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प्यार-दुलार कहीं बिगाड़ न दे बच्चों की आदत, समझाने के साथ थोड़ी सख्ती भी है जरूरी

बचपन इतना सहज और मासूम होता है कि बच्चे कुछ भी कह जाते हैं लेकिन कई बार ऐसे शब्द न केवल उनकी मासूमियत पर सवाल उठाते हैं बल्कि बड़ों को भी शर्मिंदा कर जाते हैं। इसे न करें अनदेखा।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Fri, 11 Oct 2019 11:19 AM (IST)Updated: Fri, 11 Oct 2019 11:19 AM (IST)
प्यार-दुलार कहीं बिगाड़ न दे बच्चों की आदत, समझाने के साथ थोड़ी सख्ती भी है जरूरी
प्यार-दुलार कहीं बिगाड़ न दे बच्चों की आदत, समझाने के साथ थोड़ी सख्ती भी है जरूरी

प्यार-दुलार और हंसी-मजाक के बीच बच्चों को कुछ भी कह देने की आजादी पैदा कर सकती है असहज स्थिति। बच्चे ऐसा न करें इसके लिए उन्हें समझाने के साथ सख्ती करना भी है जरूरी। लेकिन कई बार ऐसे शब्द न केवल उनकी मासूमियत पर सवाल उठाते हैं, बल्कि बड़ों को भी शर्मिंदा कर जाते हैं, इसलिए प्यार-दुलार और हंसी-मजाक के बीच बच्चों को कुछ भी कह देने की आजादी ना दें। 

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चीजों की कीमत बताना

आजकल बच्चे काफी सजग और स्मार्ट हैं, लेकिन यह स्मार्टनेस अगर मासूमियत और बचपने के साथ हो तो ही अच्छी लगती है। कई बार बच्चे घर आए लोगों को अपने खिलौनों से भी उनकी कीमत बताते हुए मिलवाते हैं। इतना ही नहीं वे घर के दूसरे सामानों के मोल का जिक्र कर बैठते हैं। यह बहुत असहज कर देने वाला व्यवहार है। न केवल घर के बड़े सदस्यों को, बल्कि मेहमानों को भी बच्चों का ऐसा व्यवहार अच्छा नहीं लगता। इस बिहेवियर को उनकी आदत न बनने दें।

पर्सनल बातों का जिक्र करना

घर-परिवार के सदस्यों की व्यक्तिगत बातों का जिक्र दूसरों के सामने करना भी कई बार बच्चों की आदत बन जाती है। वे न सिर्फ घर-परिवार की पर्सनल बातें घर आए मेहमानों के सामने कह जाते हैं, बल्कि मेहमानों से व्यक्तिगत सवाल पूछ बैठते हैं। ऐसी बातें मन दुखाने वाली होती हैं, दिल में चुभ जाती हैं। इसलिए बच्चे को समझाएं कि वे सहजता और सम्मान के साथ घर आए गेस्ट्स से मिलें।

शोर और तोड़-फोड़ करना

घर आए मेहमानों के सामने अगर बच्चा अभिभावकों की बात न सुने तो उन्हें काफी तकलीफदेह महसूस होता है। ऐसे में अगर वे एक कदम आगे बढ़कर आक्रामकता और दिखाने लगें तो यह शर्मिंदा करने वाला व्यवहार है। हद से ज्यादा एग्रेसिव होकर बच्चे अगर सामानों की तोड़-फोड़ करने लगें तो थोड़ी सख्ती जरूरी है। कई बार तो वे दूसरों को या अपनों को चोट तक पहुंचाने लगते हैं। ऐसे में पैरेंट्स के लिए बड़ी असहज स्थिति हो जाती है। गौर करने वाली बात है कि बच्चे ऐसा व्यवहार यह सोचकर भी करते हैं कि मेहमानों के सामने उन्हें कोई कुछ नहीं कहेगा।

डबल मीनिंग और अशालीन शब्द बोलना

बच्चों की बिगड़ती भाषा आजकल हर घर में चिंता का विषय है। पैरेंट्स को उनके ऐसे व्यवहार पर शुरआत में ही लगाम लगा देनी चाहिए। आपसी संवाद में एक लाइन ड्रॉ करनी जरूरी है ताकि बच्चे बोलने से पहले सोचें। हां, कई बार बच्चे अनजाने में भी ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कर बैठते हैं। जिनका उन्हें अर्थ तक पता नहीं होता। घर या बाहर किसी के मुंह से या टीवी-फिल्म में सुनकर वे जब-तब ऐसे शब्दों को बोलने लगते हैं।


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