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मध्य प्रदेश की खास संस्कृति व धरोहरों को संजोए बुरहानपुर है बहुत ही खास, यहां सैर का बनाएं प्लान

बुरहानपुर जिले में करीब 158 धरोहरें गिनाई जाती हैं। तो इन्हें देखने और इनके इतिहास से रूबरू होने के लिए यहां घूमने का बनाएं प्लान।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Sun, 15 Mar 2020 07:00 AM (IST)Updated: Sun, 15 Mar 2020 08:48 AM (IST)
मध्य प्रदेश की खास संस्कृति व धरोहरों को संजोए बुरहानपुर है बहुत ही खास, यहां सैर का बनाएं प्लान
मध्य प्रदेश की खास संस्कृति व धरोहरों को संजोए बुरहानपुर है बहुत ही खास, यहां सैर का बनाएं प्लान

विरासतों की भूमि रही है बुरहानपुर, जहां की यात्रा निश्चित ही आपके लिए अनोखा अनुभव रहेगा। मुगल बादशाह शाहजहां की प्रिय बेगम मुमताज महल का देहांत भी यहीं हुआ था। माना जाता है कि यहां के काले ताजमहल से प्रेरणा लेते हुए ही आगरा में ताजमहल का निर्माण कराया गया। यहां के इतिहास से रूबरू होने के लिए बड़ी संख्या में देश-विदेश के पर्यटक आते हैं। बुरहानपुर जिले में करीब 158 धरोहरें गिनाई जाती हैं, हालांकि पुरातत्व व पर्यटन की सूची में अभी तक इनमें से कुछ ही सूचीबद्ध हो सकी हैं। चलते हैं आज मध्य प्रदेश के इस अनूठे शहर के सफर पर...

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नागझिरी घाट

भगवान श्रीराम ने अपने वनवास काल में ताप्ती तट के जितने क्षेत्र में भ्रमण किया, उसका स्कंद पुराण के ताप्ती महात्म्य में उल्लेख है। ताप्ती नदी तट के उतने प्रदेश को रामक्षेत्र कहा गया हैं। माना जाता है कि यहां पर श्रीराम ने अपने पिता महाराज दशरथ का पिंडदान भी किया और शिवलिंग की स्थापना भी की। यह स्थान वर्तमान में नागझिरी घाट कहलाता है। इस घाट पर 12 शिव मंदिर हैं, जिन्हें द्वादश ज्योतिर्लिंग का स्वरूप माना जाता है। यहां श्रीराम झरोखा मंदिर में श्रीराम, लक्ष्मण, जानकी की प्रतिमा वनवासी रूप में विद्यमान है। यह स्थान पुरातन समय में संतों, महात्माओं को खूब आकर्षित करता रहा। उन्होंने इसी स्थान को अपनी साधनास्थली बनाया।

अतीत की समृद्ध जैन नगरी

प्राचीन समय में यह शहर जैन नगरी के रूप में भी जाना जाता था, जहां काष्ठकला की अनुपम कारीगरी से सुसज्जित अनेक जैन मंदिर विद्यमान थे। इन्ही में एक भगवान प्रार्श्वनाथ का मंदिर अपनी उत्कृष्टता के लिए प्रसिद्ध था। 1857 ई. में घटित भयानक अग्निकांड में यह मंदिर पूरी तरह जल गया था। इसके पश्चात यहां नए मंदिर का निर्माण किया गया। मंदिर के प्रवेश द्वारा पर संगमरमर पर बहुत ही कलात्मक नक्काशी उकेरी गई है। मंदिर के भीतर छह खंभे हैं। इन पर बेलबूटे उत्कीर्ण हैं। यहां चार तीर्थंकरों की प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हैं। दूसरे हिस्से में देवी लक्ष्मी व सरस्वती की मूर्तियां हैं। अंदर जाने वाला मार्ग तीन प्रवेश द्वारों से युक्त है। मंदिर के सभी मंडपों की छत पर कांच की अद्धितीय चित्रकारी दर्शकों का मन मोहन लेती है। इसमें भगवान शांतिनाथ के 12 चित्रों के साथ 24 जैन तीर्थकरों के चित्रों को उकेरा गया है। मंदिर के बाहरी हिस्से में एक और मंदिर निर्मित है, जो लगभग 60 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इसके मध्य भाग में भगवान शांतिनाथ की चतुर्मुखी प्रतिमा स्?थित है।

सिख गुरुओं ने भी रखे कदम

बुरहानपुर शहर सिख समाज का भी धार्मिक पर्यटन स्थल रहा है। यहां पर सिखों के प्रथम श्री गुरु नानकदेव जी महाराज एवं दसवें श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज पधारे थे। कुछ समय वे यहां पर रहे और धर्म-ज्ञान की अलख जगाई। आज भी यहां पर राजघाट और लोधीपुरा में बड़ा गुरुद्वारा स्थित है, जहां प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु मत्था टेकने आते हैं। यह गुरुद्धारा अमृतसर से नांदेड़ के बीच सिख समाज का एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थान है। यहां सिख समाज के 10वें गुरु गोविंद सिंह जी महाराज ने सन् 1708 में पंजाब से नांदेड़ गमन के दौरान छह माह नौ दिन निवास कर अपने श्रीमुख से उच्चारित और संत हठेसिंहजी से लिखवाए गए गुरु ग्रंथ साहेब पर आपने हस्ताक्षर कर इसे अमर बना दिया। यहां श्री गुरूगंथ साहेब की सुनहरी बीड होने से यह स्थल अत्यंत पवित्र हो गया। 

बोहरा समाज की दरगाह-ए-हकीमी

प्राचीन ऐतिहासिक नगर बुरहानपुर से लगकर लोधीपुरा गांव है, जो लोधी खानदान द्वारा बसाया गया बताया जाता है। इसे शाहदरा भी कहा जाता है। यहां बोहरा समाज का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल दरगाह-ए- हकीमी भी मौजूद है। यहां पर प्रतिवर्ष हजारों जायरीन आकर जियारत करते हैं।


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