ही पूर्णपीठ है।
मंदिर का रोचक इतिहास
ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी ने सबसे पहले अपने मन से मनु और शतरूपा को उत्पन्न किया था। विवाह के बाद मनु ने अपने हाथों से देवी की मूर्ति बनाकर लगभग 100 सालों तक तपस्या की। उनकी तपस्या से संतुष्ट होकर देवी ने उन्हें निष्कण्टक राज्य, वंश-वृद्धि एवं परम पद पाने का आशीर्वाद दिया। वर देने के बाद महादेवी विंध्याचल पर्वत पर चली गई। तब से विंध्यवासिनी की पूजा होने लगी।
कैसे पहुंचे
हवाई मार्ग
वाराणसी में लाल बहादुर शास्त्री यहां का निकटतम एय़रपोर्ट है जहां से विंध्याचल की दूरी 72 किलोमीटर है।
रेल मार्ग
विंध्याचल नज़दीकी रेलवे स्टेशन है। लेकिन बहुत सारी ट्रेनें यहां नहीं रूकती तो बेहतर होगा कि मिर्जापुर तक की ट्रेन लें। यहां से विंध्याचल की दूरी लगभग 9 किमी है।
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