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Baisakhi 2019: जानें क्यों और कैसे मनाया जाता है बैसाखी का पर्व

Baisakhi 2019 बैसाखी नए साल की शुरूआत का पर्व होता है। जिसे भारत के अलग-अलग जगहों पर कई तरह के रीति-रिवाज़ों के साथ बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। जानेंगे और क्या होता है खास इसमें

By Priyanka SinghEdited By: Published: Wed, 10 Apr 2019 11:22 AM (IST)Updated: Thu, 11 Apr 2019 09:57 AM (IST)
Baisakhi 2019: जानें क्यों और कैसे मनाया जाता है बैसाखी का पर्व
Baisakhi 2019: जानें क्यों और कैसे मनाया जाता है बैसाखी का पर्व

बैसाखी हर्ष और उल्लास का पर्व है। इस दिन वैसाख माह की मेष संक्रांति भी होती है। पंजाब में विशेष रूप से मनाया जाने वाला यह पर्व भारत के अन्य राज्यों में भी मनाया जाता है। इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। 13 अप्रैल 1699 को 10वें गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। सिखों के लिए ही नहीं हिंदुओं के लिए भी ये त्योहार खास महत्व रखता है।  
अप्रैल माह में क्यों मनाते हैं बैसाखी
अप्रैल माह में रबी फसल कटकर घर आती है। इसे बेचकर किसान धन कमाते हैं। इसलिए भी बैसाखी का यह पर्व उल्लास का पर्व माना गया है। वैसे तो हर साल बैसाखी के दिन पंजाब में कई मेले लगते हैं। लेकिन जब बैसाखी में कुंभ का मेला भी हो तो इस दिन स्नान करने का महत्व और भी बढ़ जाता है।
बैसाखी और खालसा पंथ का संबंध
बैसाखी के दिन ही सिख गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। और आनंदपुर साहब के गुरुद्वारे में पांच प्यारों से वैशाखी पर्व पर ही बलिदान के लिए आह्वान किया गया था। सिख धर्म में वैशाखी को बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार माना गया है।

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ऐसे मनाते हैं बैसाखी
बैसाखी के दिन रात होते ही आग जलाकर उसके चारों तरफ एकत्र होते हैं और फसल कटने के बाद आए धन की खुशियां मनाते हैं। नए अन्न को अग्नि को समर्पित किया जाता है और पंजाब का परंपरागत नृत्य भांगड़ा और गिद्दा किया जाता है। गुरुद्वारों में अरदास के लिए श्रद्धालु जाते हैं। आनंदपुर साहिब में, जहां खालसा पंथ की नींव रखी गई थी, विशेष अरदास और पूजा होती है। गुरुद्वारों में गुरु ग्रंथ साहब को समारोह पूर्वक बाहर लाकर दूध और जल से प्रतीक रूप से स्नान करवा कर गुरु ग्रंथ साहिब को तख्त पर प्रतिष्ठित किया जाता है। इसके बाद पंच प्यारे 'पंचबानी' गायन करते हैं। अरदास के बाद गुरु जी को कड़ा प्रसाद का भोग लगाया जाता है। प्रसाद भोग लगने के बाद सब भक्त 'गुरु जी के लंगर' में भोजन करते हैं।

पद्म पुराण में कहा गया है कि वैसाख माह में प्रात: स्‍नान का महत्‍व अश्‍वमेध यज्ञ के समान है। वैसाख शुक्‍ल सप्‍तमी को महर्षि जह्नु ने अपने दक्षिण कर्ण से गंगाजी को बाहर निकाला था। इसीलिए गंगा का एक नाम जाह्नवी भी है। अत: सप्‍तमी को गंगाजी के पूजन का विधान है।

भगवान बद्रीनाथ की यात्रा की शुरुआत भी इसी माह होती है। वैसाखी बंगाल में 'पैला (पीला) बैसाख' नाम से, दक्षिण में 'बिशु' नाम से और केरल, तमिलनाडु, असम में 'बिहू' के नाम से मनाया जाता है।

सिख समाज वैसाखी के त्योहार को सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं। पंजाब और हरियाणा के किसान सर्दियों की फसल काट लेने के बाद नए साल की खुशियां मनाते हैं। इसीलिए यह त्‍योहार पंजाब और आसपास के प्रदेशों का सबसे बड़ा त्योहार और खरीफ की फसल के पकने की खुशी का प्रतीक बताया गया है।

विशेषज्ञों का मानना है कि हिन्दू पंचांग के अनुसार गुरु गोविन्द सिंह ने वैसाख माह की षष्ठी तिथि के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसी दिन मकर संक्रांति भी थी। इसी कारण से वैसाखी का पर्व सूर्य की तिथि के अनुसार मनाया जाने लगा। प्रत्येक 36 साल बाद भारतीय चन्द्र गणना के अनुसार बैसाखी 14 अप्रैल को पड़ती है।

बैसाखी का त्योहार बलिदान का त्योहार है। मुग़ल शासक औरंगज़ेब ने तेगबहादुर सिंह को दिल्ली के चांदनी चौक पर शहीद कर दिया था, तभी गुरु गोविंदसिंह ने अपने अनुयायियों को संगठित कर 'खालसा पंथ' की स्थापना की थी।

कहां-कहां मनाते हैं बैसाखी पर्व 

वैसे पंजाब ही नहीं, हरियाणा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भी वैशाखी की धूम रहती है। इसके साथ ही जहां-जहां सिख धर्म पल्लवित है वहां बैसाखी जरूर मनाई जाती है। इस दिन तीर्थों में स्नान का महत्व भी है।


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