Year Ender 2022: कोरोना महामारी के दो साल ने बदल दी रिश्तों की परिभाषा
Year Ender 2022 कोरोना की वजह से लोगों के रोजगार छिन गए भारी मात्रा में आर्थिक क्षति हुई लेकिन परिवारिक रिश्तों को मजबूती मिली। फैमिली के प्रति लोगों की सोच में काफी बदलाव आया। जिससे हर रिश्ते की अहमियत समझ आई।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Year Ender 2022: कोविड-19 महामारी के बाद रिश्तों की परिभाषा ही बदल गई। एक वायरस ने हर रिश्ते को बदल दिया। ''हंसते-हंसते कट जाए रस्ते जिंदगी यूं ही चलती रहे, खुशी रहे या गम बदलेंगे ना हम, दुनिया चाहे बदलती रहे....! ये गाना रिश्तों की अहमियत को बयां करता है।
काम या पढ़ाई की वजह से हम जिन परिवार वालों से दूर रहते थे, कोरोना के दौरान उनके साथ ज्यादा वक्त बिताने लगे। कोविड-19 को मात देने के लिए लोग घर की चार दीवारी में कैद हो गए। परिवार में आपसी सहयोग और एक-दूसरे के प्रति प्रेम की भावना बढ़ी।
हालांकि, कोरोना के दौरान रिश्तों में दूरियां भी आईं लेकिन टूटे हुए रिश्ते बनने भी लगे। आइए जानते हैं, कोरोना ने हमें रिश्तों की कैसे अहमियत सिखाई।
पति-पत्नी के बीच के रिश्ते और मज़बूत हुए
कोरोना में लगे लॉकडाउन की वजह से सभी लोगों को घर से ही काम करना पड़ा, जिससे पति-पत्नी जैसे रिश्ते मज़बूत हुए। खासकर वर्किंग पार्टनर्स के बीच, दोनों ने घर पर साथ में ऑफिस का काम भी किया और घर का भी। जहां पहले पत्नियां ऑफिस के साथ घर का भी काम संभाला करती थी, वहीं कोविड के दौरान पतियों ने भी उनकी मदद करनी शुरू की।
कपल्स को एक-दूसरे के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताने को मिला। जिससे उनके बीच कई गलतफहमियां दूर हुई और साथ ही कठिन समय में एक-दूसरे का साथ भी मिला। दरअसल, दोनों पार्टनर्स के बीच ज्यादा बातचीत होने लगी और अच्छे संवाद रिश्तों में मरहम लगाने का काम करते है।
बच्चों को पेरेंट्स के साथ समय बिताने का खूब समय मिला
कोराना की वजह से वर्क फॉर्म होम का चलन शुरू हुआ तो वहीं बच्चों का स्कूल-कॉलेज और ट्यूशन ऑनलाइन क्लास में सिमट कर रह गया। ऐसे में उन्हें पेरेंट्स के साथ खूब समय बिताने को मिला। घर पर रहकर उन्होंने जिंदगी से जुड़ी कई अहम बातें और स्किल्स भी सिखीं। पहले जहां बच्चे स्कूल जाते थे, पार्क में दोस्तों के साथ खेलते थे, वहीं कोरोना के दौरान बच्चे घर पर रहने पर मजबूर हो गए। उन्होंने ज़िंदगी में आए इस बड़े बदलाव से एडजस्ट करना सीख लिया।
कोरोना के दौरान बच्चे अपने फ्रेंड्स से दूर हुए, लेकिन घर पर उन्हें दोस्त के रूप में पेरेंट्स मिले। मां-बाप को भी अपने बच्चों के साथ ज़्यादा समय बिताने का मौका मिला, जो उन्हें काम के चलते नहीं मिल पा रहा था। लॉकडाउन में बच्चों ने भी माता-पिता की घर के कामों में मदद की। कोविड महामारी ने बच्चों को ज़िम्मेदार बनाया, उन्होंने रिश्तों, सेहत और पैसों की अहमियत को समझा।
लोगों ने हर पल को एंजॉय करना सीखा
इस महामारी ने सिखाया कि जिंदगी का एक-एक पल हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है। घर में कैद होने के साथ जानलेवा बीमारी के डर ने लोगों को जिंदगी की कीमत समझाई। त्यौहार या फंक्शन के दौरान भी चारदीवारी में कैद रहकर इन पलों को एंजॉय किया। लोगों को अपने करीबियों की कमी तो खली, लेकिन फिर भी एडजस्ट करना सीखा।
फैमिली के साथ मिलकर महामारी का सामना किया
अचानक लगे लॉकडाउन की वजह से कई लोगों ने अपनी आमदनी खोई, तो कई लोग अपने परिवार से दूर हो गए। कोविड की दूसरी लहर ने लाखों लोगों की जान ले ली। इस तरह के डरावने माहौल का हम सभी ने परिवार के साथ मिलकर सामना किया। उनके बीच इमोशनल अटैचमेंट और बढ़ा। सीमित संसाधनों में रहकर मुश्किल दिनों को आसान बनाया। लोगों को ये बात समझ में आई कि अगर परिवार का साथ हो, तो कठिन से कठिन हालात को भी मात दी जा सकती है। जिंदगी जीने के लिए ज्यादा चीज़ों की जरूरत नहीं होती, एक-दूसरे का साथ ज्यादा मायने रखता है।
कोरोना ने हमें दर्द तो दिया लेकिन इसके साथ दर्द पर मरहम लगाना भी सीखा दिया।
Picture Courtesy: Freepik