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World Day Against Child Labour : करोड़ों बच्चों को बचाने के लिए जानें उनकी मुश्किलें और संभव उपाय

कोविड 19 संक्रमण से जूझते हुए छह महीने हो रहे हैं और इसके दुष्परिणाम बच्चों पर दिखने लगे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक वायरस के इस दौर में हमें बाल श्रम के कुप्रभाव को नहीं भूलना है।

By Vineet SharanEdited By: Published: Fri, 12 Jun 2020 09:11 AM (IST)Updated: Fri, 12 Jun 2020 09:14 AM (IST)
World Day Against Child Labour : करोड़ों बच्चों को बचाने के लिए जानें उनकी मुश्किलें और संभव उपाय
World Day Against Child Labour : करोड़ों बच्चों को बचाने के लिए जानें उनकी मुश्किलें और संभव उपाय

नई दिल्ली, विनीत शरण। कोविड 19 संक्रमण से जूझते हुए छह महीने हो रहे हैं और इसके दुष्परिणाम बच्चों पर दिखने लगे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, वायरस के इस दौर में हमें बाल श्रम के कुप्रभाव को नहीं भूलना है। यूनिसेफ ने भी इस पर चिंता जाहिर की है। वर्ल्ड डे अगेंस्ट चाइल्ड लेबर डे के मौके पर आइये जानते हैं कि वंचित बच्चों की क्या हैं समस्याएं, वायरस से कैसे उनकी समस्याएं बढ़ रही हैं और इन बच्चों की मदद कैसे की जा सकती है-

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शिक्षा, भोजन और स्वास्थ्य सुविधाएं कम हो सकती हैं

यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में वंचित वर्ग के बच्चों से शिक्षा, भोजन और स्वास्थ्य सुविधाएं दूर हो रही हैं। यह प्रभाव इतना गहरा है कि दो महीने पहले मई में ही संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने दुनियाभर की सरकारों और दानदाताओं से अपील की थी कि वे बच्चों पर कोविड 19 के हो रहे प्रभाव से लड़ने में मदद करें।विशेषज्ञों के मुताबिक, यह वायरस बच्चों को कम नुकसान पहुंचा रहा है, लेकिन यह बाल श्रम बढ़ने का बड़ा कारण बन सकता है। इसलिए इससे लड़ने के लिए मैकेनिज्म बनाने की जरूरत है। वायरस के चलते दुनिया में गरीबी बढ़ेगी। इसलिए बाल श्रम की आशंका में भी इजाफा होगा।

विस्थापित बच्चों का तैयार करना होगा डाटा

बच्चों के लिए काम करने वाले एनजीओ क्राई (CRY-Child Rights and You) की निदेशक ( पॉलिसी, रिसर्च एंड एडवोकेसी) प्रीति महारा ने कहा कि कोविड 19 के इस दौर में बच्चों को बाल श्रम से बचाने के लिए कई काम की जरूरत है। सबसे पहले हमें विस्थापित हुए बच्चों का डाटा तैयार करना होगा। उन पर मंडरा रहे खतरे का विश्लेषण करना होगा। इसमें पता करना होगा कि बच्चे किस जगह पर थे और अब कहां पहुंच गए हैं। इसमें स्कूल और एनजीओ काफी मदद कर सकते हैं। फिर जिन जिलों या गांव में बच्चे हैं, वहां यह प्रयास करना होगा कि सभी बच्चे फिर से स्कूल जाएं। इसमें गांव में पंचायत काफी मददगार साबित हो सकती है। शिक्षकों को भी अपने छात्रों से संपर्क करना होगा, जिससे उन्हें फिर से स्कूल भेजना आसान होगा। बच्चों को स्कूल फिर जाने के लिए प्रेरित करने और उनकी मदद के लिए इनसेंटिव जैसी योजनाएं भी शुरू की जानी चाहिए।

बच्चियों पर देना होगा ज्यादा ध्यान

प्रीति महारा कहती हैं कि किसी भी आपदा का असर महिलाओं और लड़कियों पर सबसे ज्यादा होता है। इसलिए कोविड के दौर में भी बच्चियों को बालश्रम और शोषण से बचाना होगा। लड़कियां बाल विवाह में फंस सकती हैं। इससे भी उनकी रक्षा करनी होगी।

इस उम्र के बच्चों पर भी नजर

15 से 18 साल के बच्चों पर भी विशेष ध्यान देना होगा, क्योंकि ये बच्चे कानूनी रूप से काम कर सकते हैं, लेकिन हमें देखना होगा कि बच्चे जोखिम वाले काम न करें। वहीं, जहां तक हो सके, इन्हें शिक्षा के लिए प्रेरित करना है।

चाइल्ड प्रोटेक्शन को आवश्यक सेवा में शामिल करें

प्रीति महारा का सुझाव है कि चाइल्ड प्रोटेक्शन को अब आवश्यक सेवा के रूप में स्वीकार्य करने की जरूरत है। हमें बच्चों को बाल श्रम से बचाने के लिए गांव, कस्बे, शहर, राज्य और देश के यानी सभी स्तर के तंत्र को मजबूत करना होगा। प्रीति महारा के मुताबिक, हमें समझना होगा कि प्रवासी अब उन जगहों पर लौटे हैं, जहां पहले से संसाधन कम थे, क्योंकि उनके पलायन की यही वजह थी। ऐसे में इन परिवारों के बच्चों की स्थिति भी कमजोर हुई है और वे अपने परिवार से यह कहने कि स्थिति में नहीं हैं कि वे काम नहीं करना चाहते, बल्कि वे पढ़ना चाहते हैं।

हमें इन मुश्किलों को समझना होगा

माता-पिता की मृत्यु से असर

कोविड 19 से माता-पिता की मृत्यु में भी वृद्धि होगी। इससे भी मजबूरी में बच्चे बालश्रम में फंसते हैं। ऐसे बच्चों को घर के काम भी करने पड़ेंगे और कमाने की भी मजबूरी होगी। इस तरह के काम बच्चों की सेहत और सुरक्षा को भी नुकसान पहुंचाएंगे। माली, मैक्सिको, तंज़ानिया और नेपाल में हुए कई शोध में पाया गया है कि अगर माता-पिता की मृत्यु होती है तो बच्चे बालश्रम के सबसे खराब रूप की चपेट में आते हैं।

स्कूलों के बंद होने के नुकसान

स्कूल अस्थाई रूप से बंद हैं। पर यह सबसे गरीब और ज़रूरतमंद वर्ग पर स्थाई प्रभाव डाल सकता है। बजट में कटौती और सेवाओं के कम होने का असर परिवार और बच्चों की सेहत, आर्थिक स्थिति और सामाजिक स्थिति पर होगा। अगर एक बार बच्चों का स्कूल जाना छूट गया तो फिर स्कूल जाना मुश्किल हो जाएगा।

अर्थव्यवस्था का संकट

विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर कम समय तक भी अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है तो भी इसके परिणामस्वरूप बालश्रम में इजाफा होगा। याद रहे कि अगर कोई बच्चा काम करना शुरू कर देगा तो इस बात की संभावना कम ही होती है कि आर्थिक संकट खत्म होने के बाद वह काम करना छोड़ दे। बच्चा कम शिक्षित रहेगा और इससे उसके अच्छे रोजगार की संभावना कम हो जाएगी।

गरीबों की संख्या

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में आशंका व्यक्त की गई है कि इस साल दुनिया भर में अत्यधिक गरीब लोगों की संख्या में चार से छह करोड़ का इजाफा होगा। वहीं, यूएनयू और विडर के एक शोध में दावा किया गया है कि अगर प्रति व्यक्ति आय में पांच फीसदी की कटौती हो जाए तो 8 करोड़ और लोग अत्यधिक गरीब लोगों की श्रेणी में चले जाएंगे। यानी की इससे भी बालश्रम बढ़ेगा।

बच्चों की मदद की हो रही कोशिश

133 देश ऐसी सामाजिक सुरक्षा योजनाएं चला रहे हैं, जिनसे बच्चे बाल श्रम में न फंसें। कोलंबिया और जांबिया जैसे देशों में नगद के रूप में आर्थिक मदद दी जा रही है। भारत में हुए शोध में पाया गया है कि अगर स्कूल की फीस कम कर दी जाए तो स्कूली शिक्षा को बढ़ावा मिल सकता है और बाल श्रम की आशंका कम हो सकती है।

37 करोड़ बच्चे दुनिया भर में स्कूल के भोजन या मीड डे मील से वंचित हो रहे हैं

90 फीसदी बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं कोविड 19 के चलते

190 देशों में ज्यादातर स्कूल बंद हैं 


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