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बच्चों में सुसाइड की क्या हैं वजहें, जानें एक्सपर्ट से, इस ख्याल को कैसे रोक सकते हैं माता-पिता

पिछले कुछ सालों में बच्चों में सुसाइड के मामले बढ़े हैं। ऐसा सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर में हुआ है। कोविड-19 की वजह से लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ा है लेकिन इसके अलावा छोटे बच्चे किन समस्याओं और चुनौतियों से गुजरते हैं यह भी जानना जरूरी है।

By Saloni UpadhyayEdited By: Saloni UpadhyayPublished: Sun, 28 May 2023 02:59 PM (IST)Updated: Mon, 29 May 2023 01:39 PM (IST)
बच्चों में सुसाइड की क्या हैं वजहें, जानें एक्सपर्ट से, इस ख्याल को कैसे रोक सकते हैं माता-पिता
जानें कम उम्र में बच्चों के सुसाइड के पीछे क्या कारण हो सकते हैं?

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। दुनियाभर में आत्महत्या के आंकड़े साल दर साल बढ़ते जा रहे हैं। भारत की बात करें, तो आंकड़े आपको परेशान कर सकते हैं। यहां 15 से 24 साल के बच्चों में आत्महत्या की दर सबसे अधिक है। देश में रिकॉर्ड की गई आत्महत्याओं में से 35% इसी आयु वर्ग में होती हैं। सरकार के 2020 के डाटा को देखें, तो भारत में हर दिन औसतन 31 बच्चों ने अपनी जान ले ली। एक्सपर्ट्स काफी हद तक इसकी वजह कोविड-19 महामारी को मानते हैं क्योंकि इसकी वजह से बच्चों में मनोवैज्ञानिक ट्रॉमा काफी हद तक बढ़ गया।

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नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो डाटा के अनुसार, साल 2020 में कुल 11,396 बच्चों की मौत का कारण आत्महत्या रही। 2019 में यही आंकड़ा 9,613 था, यानी एक साल में 18 फीसदी बढ़ गया और 2018 (9,413) की तुलना में 21 प्रतिशत बढ़ गया। पारिवारिक समस्याएं (4,006), प्रेम-प्रसंग (1,337) और बीमारी (1,327), 18 साल से कम उम्र के बच्चों में आत्महत्या के प्रमुख कारण थे।

अमेरिका में हाल ही में हुए एक सर्वे बताता है कि स्कूल जाने वाले 10 में से 5 बच्चे अक्सर निराशा से घिरे रहते हैं या फिर उन्हें लगता है कि वे जिंदगी में कुछ कर नहीं पाएंगे। जबकि 5 में से 1 बच्चे ने माना कि उन्हें आत्महत्या के ख्याल आते हैं।

अगर आप भी इन्हीं वजहों से अपने बच्चे को लेकर चिंतित हैं, तो आप अकेले नहीं हैं। इसमें कोई शक नहीं कि यह आंकड़े डराने वाले हैं और परेशान कर देने वाले हैं, लेकिन इस समस्या को समझकर, इससे लड़कर दूर करना ही एक उपाय है।

जब हम बात करते हैं छोटे बच्चों की, तो सवाल यह उठता है कि आखिर उनके मन में ऐसे ख्याल कैसे आ जाते हैं, इनके पीछे वजहें क्या हो सकती हैं और हम अपने बच्चों को इस कदम को उठाने से कैसे रोक सकते हैं। इन्हीं सवालों का जवाब समझने के लिए जागरण ने बात की मनस्थली की संस्थापक-निदेशक और वरिष्ठ मनोचिकित्सक, डॉ. ज्योति कपूर से।

छोटे बच्चों में आत्महत्या की क्या वजह हो सकती हैं?

डॉ. ज्योति कपूर ने बताया कि वयस्कों की तरह ही बच्चे भी कई तरह की चुनौतियों और दिक्कतों से गुजरते हैं, जो निराशा की भावनाओं को जन्म देते हैं और गंभीर मामलों में, आत्महत्या के विचारों में योगदान भी कर सकते हैं। एक बच्चे में इन आत्मघाती विचारों की वजह कई हो सकती हैं और इन्हें समझना भी आसान नहीं है। फिर भी नीचे बताए गए कारण आमतौर पर देखे जाते हैं।

1. मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी दिक्कतें

डिप्रेशन, एंग्जाइटी और दूसरी कई तरह की मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों से बच्चे भी जूझते हैं। इन्हीं की वजह से आत्महत्या के ख्यालों का खतरा भी बढ़ जाता है।

2. डराना-धमकाना

इसे अंग्रेजी में बुलीइंग कहते हैं, जो स्कूलों के साथ सोशल मीडिया और दोस्तों के बीच काफी आम है। हालांकि, किसी एक बच्चे को इसका टारगेट बनाने से उसके आत्मविश्वास और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है। वे स्कूल जाने से बचने लगते हैं या फिर दूसरे बच्चों के साथ खेलना नहीं चाहते और अकेले वक्त बिताना पसंद करते हैं। ऐसी स्थितियां भी छोटे बच्चों के मन में आत्महत्या के ख्यालों की वजहें बनती हैं।

3. पारिवारिक समस्याएं

तलाक, घरेलू हिंसा, या फिर मां-बाप द्वारा ध्यान न दिया जाना जैसी पारिवारिक दिक्कतों से भी बच्चों की भावनात्मक स्थिति पर असर पड़ सकता है, जिससे वे हमेशा निराश रहते हैं और परेशान होने की वजह से उनके मन में आत्मघाती विचार आने लगते हैं।

4. पढ़ाई को लेकर दबाव

स्कूल-कॉलेज में लगातार अच्छा परफॉर्म करने का प्रेशर सभी बच्चे झेलते हैं, फिर चाहे दबाव मां-बाप की तरफ से हो, टीचर्स या फिर सामाजिक। इस दबाव के चलते बच्चे मानसिक तौर पर इस कदर परेशान हो जाते हैं कि उन्हें आत्महत्या ही इकलौता रास्ता नजर आता है।

अगर किसी पैरेंट को लगता है कि उनका बच्चा निराशा से घिरा है और संदेह है कि वह आत्मघाती विचारों से जूझ रहा है, तो उन्हें ऐसे में फौरन एक्शन लेना चाहिए।

1. खुलकर बात करें

बतौर पेरेंट्स अपने बच्चे से खुलकर बात करें। उन्हें ऐसा महसूस करवाएं कि घर उनकी सुरक्षित जगह है और वह बिना किसी जजमेंट के अपने दिल की बात खुलकर आप से कह सकता है। उन्हें अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करें और ध्यान रखें कि उनकी बात बिना किसी रोक-टोक या खारिज किए बिना ध्यान से सुनें।

2. प्रोफेशनल मदद लें

कई बार बच्चे अपने मां-बाप से खुलकर बात करने में कतराते हैं। ऐसे में आप थेरेपिस्ट, साइकोलॉजिस्ट या फिर काउंसलर जैसे किसी मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल की मदद ले सकते हैं, जिनके पास बच्चों के साथ काम करने का अनुभव हो। वह आपके बच्चों को उचित सहायता देने के साथ उनका सही मार्गदर्शन करने में मदद कर पाएंगे।

3. बच्चों की जिंदगी में शामिल रहें

अपने बच्चों की जिंदगी में दिलचस्पी दिखाएं और एक्टिव तरीके से शामिल रहें। उनके स्कूल के इवेंट्स का हिस्सा बनें, उनकी हॉबीज को बढ़ावा दें और साथ में क्वालिटी समय बिताएं। बच्चे के साथ एक खास रिश्ता बनाएं, जिससे उन्हें आपका सपोर्ट और उनके प्रति आपकी फिक्र का एहसास हो।

4. खुद को भी इस बारे में शिक्षित करें

आत्मघाती विचार के चेतावनी संकेतों और इससे जुड़े जोखिम कारकों के बारे में जानें। इस टॉपिक को समझने से आपको बच्चे में इससे जुड़े संकेतों को पहचानने में मदद मिलेगी, जिससे आप समय पर सही एक्शन ले पाएंगे।

5. सुरक्षित वातावरण बनाएं

सुनिश्चित करें कि आपके घर का वातावरण संभावित खतरों से मुक्त हो। बंदूक, दवाइयां और दूसरे अन्य नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों को कहीं सुरक्षित रूप से बंद करके रखें। साइबर बुलीइंग या हानिकारक कंटेन्ट के संपर्क में आने से रोकने के लिए अपने बच्चे के इंटरनेट और सोशल मीडिया के उपयोग पर नजर रखें।

6. समझाएं कि समस्या से कैसे जूंझा जाता है

तनाव और भावना को कैसे हेल्दी तरीके से मैनेज किया जा सकता है, यह अपने बच्चे को जरूर सिखाएं। इस तरह की मानसिक स्थितियों को मैनेज करने का सबसे अच्छा तरीका है खुद को फिजिकल एक्टिविटी में बिजी कर लेना, या फिर हॉबीज में मन लगाना, खुद को शांत करने की टेक्नीक से मदद लेना या फिर दोस्तों और परिवार से अपने दिल की बात शेयर करना, ताकि वे आपको मुश्किल समय में सपोर्ट कर सकें।


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