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World Post Day 2020: देश के बाहर पहला भारतीय डाकघर 1983 में अंटार्कटिका में हुआ था स्थापित, जानें ऐसे ही कुछ मजेदार तथ्य

दुनियाभर में 9 अक्टबूर को डाक सेवाओं की उपयोगिता संभावनाओं को देखते हुए वैश्विक डाक संघ की ओर विश्व डाक दिवस मनाया जात है। भारतीय डाक सेवना पिछले 165 साल से हिंदुस्तान को दुनियाभर से जोड़े हुए हैं।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Fri, 09 Oct 2020 01:44 PM (IST)Updated: Fri, 09 Oct 2020 01:44 PM (IST)
World Post Day 2020: देश के बाहर पहला भारतीय डाकघर 1983 में अंटार्कटिका में हुआ था स्थापित, जानें ऐसे ही कुछ मजेदार तथ्य
भारतीय डाक सेवा से जुड़ी कुछ मजेदार तथ्य

आज से कुछ सालों पहले तक जब खाकी ड्रेस पहने डाकिया या पोस्टमैन की साइकिल आपके घर की ओर मुड़ भी जाती थी, तो घर वालों के चेहेर पर मुस्कान यह सोचकर आ जाती थी कि किसी प्रियजन का कोई संदेश आया है। भले ही आज पोस्ट या डाक समय के साथ एक बुजुर्ग की भांति वर्तमान परिवेश से बाहर हो गया है। लेकिन आज के युवाओं के लिए इस बारे में जानना उतना ही जरूरी है, जितना अपने घर के बुजुर्गो का प्यार, तो आइए World Post Day के मौके पर जानते हैं कुछ रोचक और मज़ेदार तथ्य।

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दुनिया में ऐसे आई चिट्ठी

पिलर बॉक्स में चिट्ठियां

प्राचीन ग्रीस और मिस्त्र में जहां घुड़सवार संदेशों को ले जाया करते थे। वहीं अन्य साम्राज्यों में कबूरतों (होमिंग पिजन) द्वारा यह कार्य होता था। पत्र भेजने का यह तरीका लंबे समय तक चलता रहा। जब तक आधिकारिक रूप से डाक व्यवस्था समाज में नहीं आई।

31 जुलाई 1635, ब्रिटेन के शासक हेनरी सप्तम द्वारा स्थापित रॉयल मेल जनता को सौंपा गया। उस जमाने में लोग चिट्ठियां 'पिलर बॉक्स' में डाला करते थे।

1842 में पोलैंड ने सार्वजनिक पोस्ट बॉक्स की शुरुआत की। तब खत इन डिब्बों में आराम फरमाने लगे।

जब छोटे से टुकड़े ने कर दी कायापलट

दुनिया का पहला डाक-टिकट या ब्रिटेन का ही पेन्नी ब्लैक, जो 1 मई, 1840 में सबके सामने आया। रोलैंड हिल द्वारा ईजाद किए हुए इस डाक-टिकट की कीमत थी एक पेन्न। यह पोस्टेज की कीमत थी, जो तय थी और जिसे भी चिट्ठी भेजनी होती, उसे चुकानी होती। जब से यह छोटा सा टुकड़ा डाक की दुनिया में आया, उसकी तो कायापलट हो गई।

अब तो डाक-टिकट कई तरह के हैं। इन डाक टिकट को कलेक्ट करने का शौक भी होता है। इस शौक को 'फिलैटली' कहा जाता है।

टेलीग्राम बना सहारा

टेलीग्राम ने दुनिया को जरूरत वक्त में सबसे बड़ा सहारा भी दिया। फर्स्ट वर्ल्ड वार का टाइम था। टेलीग्राफ ऑफिसों पर भीड़ लगी रहती थी। सबको संदेश भेजने की जल्दी, और जल्दी-जल्दी इन संदेशों को साइकिल पर पहुंचाते किशोर लड़के-लड़कियां। टेलीग्राम ने ही संकट की घड़ी में लोगों को आपस में जोड़ा। पर सबसे अहम था जिमरमैन टेलीग्राम। जिसके कारण ही अमेरिका वर्ल्ड वार में कूद पड़ा था।

और टूट गया एक तार

आज की दुनिया में घाटे में चल रहे टेलीग्राम को अपने पोस्ट सिस्टम से अलग होना पड़ा। अमेरिका ने अपनी टेलीग्राफ सर्विस 2006 में रोक दी। तो वहीं, भारत ने अपने इस पुराने साथी को 14 जुलाई, 2013 की रात 11:45 बजे भावपूर्ण विदाई दी।

रोचक तथ्य

- देश के बाहर पहला भारतीय डाकघर 1983 में अंटार्कटिका के दक्षिण गंगोत्री में स्थापित हुआ था।

- जब देश आजाद हुआ था तक पूरे देश में 23,344 डाक घर थे। शहरी क्षेत्रों में 19,184 और ग्रामीण क्षेत्रों में 4,160 थे।

- 2008 तक पूरे देश में 1,55,035 डाक घर थे। शहरी क्षेत्रों में 1,39,173 और ग्रामीण क्षेत्रों में 15,862 थे।

Pic credit- https://www.freepik.com/free-photo/aerial-view-man-selecting-envelopes_2753714.htm#page=2&query=letter+box&position=36


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